वास्तानेश्वर महादेव मंदिर सिरोही Vastaneshwar Mahadev Temple Sirohi
वास्तानेश्वर महादेव मंदिर सिरोही
अमरकोट के राजघराने में जन्मे सोढा राजपूत जोहरसिंह कालान्तर में अर्बन्दाचल (आबू क्षेत्र) के महान तपस्वी संत मुनिजी महाराज के रूप में प्रख्यात हुए। मुनिजी की पुण्यतिथि पौष सुदी 7 को सरूपगंज-कृष्णगंज रोड पर वास्तानेश्वर महादेव मंदिर में समाधि स्थल पर हर साल विशाल मेला आयोजित होता है। इस मेले में आस-पास सहित दूरदराज के सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। साधु संत भी धूणी रमाते हैं।
मुनिजी महाराज के पूर्व श्रम के बारे में कहा जाता है कि उनका संबंध थारपारकर अमरकोट (हाल पाकिस्तान) के सोढा राजघराने से था। बहादुरसिंह के दो रानी थीं, मुनिजी की माता का नाम जतन कंवर था। जोहरसिंह का जन्म 1897 में अमरकोट किले में हुआ था। जोहरसिंह के बड़े भाई का नाम जवानसिंह था। मुनिजी के भुआसा मान कंवर का विवाह जोधपुर महाराजा भीमसिंह के साथ 1861 में हुआ था। मानकवर के विधवा होने बाद देवर मानसिंह ने जोधपुर की गही संभाली थी। ऐसा मारवाड़ के इतिहास में लिखा हुआ है।
अकाल के कारण आए आबू
किवदंती है कि मुनिजी महाराज 1925 के लगभग अमरकोट क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ने के कारण गायों को चराने आबू की तरफ आए थे। मुनिजी के साथ एक रेबारी भी था जो मूलतः राजस्थान का ही था।
यहां आने पर सिरोही के अनादरा गांव के निकट आबू की तलहटी में उनकी आकस्मिक भेट किसी सिद्ध पुरुष महात्मा से हुई। उस महात्मा ने मुनिजी से थोड़े दूध की मांग की तो सहर्ष दे दिया।महात्मा ने दूध की प्रसाव पाने के बाद झोली में से एक फल निकाल कर इन दोनों को दिया ।और अदृश्य हो गए। रेबारी को आबू के अघोरी संतों की जानकारी थी और उसने फल का प्रसाद फेंक दिया लेकिन मुनिजी तेज भूख लगने के कारण रेबारी के मना करने पर भी खा गए। उनको अन्तःकरण में अद्भुत प्रकाश और परम शान्ति का अनुभव होने लगा और वे स्वयं भी दशा समझने में असमर्थ थे। उनके शरीर में नई चेतना और कान्ति आ गई। दिन प्रतिदिन उनकी वृत्ति उदासीनता और वैराग्य की तरह ढलती गई। एक बार पुनः उस महात्मा से मिलने की इच्छा प्रबल होने लगी। मुनिजी रेबारी को यह कहकर कि मैं उस महात्मा को... खोजने के लिए आबू की पहाड़ियों में जा रहा हूँ यदि वापस आता हूं तो ये गाय मुझे वापस देना अन्यथा यह माल तेरा है।
काफी समय बाद अमरकोट से मुनिजी महाराज के बड़े भाई जवानसिंह उनकी खोज में आबु की तरफ आए। बहुत भटकने के बाद उनकी मुलाकात इस रैबारी से ही. गई रेबारी ने उन्हें सारी घटना से अवगत करवाया और आशा छोड़कर चले जाने को कहा। मुनिजी की गाय ईमानदारी पूर्वक सौंप दिया।
इस घटना के बाद मुनिजी आबू की पहााड़ियो में लंबे समय तक गुम रहे और वापस प्रकट हुए तो एक सिद्ध दशा अवतार में देखने को मिले। तथा उन्हें थारपारकर अमरकोट के सोढा के रूप में किसी ने नहीं पहचाना लेकिन लंबेसमय बाद यह पता चला कि वही सोढ़ा किरदार है। पुराने परिचय के बारे में किसी ने जानने की कोशिश की तो बाबाजी कह देते थे कि ढक परदा रख बाजी। कभी कभी बाबाजी मस्ती में आने पर स्वयं गर्व के साथ बोल देते थे कि यह थारपारकर के सोढा का शरीर है।वे अधिकांश समय मौन रहते थे इसलिए वे इस क्षेत्र में मुनि बाबा के नाम से प्रख्यात हुए । एक समय स्वयं मुनि बाबा ने किसी पत्र पर हस्ताक्षर किए थे जहां अपना नाम शमशेर गिरी लिखा था।
मुनि बाबा के चमत्कार
मुनि बाबा को हिन्दू ग्रन्थों के अलावा कुरान शरीफ का भी अच्छा ज्ञान था। स्वयं मुनि बाबा को खाने-पीने में कोई रुचि नहीं थी पर लोगों को खिला कर एवं अन्न, वस्त्रदान कर बहुत खुश रहते थे। उनकी इच्छा मात्र से बस्ती हो या वीरान पहाड़, साधन सामग्री और उपभोग करने वाले हाजिर हो जाते थे।
●वास्तानेश्वर महादेव भगवान की जय●
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