1. सरसों का इंजन छाप तेल- भरतपुर 2.सरसों का वीर बालक छाप तेल- जयपुर 3. लकड़ी के खिलौने- उदयपुर, सवाईमाधोपुर, जोधपुर 4. पापड़, भुजिया- बीकानेर 5. मटके, सुराही- ( रामसर ) बीकानेर 6. ब्लू पॉटरी- जयपुर 7. चमड़े की मोजड़िया- जयपुर, जोधपुर, नागौर 8. सुनहरी टैराकोटा- बीकानेर 9. थेवा कला- प्रतापगढ़ 10. रामदेव जी के घोड़े- जैसलमेर 11. उस्ताकला- बीकानेर 12. हरी मैथी व हैंडटूल्स- नागौर 13. रसदार फल- गंगानगर, झालावाड़ 14. चेती गुलाब, गुलकंद- पुष्कर 15. नांदणे -भीलवाड़ा 16. पिछवाईयाँ- नाथद्वारा 17. ऊनी बरड़ी, पट्टी एवं लोई- जैसलमेर 18. पाव रजाई- जयपुर 19. खेसले- लेटा (जालौर) 20. ऊनी कम्बल- जैसलमेर,बीकानेर 21. मसूरिया व कोटा डोरिया- कोटा, बारां 22. पत्थर की मूर्तियां- जयपुर, थानागाजी अलवर 23. मिनिएचर पेंटिंग्स- जोधपुर, जयपुर, किशनगढ़ 24. आजम प्रिंट -अकोला ( चितोड़गढ़ ) 25. लहरिया एवं पोमचा- जयपुर 26. अजरख एवं मलीर प्रिंट- बाड़मेर 27. गलीचे- जयपुर, बीकानेर 28. आम पापड़- बांसवाड़ा 29. मेहंदी- सोजत, पाली 30. स्टील/ वुडन फर्नीचर- बीकानेर/ चितोड़गढ़ 31. लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर -बाड़मेर 32. वुडन पेंटेंड फर्नीचर- अजमेर, किशनगढ़ 33. शीशम का फर्नीचर- हनुमानगढ़, बीकानेर 34. कागजी टेराकोटा -अलवर 35. कठपुतलियाँ -उदयपुर 36. फड़ चित्रण- शाहपुरा ( भीलवाड़ा ) 37. बादला एवं मोठड़े- जोधपुर 38. मलमल व जाटा -जोधपुर 39. तारकशी के जेवर- नाथद्वारा 40. नमदे व दरिया- टोंक 41. गोटा किनारी- खण्डेला, सीकर, अजमेर 42. गरासियों की फाग ( ओढ़नी )- सोजत 43. पेचवर्क का कार्य- शेखावाटी 44. जस्ते की मूर्तियां- जोधपुर 45. खेस- चौमूं , चुरू 46. पीतल पर मुरादाबादी नक्काशी- जयपुर 47. मिट्टी के खिलौने- नाथद्वारा, चित्तोड़गढ़ 48. कृषिगत औजार- जयपुर, गंगानगर 49. लाख की पॉटरी- बीकानेर 50. चुनरी- जोधपुर 51. लकड़ी के झूले- जोधपुर 52. लाख का काम- जयपुर 53. हाथीदांत एवं चंदन पर खुदाई- जयपुर 54. मीनाकारी एवं कुंदन कार्य -जयपुर 55. पेपरमेशी का काम- जयपुर, उदयपुर 56. सूँघनी नसवार- ब्यावर 57. रामकड़ा- गलियाकोट 58. कोफ्तगिरी व तहनिशा कार्य- जयपुर 59. कपड़ो परमिरर वर्क- जैसलमेर 60. लकड़ी की कांवड़ -चित्तोड़गढ़
गुरुवार, 26 नवंबर 2015
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता【RAJASTHAN KE PRAMUKH LOK DEVTA】
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता【RAJASTHAN KE PRAMUKH LOK DEVTA】
राजस्थान के लोकदेवता
मारवाड़ के पंच वीर – 1. रामदेवजी 2. पाबूजी 3. हड़बूजी 4. मेहाजी मांगलिया 5. गोगाजी
1. रामदेवजी
उपनाम – रामसापीर, रूणेचा के धणी, बाबा रामदेव
जन्म – उडूकासमीर (बाड़मेर), 1405 ई. भादवा
पिता – अजमाल जी तँवर (रूणेचा के ठाकुर)
माता – मैणादे
पत्नी – नेतलदे
घोड़े का नाम – लीला इसीलिए इन्हें लाली रा असवार कहते हैं।
गुरू – बालीनाथ या बालकनाथ
विशेषताएँ – भैरव नामक राक्षस को मारा तथा पोकरण कस्बे को बसाया, कामडिया पंथ की स्थापना की, अछूत मेघवाल जाति की डालीबाई को बहिन माना, मुस्लिम रामसापीर की तरह पूजते हैं।
नेजा – रामदेवजी के मन्दिर की पंचरंगी ध्वजा।
जम्मा – रामदेवजी का जागरण।
चैबीस बाणियाँ – रामदेवजी की रचना।
रिखिया – रामदेवजी के मेघवाल भक्त।
रूणेचा में रामदेवजी की समाधि पर प्रतिवर्ष भाद्र पद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है। यह राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। यहाँ कामड़ जाति की महिलाएँ तेरहताली का नृत्य करती है।
रामदेवजी के प्रमुख मन्दिर –
रामदेवरा – जैसलमेर
बराडियाँ खुर्द – अजमेर
सुरताखेड़ा – चित्तौड़गढ
छोटा रामदेवरा – गुजरात
उपनाम – रामसापीर, रूणेचा के धणी, बाबा रामदेव
जन्म – उडूकासमीर (बाड़मेर), 1405 ई. भादवा
पिता – अजमाल जी तँवर (रूणेचा के ठाकुर)
माता – मैणादे
पत्नी – नेतलदे
घोड़े का नाम – लीला इसीलिए इन्हें लाली रा असवार कहते हैं।
गुरू – बालीनाथ या बालकनाथ
विशेषताएँ – भैरव नामक राक्षस को मारा तथा पोकरण कस्बे को बसाया, कामडिया पंथ की स्थापना की, अछूत मेघवाल जाति की डालीबाई को बहिन माना, मुस्लिम रामसापीर की तरह पूजते हैं।
नेजा – रामदेवजी के मन्दिर की पंचरंगी ध्वजा।
जम्मा – रामदेवजी का जागरण।
चैबीस बाणियाँ – रामदेवजी की रचना।
रिखिया – रामदेवजी के मेघवाल भक्त।
रूणेचा में रामदेवजी की समाधि पर प्रतिवर्ष भाद्र पद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है। यह राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। यहाँ कामड़ जाति की महिलाएँ तेरहताली का नृत्य करती है।
रामदेवजी के प्रमुख मन्दिर –
रामदेवरा – जैसलमेर
बराडियाँ खुर्द – अजमेर
सुरताखेड़ा – चित्तौड़गढ
छोटा रामदेवरा – गुजरात
2. पाबूजी –
जन्म – कोलू (फलौरी, जोधपुर)
पिता का नाम – धांधलजी राठौड़
माता का नाम – कमलादे
पत्नी – सुप्यारदे
घोड़ी – केसर – कलमी
पाबू प्रकाश की रचना मोड़शी आशियां ने की।
लक्ष्मण का अवतार माने जाते हैं। देवल चारणी की गायों को छुड़ाने हेतु बहनोई जीदराव खींची से युद्ध किया। ऊँटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। भाला लिए अश्वारोही के रूप में पूज्य/प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को कोलू में मेला भरता है। इनकी फड़ का वाचन भील जाति के नायक भोपे करते हैं|
जन्म – कोलू (फलौरी, जोधपुर)
पिता का नाम – धांधलजी राठौड़
माता का नाम – कमलादे
पत्नी – सुप्यारदे
घोड़ी – केसर – कलमी
पाबू प्रकाश की रचना मोड़शी आशियां ने की।
लक्ष्मण का अवतार माने जाते हैं। देवल चारणी की गायों को छुड़ाने हेतु बहनोई जीदराव खींची से युद्ध किया। ऊँटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। भाला लिए अश्वारोही के रूप में पूज्य/प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को कोलू में मेला भरता है। इनकी फड़ का वाचन भील जाति के नायक भोपे करते हैं|
3. गोगाजी
उपनाम – सापो के देवता, गोगा चव्हाण, गोगा बप्पा।
जन्म – ददरेवा (चूरू) में चौहान वंश में।
पिता – जेवर सिंह चौहान
माता – बादल दे।
पत्नी – केमलदे
मानसून की पहली वर्षा पर गोगा राखड़ी (नौ गांठो) को हल व किसान के बाँधा जाता है। महमूद गजनवी के युद्ध किया तथा जाहिर पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
समाधि गोगामेड़ी (शिशमेढी) नोहर तहसील हनुमानगढ़ में है। यहाँ भादप्रद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) पर प्रतिवर्ष मेला भरता है।ददरेवा (चूरू) में धडमेडी है। समाधि पर बिसिमल्लाह एवं ओम अंकित है।
सवारी – नीली घोडी।
गोगाजी की लोल्डी (तीसरा मनिदर) साँचौर (जालौर) में है। सर्प दंश पर इनकी पूजा की जाती है तथा तोरण (विवाह का) इनके थान पर चढ़ाया जाता है। अपने मौसेरे भार्इयों अरजण व सुर्जन से गायों को छुड़ातें हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
उपनाम – सापो के देवता, गोगा चव्हाण, गोगा बप्पा।
जन्म – ददरेवा (चूरू) में चौहान वंश में।
पिता – जेवर सिंह चौहान
माता – बादल दे।
पत्नी – केमलदे
मानसून की पहली वर्षा पर गोगा राखड़ी (नौ गांठो) को हल व किसान के बाँधा जाता है। महमूद गजनवी के युद्ध किया तथा जाहिर पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
समाधि गोगामेड़ी (शिशमेढी) नोहर तहसील हनुमानगढ़ में है। यहाँ भादप्रद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) पर प्रतिवर्ष मेला भरता है।ददरेवा (चूरू) में धडमेडी है। समाधि पर बिसिमल्लाह एवं ओम अंकित है।
सवारी – नीली घोडी।
गोगाजी की लोल्डी (तीसरा मनिदर) साँचौर (जालौर) में है। सर्प दंश पर इनकी पूजा की जाती है तथा तोरण (विवाह का) इनके थान पर चढ़ाया जाता है। अपने मौसेरे भार्इयों अरजण व सुर्जन से गायों को छुड़ातें हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
4 हड़बूजी – भूंडेल (नागौर) शासक मेहाजी साँखला के पुत्र थे।
राव जोधा के समकालीन थे। बेगटी गाँव (फलौदी, जोधपुर) में इनका प्रमुख मंदिर है जहाँ इनकी गाड़ी की पूजा की जाती है। रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
पुजारी – साँखला राजपूत
गुरू – बालीनाथ (बालकनाथ)
शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
राव जोधा के समकालीन थे। बेगटी गाँव (फलौदी, जोधपुर) में इनका प्रमुख मंदिर है जहाँ इनकी गाड़ी की पूजा की जाती है। रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
पुजारी – साँखला राजपूत
गुरू – बालीनाथ (बालकनाथ)
शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
5. मेहाजी मांगलिया – मांगलिया राजपूतों के इष्ट देव।
प्रमुख मनदर – वापिणी (ओसियाँ, जोधपुर) यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला भरता है।
घोडा – किरड़ काबरा।
जैसलमेर के राणंग देव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त।
इनकी पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती है। अत: वे वंश की वृद्धि गोद लेकर करते हैं।
प्रमुख मनदर – वापिणी (ओसियाँ, जोधपुर) यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला भरता है।
घोडा – किरड़ काबरा।
जैसलमेर के राणंग देव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त।
इनकी पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती है। अत: वे वंश की वृद्धि गोद लेकर करते हैं।
6. तेजाजी – उपनाम – परम गौ रक्षक एवं
गायों के मुक्तिदाता कृषि कार्यो के उपकारक देवता, काला एवं बाला के देवता।
जन्म – खड़नाल (नागौर), जाट समुदाय में (नाग वंशीय)
पिता – ताहड़ जी जाट
माता – राजकुँवर
पत्नी – पेमल दे
लाछा व हीरा गूजरी की गायों को मेरों से छुडाते हुए संघर्ष में प्राणोत्सर्ग। सुरसुरा (अजमेर) में इन्हें सर्पदंश हुआ था।
घोड़ी – लीलण।
पूजारी भोपे – घोड़ला कहे जाते हैं। ब्यावर के तेजा चौक में प्रतिवर्ष भादवा सुदी दशमी को मेला भरता है। राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला वीर तेजाजी पशु मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक परबतसर (नागौर)
में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है।
सर्वाधिक पूज्य – अजमेर जिले में।
गायों के मुक्तिदाता कृषि कार्यो के उपकारक देवता, काला एवं बाला के देवता।
जन्म – खड़नाल (नागौर), जाट समुदाय में (नाग वंशीय)
पिता – ताहड़ जी जाट
माता – राजकुँवर
पत्नी – पेमल दे
लाछा व हीरा गूजरी की गायों को मेरों से छुडाते हुए संघर्ष में प्राणोत्सर्ग। सुरसुरा (अजमेर) में इन्हें सर्पदंश हुआ था।
घोड़ी – लीलण।
पूजारी भोपे – घोड़ला कहे जाते हैं। ब्यावर के तेजा चौक में प्रतिवर्ष भादवा सुदी दशमी को मेला भरता है। राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला वीर तेजाजी पशु मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक परबतसर (नागौर)
में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है।
सर्वाधिक पूज्य – अजमेर जिले में।
7. देवनारायणजी – उपनाम – देवजी, ऊदल जी।
जन्म का नाम – उदय सिंह
जन्म – गोठाँ दड़ावताँ (आसीन्द, भीलवाड़ा)
पिता – सवार्इ भोज (नागवंशीय गुर्जर बगड़ावत)
माता – सेडू खटाणी।
पत्नी – पीपलदे।
मूल मंदिर – आसीन्द में है। अन्य प्रमुख मंदिर – देवधाम जोधपुरिया (टोंक), देवमाली (अजमेर) तथा देव डूंगरी (चित्तौड़) ये चारों मंदिर चार धाम कहलाते हैं।
गुर्जरों के इष्ट देवता हैं। इनका मंदिर देवरा कहलाता है।
घोड़ा – लीलागर।
विष्णु के अवतार माने जाते हैं। प्रमुख मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को देवधाम जोधपुरिया में भरता है।
जन्म का नाम – उदय सिंह
जन्म – गोठाँ दड़ावताँ (आसीन्द, भीलवाड़ा)
पिता – सवार्इ भोज (नागवंशीय गुर्जर बगड़ावत)
माता – सेडू खटाणी।
पत्नी – पीपलदे।
मूल मंदिर – आसीन्द में है। अन्य प्रमुख मंदिर – देवधाम जोधपुरिया (टोंक), देवमाली (अजमेर) तथा देव डूंगरी (चित्तौड़) ये चारों मंदिर चार धाम कहलाते हैं।
गुर्जरों के इष्ट देवता हैं। इनका मंदिर देवरा कहलाता है।
घोड़ा – लीलागर।
विष्णु के अवतार माने जाते हैं। प्रमुख मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को देवधाम जोधपुरिया में भरता है।
8. मल्लीनाथ जी –
जन्म – मारवाड़ में (मालाणी परगने का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया।
माता – जाणी दे।
पिता – राव तीड़ा (मारवाड़ के शासक)
पत्नी – रूपा दें
ये निर्गुण एवं निराकार ईश्वर में विश्वास रखते थे।
प्रमुख मनिदर – तिलवाड़ा (बाड़मेर) में है। यहाँ चैत्र माह में मल्लीनाथ पशु मेला भरता है।
इन्होंने निजामुदीन को पराजित किया था।
जन्म – मारवाड़ में (मालाणी परगने का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया।
माता – जाणी दे।
पिता – राव तीड़ा (मारवाड़ के शासक)
पत्नी – रूपा दें
ये निर्गुण एवं निराकार ईश्वर में विश्वास रखते थे।
प्रमुख मनिदर – तिलवाड़ा (बाड़मेर) में है। यहाँ चैत्र माह में मल्लीनाथ पशु मेला भरता है।
इन्होंने निजामुदीन को पराजित किया था।
9. तल्लीनाथ जी – मारवाड़ के वीरमदेव राठौड़ के पुत्र थे। गुरू जालधंर नाथ ने तल्लीनाथ नाम दिया।
मूल नाम – गाँगदेव राठौड़ था। जालौर के पाँचोड़ा गाँव में पंचमुख पहाड़ पर इनकी अश्वारोही मूर्ति है। यह क्षेत्र ओरण कहलाता है। यहाँ से कोइ भी पेड़- पौधे नहीं काटता। इन्हें प्रकृति प्रेमी देवता के रूप में पूजा जाता है।
मूल नाम – गाँगदेव राठौड़ था। जालौर के पाँचोड़ा गाँव में पंचमुख पहाड़ पर इनकी अश्वारोही मूर्ति है। यह क्षेत्र ओरण कहलाता है। यहाँ से कोइ भी पेड़- पौधे नहीं काटता। इन्हें प्रकृति प्रेमी देवता के रूप में पूजा जाता है।
10. वीरकल्लाजी – जन्म – मेड़ता परगने में।
मीरा बाई के भतीजे थे। केहर, कल्याण, कमधज, योगी, बाल ब्रह्राचारी तथा चार हाथों वाले देवता के रूप में पूज्य।
शेषनाग के अवतार माने जाते हैं।
अकबर से युद्ध किया था तथा वीरगति को प्राप्त।
गुरू – जालन्धरनाथ थे।
बाँसवाड़ा जिले में अत्यधिक मान्यता है।
इनकी सिद्ध पीठ – रानेला में हैं। इन्हें जड़ी-बूटी द्वारा असाध्य रोगों के इलाज का ज्ञान था।
मीरा बाई के भतीजे थे। केहर, कल्याण, कमधज, योगी, बाल ब्रह्राचारी तथा चार हाथों वाले देवता के रूप में पूज्य।
शेषनाग के अवतार माने जाते हैं।
अकबर से युद्ध किया था तथा वीरगति को प्राप्त।
गुरू – जालन्धरनाथ थे।
बाँसवाड़ा जिले में अत्यधिक मान्यता है।
इनकी सिद्ध पीठ – रानेला में हैं। इन्हें जड़ी-बूटी द्वारा असाध्य रोगों के इलाज का ज्ञान था।
11. वीर बिग्गाजी –
जन्म – जांगल प्रदेश (वर्तमान बीकानेर)
पिता – राव महन
माता – सुल्तानी देवी
जाखड़ जाटों के लोकदेवता तथा कुल देवता।
मुसिलम लुटेरों से गौरक्षार्थ प्राणोत्सर्ग
जन्म – जांगल प्रदेश (वर्तमान बीकानेर)
पिता – राव महन
माता – सुल्तानी देवी
जाखड़ जाटों के लोकदेवता तथा कुल देवता।
मुसिलम लुटेरों से गौरक्षार्थ प्राणोत्सर्ग
12. देव बाबा –
मेवात (पूर्वी क्षेत्र) में ग्वालों के देवता के रूप में प्रसिद्ध। पशु चिकित्सा शास्त्र में निपुण थे।
प्रमुख मंदिर – नंगला जहाज (भरतपुर) में भाद्रपद में तथा चैत्र में मेला।
मेवात (पूर्वी क्षेत्र) में ग्वालों के देवता के रूप में प्रसिद्ध। पशु चिकित्सा शास्त्र में निपुण थे।
प्रमुख मंदिर – नंगला जहाज (भरतपुर) में भाद्रपद में तथा चैत्र में मेला।
13. हरिराम बाबा –
जन्म – झोरड़ा (नागौर), प्रमुख मंदिर भी यहीं हैं। बजरंग बली के भक्त थे।
पिता – रामनारायण
माता – चनणी देवी
इनके मनिदर में साँप की बाम्बी की पूजा की जाती है।
जन्म – झोरड़ा (नागौर), प्रमुख मंदिर भी यहीं हैं। बजरंग बली के भक्त थे।
पिता – रामनारायण
माता – चनणी देवी
इनके मनिदर में साँप की बाम्बी की पूजा की जाती है।
14. झरड़ाजी (रूपनाथजी) –
पाबूजी के बड़े भार्इ बूढ़ोजी के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता व चाचा के हत्यारे खींची को मारा।
इन्हें हिमाचल प्रदेश में बाबा बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है। इनको रूपनाथ तथा बूढ़ो झरड़ा भी कहते हैं।
कोलू (जोधपुर) तथा सिंमूदड़ा (बीकानेर) में इनके मनिदर है।
पाबूजी के बड़े भार्इ बूढ़ोजी के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता व चाचा के हत्यारे खींची को मारा।
इन्हें हिमाचल प्रदेश में बाबा बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है। इनको रूपनाथ तथा बूढ़ो झरड़ा भी कहते हैं।
कोलू (जोधपुर) तथा सिंमूदड़ा (बीकानेर) में इनके मनिदर है।
15. मामाजी (मामादेव) – राजस्थान में जब कोई राजपूत योद्धा लोक कल्याणकारी कार्य हेतु वीरगति को प्राप्त होता था तो उस विशेष
योद्धा (मामाजी) के रूप में पूजा जाता है।
पशिचम राज. में ऐसे अनेक मामाजी हैं जैसे
– धोणेरी वीर, बाण्डी वाले मामाजी, सोनगरा मामाजी आदि। इन्हें बरसात का देवता भी माना जाता है।
इनकी मूर्तियां जालौर के कुम्हार बनाते हैं, जिन्हें मामाजी के घोड़े कहते हैं।
योद्धा (मामाजी) के रूप में पूजा जाता है।
पशिचम राज. में ऐसे अनेक मामाजी हैं जैसे
– धोणेरी वीर, बाण्डी वाले मामाजी, सोनगरा मामाजी आदि। इन्हें बरसात का देवता भी माना जाता है।
इनकी मूर्तियां जालौर के कुम्हार बनाते हैं, जिन्हें मामाजी के घोड़े कहते हैं।
16. भूरिया बाबा (गौतमेश्वर) – राज्य के दक्षिण-पशिचम गोंडवाड क्षेत्र में मीणा जनजाति के आराध्य देव हैं। इनका मंदिर पोसालियां (सिरोही) में जवाई नदी के किनारे हैं।
17. बाबा झुँझार जी – जन्म – इमलोहा (सीकर) राजपूत परिवार में स्यालोदड़ा में रामनवमी पर मेला भरता है। मुसिलमों से गौरक्षार्थ बलिदान।
18. पनराज जी – जन्म – नगा (जैसलमेर)
पनराजसर में मेला भरता है। गौरक्षार्थ बलिदान।
पनराजसर में मेला भरता है। गौरक्षार्थ बलिदान।
19. फत्ताजी – सांथू (जालौर) में जन्म। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला।
20. इलोजी – होलिका के प्रेमी, मारवाड़ में अत्यधिक पूज्य। अविवाहित लोगों द्वारा पूजने पर विवाह हो जाता है।
21. आलमजी – बाड़मेर के मालाणी परगने में पूज्य। डागी नामक टीला आलमजी का धोरा कहलाता है। यहाँ भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को मेला भरता है।
22. डूंगजी – जवारजी – शेखावाटी क्षेत्र के देशभक्त लोकदेवता।
23. भोमिया जी – भूमिरक्षक देवता के रूप में पूज्य।
24. केसरिया कुँवर जी – गोगाजी के पुत्र, सर्प देवता के रूप में पूज्य।
रविवार, 22 नवंबर 2015
Rajasthan's Lokdevis-राजस्थान की लोक देवियाॅ
Rajasthan's Lokdevis-राजस्थान की लोक देवियाॅ
1. करणीमाता मंदिर देशनोक बीकानेर – बीकानेर राठौड़ शासकों की कुलदेवी, चारणीदेवी व चूहों की देवी के रूप में प्रसिद्ध, सफेद चूहे काला कहलाते हैं। जन्म का नाम रिदू बाई विवाह – देवा के साथ, जन्म का स्थान सुआप (बीकानेर) बीकानेर राज्य की स्थापना इनके संकेत पर राव बीका द्वारा की गई। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराजा सूरज सिंह द्वारा।
2. जीणमाता मंदिर - जन्म – रैवासी (सीकर) शेखावाटी क्षेत्र की प्रमुख देवी, चौहान राजपूतों की कुल देवी, ढाई प्याला मदीरा पान की प्रथा, चैत्र व अश्विन माह में मेला, भाई – हर्ष, मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चैहान प्रथम के काल में।
3. कैला देवी: त्रिकूट पर्वत पर, काली सिंध नदी के तट पर मंदिर, यदुवंशी राजवंश (करौली) की कुल देवी, मंदिर निर्माण गोपाल सिंह द्वारा। नरकासुर राक्षस का वध, चैत्र मास में शुक्ल अष्टमी को लख्खी मेला, लागुरई गीत प्रसिद्ध।
4. शिला देवी: मन्दिर आमेर में, अष्टभूजी महिषासुर मदरनी की मूर्ति, पूर्वी बंगाल विजय के उपरान्त आमेर शासक मानसिंह प्रथम द्वारा जससौर से लाकर स्थापित की गई। वर्तमान मंदिर का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा कछवाहा वंश की कुल देवी, इच्छानुसार मदिरा व जल का चरणामृत चढ़ाया जाता है।
5. लट्टीयाल माता: फलौदी (जोधपुर में)
6. त्रिकूट सुन्दरी मंदिर: तिलवाड़ा (बांसवाड़ा) में मन्दिर, उपनाम तरताई माता, निर्माण – सम्राट कनिष्क के काल में पांचालों की कुल देवी,हाथो में अठारह प्रकार के अस्त्र-शस्त्र।
7. दधीमती माता: मंदिर गोठ मांगलोद (नागौर) में, पुराणों के अनुसार इन्होंने विकटासुर राक्षस का वध किया था। उदयपुर महाराणा को इन्हीं के आर्शीवादों से पुत्र प्राप्ति हुई थी। यह दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी है।
8. चारण देवी (आवण माता): मंदिर तेमडेराय (जैसलमेर) में जैसलमेर के मामड़राज जी के यहाँ हिंगलाज माता की वंशावतार 7 कन्या हुई थी जिन्होंने संयुक्त रूप से चारण देवियाँ कहा जाता है। इनकी संयुक्त प्रतिमा डाला तथा स्तुति चर्जा कहलाती है। चर्जा दो प्रकार की होती है।
सिंगाऊ – शांति के समय की जाने वाली स्तुति।
घडाऊ – विपति के समय की जाने वाली स्तुति।
9. सुगाली माता: आऊवा (पाली) में मंदिर। कुशाल सिंह चंपावत की कुल देवी, इनके 10 सिर से 54 भुजायें है। 1857 की क्रांति में इसकी मूर्ति को अंग्रेजो द्वारा अजमेर लाया गया था।
10. नागणेचिया माता: नागेणा (बाड़मेर) में, निर्माण रावदुहण द्वारा 13वीं शताब्दी में, राठौड़ वंश की कुल देवी, राठौड़ वृक्ष मीन के वृक्ष को न काटता है, न ही उपयोग करता है।
11. ढाढ माता: कोटा में पोलियो की देवी।
12. तणोटिया माता: तनोट (जैसलमेर) सेना की रक्षा करे, पर सैनिकों की आराध्य देवी मानी जाती है।
13. आमजा माता: मंदिर रीछड़ा (उदयपुर) में, भीलों की देवी, प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मेला।
14. बाण माता: कुम्भलगढ़ किले के पास, केलवाड़ा में मंदिर, मेवाड़ शासकों की कुल देवी।
15. महामाया: शिशु रक्षक देवी, मंदिर मावली उदयपुर में गर्भवती स्त्रियों द्वारा पूजा।
16. कालिका माता: मंदिर पद्मिनी महल, चित्तौड़गढ़ दुर्ग, निर्माण मानमौ द्वारा 8वीं शताब्दी में, गोहिल वंश (गहलोतों) की कुल देवी।
17. कुशला माता: मंदिर बदनौर (भीलवाड़ा) में, निर्माण – महाराणा कुम्भा द्वारा, इसी के पास बैराठ माता का मंदिर है। ये दोनों बहनें मानी जाती है तथा चामुण्ड माता का अवतार है।
18. ज्वाला माता: मंदिर जोबनेर (जयपुर में) जेत्रसिंह ने इनके आशीर्वाद से लाल वेग की सेना को हराया था।
19. चामुण्डा देवी: मंदिर अजमेर, निर्माण पृथ्वीराज चैहान द्वारा चैहानों की कुल देवी, चारण भाट चन्दरबरदाई की इष्ट देवी।
20. बडली माता: छीपों के आकोला (चित्तौड़गढ़) बेडच नदी के किनारे, बीमार बच्चों को मंदिर की दो तिबारी से निकाला जाता है।
21. स्वांगीया माता: मंदिर गजरूपसागर (जैसलमेर) में, यादव भाटी वंश की कुल देवी, राजकीय प्रतिचिन्ह पालमचिड़ी व स्वांग।
22. तुलजा भवानी: चित्तौड़ दुर्ग में प्राचीन माता मंदिर, छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी।
23. जल देवी: बावडी (टांेक) में स्थित।
24. छींक माता: जयपुर
25. हिचकी माता: सनवाड़ (उदयपुर)
26. जिलाजी माता: बहरोड़ (अलवर) हिन्दूओं को मुस्लिम बनने से रोकने के लिए माता रूप में प्रसिद्ध।
27. आवरी माता: निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में मन्दिर, लूले लंगड़े लखवाग्रस्त लोगों का ईलाज।
28. भदाणा माता: कोटा में, मूठ की पकड़ में आये व्यक्ति में इलाज के लिए।
29. शीतला माता: मंदिर चाकसू (जयपुर) में शील डूंगरी पर, निर्माण सवाई माधोसिंह द्वारा, उपनाम मातृरक्षा तथा चेचक की देवी। पूजारी कुम्हार, वाहन गंधा। प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी पर गर्धभ मेला। सर्वप्रथम चढ़ावा – जयपुर दरबार द्वारा। शीतलाष्टमी – चैत्र शुक्ल अष्ठमी।
30. संकराय माता: मंदिर उदयपुरवाटी (झुन्झूनु) में, खण्डेलवाल जाति की कुल देवी, उपनाम – शाक्मभरी, शंकरा। अकाल पीडि़त जनता की रक्षा के लिए।
31. सच्चिया माता: मंदिर ओसिया (जोधपुर) में। ओसवालों की कुल देवी, निर्माण परमार शासक उपलदेव द्वारा। महिषासुर मदरनी का सात्विक रूप।
32. नारायणी माता: मंदिर अलवर, नाईयों की कुल देवी, मूलणाम करमीती। मंदिर प्रतिहार शैली का बना हुआ बरवा डूंगरी पर स्थित है। पुजारी – मीणा जाति।
33. राणी सती: मंदिर – झून्झूनु, मूल नाम – नारायणी बाई, दादी जी नाम प्रसिद्ध, परिवार में कुल 13 सतियां हुई।
34. आई माता: मंदिर – बिलाड़ा जोधपुर, सिखी कृषक राजपूतों की कुल देवी, मंदिर – दरगाह थान बड़ेर कहलाता है। मंदिर बिना मूर्ति का है जहाँ दीपक की ज्योति से केसर टपकता है जिसका उपयोग इलाज में किया जाता है।
35. घेवर माता: राजसमन्द झील की पाल पर सती हुई|
गुरुवार, 19 नवंबर 2015
The major historical fort of Rajasthan -राजस्थान के प्रमुख ऐतिहासिक किले दुर्ग
The major historical fort of Rajasthan -राजस्थान के प्रमुख ऐतिहासिक किले(दुर्ग)
1. माण्डलगढ़ दुर्ग: यह मेवाड़ का प्रमुख गिरी दुर्ग है। जो कि भीलवाड़ा के माण्डलगढ़ कस्बे में बनास, मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है। इसकी आकृति कटारे जैसी है।
2. शेरगढ़ का दुर्ग (कोषवर्धन): यह बारां जिले में परवन नदी पर स्थित है। राजकोष में निरन्तर वृद्धि करने के कारण इसका नाम कोषवर्द्धन पड़ा। यहाँ पर खींची चौहान शासक, डोड परमार नागवंशीय क्षेत्रीय शासकों, कोटा के हाडा शासक आदि का शासन रहा। शेरशाह सूरी ने इसका नाम परिवर्तित करके शेरगढ़ रखा। महारावल उम्मेद सिंह के दीवान जालिम सिंह झाला ने जीर्णोंदार कर अनेक महल बनवाये जो झालाआं की हवेली के नाम से प्रसिद्ध है।
3. कुचामन का किला: नागौर जिले की नावां तहसील के कुचामन में स्थित है। यह जोधपुर शासक मेडतिया शासकों का प्रमुख ठिकाना था। मेडतिया शासक जालीम सिंह ने वनखण्डी महात्मा के आशीष से इस किले की नीवं रखी। इस किले में सोने के बारीक काम के लिए सुनहरी बुर्ज प्रसिद्ध है तथा यहाँ पर स्थित हवामहल राजपूती स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इसे जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है।
4. अचलगढ़ का किला: सिरोही जिले के माउण्ट आबू में इसका निर्माण परमार शासकों ने करवाया था। तथा पुर्नउद्धार 1542 ई. में महाराणा कुम्भा द्वारा करवाया गया। इस किले के पास ही माण्डू शासक द्वारा बनवाया गया पाश्र्वनाथ जैन मंदिर स्थित है।
5. अकबर का किला: यह अजमेर नगर के मध्य में स्थित है जिसे मेगस्थनीज का किला तथा अकबर का दौलतखाना भी कहते है। यह पूर्णतया मुस्लिम दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया गया है। सर टोमसरा ने जहांगीर को यहीं पर अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किया था।
6. नागौर का किला: प्राचीन शिलालेखों में इसे नाग दुर्ग व अहिछत्रपुर भी कहा गया है। यह धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आम है। ख्यातों के अनुसार चौहान शासक सोमेश्वर के सामन्त केमास ने इसी स्थान पर भेड़ को भेडिये से लड़ते देखा गया था। नागौर किले में प्रसिद्धि शौर्य व स्वाभिमान के प्रतीक अमर सिंह राठौड़ से है। यह दुर्ग सिंह से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर स्थित है। महाराजा बख्तर सिंह ने इस दुर्ग का जीर्णोदार करवाया था। इस दुर्ग में हाडी रानी का मोती महल, अमर सिंह का बादल महल व आभा महल तथा अकबर का शीश महल है।
7. बीकानेर का दुर्ग (जूनागढ़): यह धान्वन श्रेणी का दुर्ग है इसका निर्माण महाराजा बीका सिंह द्वारा करवाया गया था। यह राती घाटी में स्थित होने के कारण राती घाटी का किला भी कहा जाता है। वर्तमान किले का निर्माण महाराज राय सिंह द्वारा करवाया गया। यहाँ पर 1566 ई. के साके के बीर शहीद जयमल तथा पत्ता की गजारूढ़ मुर्तियां थी जिनका वर्णन फ्रांसिसी यात्री बरनियर ने अपने ग्रन्थ में किया था। किन्तु औरंगजेब ने इन्हें हटवा दिया था। इसमें स्थित महल अनूपगढ़, लालगढ़, गंगा निवास, रंगमहल, चन्द्रमहल रायसिंह का चैबारा, हरमंदिर आदि है। यहाँ पर महाराजा डूंगरसिंह द्वारा भव्य व ऊँचा घण्टाघर भी बनवाया गया था।
8. भैंसरोदुगढ़ दुर्ग: चित्तौड़गढ़ जिले के भैसरोडगढ़ स्थान पर स्थित है। कर्नल टाॅड के अनुसार इसका निर्माण विक्रम शताब्दी द्वितीय में भैसा शाह नामक व्यापारी तथा रोठा नामक बंजारे में लुटेरों से रक्षा के लिए बनवाया था। यह जल दुर्ग की श्रेणी में आता है जो कि चम्बल व वामनी नदियों के संगम पर स्थित है। इसे राजस्थान का वेल्लोर भी कहा जाता है।
9. दौसा दुर्ग: यह कछवाहा शासकों की प्रथम राजधानी थी। आकृति सूप के (छाछले) के समान है तथा देवागिरी पहाड़ी पर स्थित है। कारलाइन ने इसे राजपूताना के प्राचीन दुर्गों में से एक माना है। इसका निर्माण गुर्जर प्रतिहारों बड़गूर्जरों द्वारा करवाया गया था। यहाँ स्थित प्रसिद्ध स्थल हाथीपोल, मोरीपोल, राजा जी का कुंश, नीलकण्ठ महादेव बैजनाथ महादेव, चैदह राजाओं की साल, सूरजमल पृतेश्वर (भौमिया जी का मंदिर) स्थित है।
10. भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़): घग्घर नदी के तट पर स्थित है तथा उत्तरी सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है। दिल्ली मुल्तान पर होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी अधिक था। यह धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है। इसका निर्माण कृष्ण के 9वे वंश के भाटी राजा भूपत ने करवाया था। 1001 ई. में महमूद गजनी ने इस पर अपना अधिकार किया था। 1398 ई. में रावदूलचन्द्र के समय तैमूर ने इस पर आक्रमण किया था। 1805 ई. में बीकानेर के शासक सूरजसिंह ने मगंलवार को जापता खाँ भाटी पर आक्रमण कर इसे जीता इसलिए इसका नाम हनुमानगढ़ रखा। भतीजे शेरखान की क्रब इस किले में स्थित है। यहाँ पानी संग्रहण के लिए कुण्डों का निर्माण करवाया गया था।
11. अलवर का दुर्ग: यह बाला दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। निर्माण 1106 ई. में आमेर नरेश काकिल देव के कनिष्ठ पुत्र रघुराय ने करवाया था। वर्तमान में यह रावण देहरा के नाम से जाना जाता है। भरतपुर के राजा सूरजमल ने यहाँ सूरजकुण्ड तथा शेरशाह के उत्तराधिकारी सलीम शाह ने सलीम सागर तथा प्रतापसिंह ने सीताराम जी का मन्दिर बनवाया। इस दुर्ग मे स्थित अन्धेरी दरवाजा प्रसिद्ध है।
12. बयाना का किला (विजयमन्दिर गढ़): उपनाम शोतिणपुर का किला तथा बादशाह किला। यह भरतपुर जिले के दक्षिण मे है तथा इसका निर्माण मथुरा के यादव राजा विजयपाल ने 1040 ई. लगभग करवाया। विजयपाल के ज्येष्ठ पुत्र त्रिभुवन पाल ने इसके पाल ही तवनगढ़ किले का निर्माण करवाया। मध्यकाल में यह क्षेत्र नील उत्पादन के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध था। इस दुर्ग में लाल पत्थरों से बनी भीमलाट रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित उषा मन्दिर, अकबरी छतरी, लोदी मीनार, जहांगिरी दरवाजा आदि स्थित है।
13. माधोराजपुरा का किला: यह जयपुर जिले में फागी के पास स्थित है। इसका निर्माण सवाई माधव सिंह प्रथम द्वारा मराठों पर विजय के उपरान्त करवाया गया। माधोराजपुरा कस्बे को नवां शहर भी कहा जाता है।
14. गागरोन दुर्ग: यह झालावाड़ जिले में मुकुन्दपुरा पहाड़ी पर काली सिन्ध व आहू नदियों के संगम पर स्थित है। यह जल दुर्ग की श्रेणी में आता है। यह खींची चौहान शासकों की शोर्य गाथाओं का साक्ष्य है। यहाँ पर ढोढ राजपूतों का शासन रहने के कारण ढोढगढ़ व धूलरगढ़ भी कहा जाता है। महाराजा जैतसिंह के शासन में हमीममुद्दीन चिश्ती यहाँ आये जो मिठै साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। इसलिए यहाँ मिठ्ठे साहब की दरगाह भी स्थित है। गागरोन के शासक सन्त पीपा भी हुए। जो कि फिरोज शाह तुगलक के समकालीन थे। अचलदास खींची की वचानिका से ज्ञात होता है कि गागरोन दुर्ग का प्रथम साका अचलदास के शासन काल में 1423 ई. में हुआ था। दूसरा साका महमूद खिलजी के समय अचलदास के पुत्र पाल्हणसिंह के काल में 1444 ई. में हुआ। खिलजी के विजय के उपरान्त इसका नाम मुस्तफाबाद रख दिया। इस दुर्ग में औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा, शत्रुओं पर पत्थर की वर्षा करने वाला, विशाल क्षेत्र होकूली कालीसिंध नदी के किनारे पहाड़ी पर राजनैतिक बंदी को मृत्युदण्ड देने के लिए पहाड़ी से गिराया जाने वाला स्थान गिदकराई स्थित है। यहाँ पर मनुष्य की नकल करने वाले राय तोते प्रसिद्ध है। कालीसिंध व आहू नदियों का संगम सांभल जी कहलाता है।
15. जालौर का किला: जालौर नगर के सूकड़ी नदी के किनारे स्थित गिरी दुर्ग है। इसे प्राचीन काल जाबालीपुर तथा जालुद्दर नाम से जाना जाता था। डाॅ. दशरथ शर्मा के अनुसार इसके निर्माणकर्ता प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम ने अरब आक्रमणों को रोकने के लिए करवाया था। गौरीशंकर ओजा इसका निर्माण कर्ता परमार शासकों को मानते हैं। कीर्तिपाल चैहानों की जालौर शाखा का संस्थापक था। जालौर किले के पास सोनलगढ़ पर्वत होने के कारण यहाँ के चैहान सोनगिरी चैहान कहलाये। इस किले में मशहूर सन्त पीर मलिक शाह की दरगाह स्थित है। सोनगिरी चैहान शासक कानहडदे के समय अलाउद्दीन के आक्रमण के समय जालौर का प्रसिद्ध साका हुआ था।
16. सिवाना दुर्ग: यह बाड़मेर में स्थित इस दुर्ग का निर्माण वीरनारायण पंवार जी की राजा भोज का पुत्र था, ने करवाया। 1305 ई. में इस दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तब इस दुर्ग का सांतलदेव शासक था। अलाउद्दीन ने विजय उपरान्त इस दुर्ग का नाम खैराबाद या ख्रिजाबाद कर दिया।
17. रणथम्भौर दुर्ग: यह सवाई माधोपुर जिले में स्थित एक गिरी दुर्ग हैं जो कि अची-बीची सात पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। इसका वास्तविक रवन्तहपुर था। अर्थात् रन की घाटी में स्थित नगर कालान्तर में यह रणस्तम्भुपर से रणथम्भौर हो गया। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी के लगभग अजमेर के चैहान शासकों द्वारा करवाया गया। 1301 ई. में अलाउद्दीन ने इस पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। उस समय यहाँ का शासक हम्मीर था जो शरणागत की रक्षा त्याग व बलिदान के लिए प्रसिद्ध रहे। इस युद्ध में रणथम्भौर का प्रथम साका हुआ था। इस दुर्ग में स्थित प्रमुख स्थल त्रिनेत्र गणेश मन्दिर, हम्मीर महल, अन्धेरी दरवाजा, वीर सैमरूद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, बादल महल, 32 खम्भों की छतरी, पुष्पक महल, गुप्त गंगा, जौरा-भौरा आदि स्थित है।
18. मण्डौर दुर्ग: यह जोधपुर जिले में स्थित है। यहाँ पर बौद्ध शैली से निर्मित दुर्ग था जो भूकम्प से नष्ट हो गया। यह प्राचीन मारवाड़ राज्य की राजधानी थी। इस दुर्ग में चूना-गारे के स्थान पर लोहे की किलों का प्रयोग किया गया है।
19. बसन्ती दुर्ग: महाराणा कुम्भा ने इसका निर्माण सिरोही जिले में पिण्डवाड़ा नामक स्थान पर करवाया। इसकी दिवारों के निर्माण में सूखी चिनाई का प्रयोग किया गया है। इस दुर्ग के निर्माण का उद्देश्य पश्चिमी सीमा व सिरोही के मध्य तंग रास्ते की सुरक्षा करना था। इस दुर्ग के दतात्रेय मुनि व सूर्य का मन्दिर है।
20. तिजारा का किला: अलवर जिले में तिजारा नगर में इस दुर्ग का निर्माण राव राजा बलवन्त सिंह ने 1835 में करवाया था। इसमें पूर्वी दिशा में एक बारहदरी तथा हवा महल का निर्माण करवाया गया था।
21. केसरोली दुर्ग: अलवर जिले में केसरोली भाव में यदुवंशी शासको द्वारा निर्मित।
22. किलोणगढ़: बाड़मेर में स्थित दुर्ग का निर्माण राव भीमोजी द्वारा करवाया गया।
23. बनेड़ा का किला: भीलवाड़ा जिले में स्थित यह दुर्ग निर्माण से लेकर अब तक अपने मूल रूप में यथावत है।
24. शेरगढ़ दुर्ग: धौलपुर जिले में चंबल नदी के किनारे राजा मालदेव द्वारा करवाया गया तथा शेरशाह सूरी ने इसका पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।
25. शाहबाद दुर्ग: बारां जिले में मुकुन्दरा पहाडियों में स्थित दुर्ग का निर्माण चौहान शासक मुकुटमणिदेव द्वारा करवाया गया।
26. नीमराणा का दुर्ग: अलवर जिले में स्थित पंचमहल के नाम से विख्यात किले का निर्माण चौहान शासकों द्वारा करवाया गया।
27. इन्दौर का किला: इसका निर्माणनिकुम्भों द्वारा अलवर जिले में करवाया गया। यह दुर्ग दिल्ली सल्तनत की आँख की किरकिरी थी।
28. राजगढ़ दुर्ग: कछवाहा शासक राजा प्रताप सिंह ने इसका निर्माण अलवर जिले में करवाया।
29. चौमू दुर्ग: उपनाम धाराधारगढ़ तथा रघुनाथगढ़। इसका निर्माण ठाकुर कर्णसिंह द्वारा करवाया गया।
30. कोटकास्ता का किला: यह जोधपुर महाराजा मानसिंह द्वारा नाथो (भीमनाथ) को प्रदान किया गया था। यह जालौर में स्थित है।
31. भाद्राजून का दुर्ग: इस दुर्ग का निर्माण रावचन्द्र सेन के शासनकाल में अकबर द्वारा हराये जाने पर करवाया गया।
32. किला अफगान किला: बाड़ी नदी पर धौलपुर में
33. जैना दुर्ग: बाड़मेर
34. मंगरोप दुर्ग: बाड़मेर
35. इन्द्ररगढ़ दुर्ग: कोटा
36. हम्मीरगढ़ दुर्ग: हम्मीरगढ़ – भीलवाड़ा
37. कन्नौज का किला: कन्नौज – चित्तौड़गढ़
38. कोटडे का किला: बाड़मेर
39. अमरगढ़ दुर्ग: भीलवाड़ा
40. सिवाड़ का किला: सवाई माधोपुर
41. राजा का किला: नावां (नागौर)
42. मनोहरथाना का किला: परवन व कालीसिंध नदी के संगम पर झालावाड़ इसमें भीलों की आराध्य देवी विश्ववति का मंदिर है।
43. ककोड़ का किला: टोंक
44. भूमगढ़ दुर्ग (अमीरगढ़) टोंक
45. गंगरार का किला: गंगरार,चित्तौडगढ़
46. कांकबाड़ी किला: अलवर के सरिस्का क्षेत्र
47. सज्जनगढ़ का किला: उदयपुर का मुकुटमणि
मंगलवार, 10 नवंबर 2015
Heart touching .... childhood diwali .....-दिल को छू गई....बचपन वाली दिवाली .....(happy diwali)
RAJASTHAN DISCOVER के सभी पाठको को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाए ये दिवाली आप सभी की ज़िंदगी में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आए
★Har Pal Sunhare phool Khilte rahe,
Kabhi Na Ho Kaanto Ka Saamna,
Zindagi Aapki Khushiyo Se Bhari Rahe,
Deepavali Par Humari Yahi Shubkamna★
Kabhi Na Ho Kaanto Ka Saamna,
Zindagi Aapki Khushiyo Se Bhari Rahe,
Deepavali Par Humari Yahi Shubkamna★
whatsapp की दुनिया से आप सभी के लिए एक छोटी सी कविता आपके सामने ला रहा हु उम्मीद है इसे पढ़ने के बाद आपकी कुछ पुरानी यादे ताजा हो जाएंगी
○○○○○●●●●●○○○○○
दिल को छू गई....
बचपन वाली दिवाली .....
○○○○○●●●●●○○○○○
दिल को छू गई....
बचपन वाली दिवाली .....
हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
माँ से खील में से धान बिनवाते हैं
खांड के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
खांड के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान से नहीं ,समय देकर सम्मान जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं .
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान से नहीं ,समय देकर सम्मान जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं .
उम्मीद है इस कविता से आप में से बहुत से लोगो की बचपन की यादे ताजा हो गयी होंगी होंगी भी क्यों नहीं बचपन होता ही ऐसा है जिसे हम कभी भूल ही नहीं सकते जब बचपन की यादे ताजा होती है तो बस फिर से बच्चा बन जाने का मन करता है अपनी इन बातो को यही स्टॉप करता हु वार्ना शायद पता नहीं बचपन की कौन कौन सी बाते यहाँ लिख दूंगा
चलते चलते आप सभी के लिए दीपावली के कुछ खास वॉलपेपर छोड़ कर जा रहा हु जो आपने मॉनिटर की शोभा बढ़ाएंगे
शुक्रवार, 6 नवंबर 2015
The wonderful temple of Rajasthan-राजस्थान के अद्भूत मंदिर
The wonderful temple of Rajasthan-राजस्थान के अद्भूत मंदिर
★ सोरसन (बारां) का ब्रह्माणी माता का मंदिर- यहाँ देवी की पीठ का श्रृंगार होता है. पीठ की ही पूजा होती है !
★ चाकसू(जयपुर) का शीतला माता का मंदिर- खंडित मूर्ती की पूजा समान्यतया नहीं होती है, पर शीतला माता(चेचक की देवी) की पूजा खंडित रूप में होती है !
★ बीकानेर का हेराम्ब का मंदिर- आपने गणेश जी को चूहों की सवारी करते देखा होगा पर यहाँ वे सिंह की सवारी करते हैं !
★ रणथम्भोर( सवाई माधोपुर) का गणेश मंदिर- शिवजी के तीसरे नेत्र से तो हम परिचित हैं लेकिन यहाँ गणेश जी त्रिनेत्र हैं ! उनकी भी तीसरी आँख है.
★ चांदखेडी (झालावाड) का जैन मंदिर- मंदिर भी कभी नकली होता है ? यहाँ प्रथम तल पर महावीर भगवान् का नकली मंदिर है, जिसमें दुश्मनों के डर से प्राण प्रतिष्ठा नहीं की गई. असली मंदिर जमीन के भीतर है !
★ रणकपुर का जैन मंदिर- इस मंदिर के 1444 खम्भों की कारीगरी शानदार है..कमाल यह है कि किसी भी खम्भे पर किया गया काम अन्य खम्भे के काम से.नहीं मिलता ! और दूसरा कमाल यह कि इतने खम्भों के जंगल में भी आप कहीं से भी ऋषभ देव जी के दर्शन कर सकते हैं, कोई खम्भा बीच में नहीं आएगा.
★गोगामेडी( हनुमानगढ़) का गोगाजी का मंदिर- यहाँ के पुजारी मुस्लिम हैं ! कमाल है कि उनको अभी तक काफिर नहीं कहा गया और न ही फतवा जारी हुआ है !
★नाथद्वारा का श्रीनाथ जी का मंदिर - चौंक जायेंगे श्रीनाथ जी का श्रृंगार जो विख्यात है, कौन करता है ? एक मुस्लिम परिवार करता है ! पीढ़ियों से कहते हैं कि इनके पूर्वज श्रीनाथजी की मूर्ति के साथ ही आये थे.
★ मेड़ता का चारभुजा मंदिर - सदियों से सुबह का पहला भोग यहाँ के एक मोची परिवार का लगता है ! ऊंच नीच क्या होती है ?
★ डूंगरपुर का देव सोमनाथ मंदिर- बाहरवीं शताब्दी के इस अद्भुत मंदिर में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट या गारे का उपयोग नहीं किया गया है ! केवल पत्थर को पत्थर में फंसाया गया है.
★बिलाडा(जोधपुर) की आईजी की दरगाह - नहीं जनाब, यह दरगाह नहीं है ! यह आईजी का मंदिर है, जो बाबा रामदेव की शिष्या थीं और सीरवियों की कुलदेवी हैं.
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रणकपुर का जैन मंदिर |
मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015
SUVRNA GIRI JALORE FORT-सुवर्ण गिरि दुर्ग ( जालोरदुर्ग)
सुवर्ण गिरि दुर्ग ( जालोर दुर्ग) ,JALORE FORT

Vijay Singh Pathik-विजय सिंह पथिक
विजय सिंह पथिक
विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर जिले के गुढ़ावाली अख्तियारपुर गाँव में 27 फरवरी 1888 को एक गुर्जर परिवार में हुआ। उनके पिता श्री हमीरमल गुर्जर तथा माता श्रीमती कमलकँवर थी। बचपन में ही अपने माता पिता के निधन हो जाने के कारण बालक भूप सिंह अपने बहन बहनोई के पास इंदौर आ गए। उन्होंने विधिवत शिक्षा केवल पाँचवी तक ही ग्रहण की किंतु बहन से हिंदी तथा बहनोई से अंग्रेजी, अरबी व फारसी की शिक्षा ली। कालांतर में उन्होंने संस्कृत, उर्दू, मराठी, बांग्ला, गुजराती तथा राजस्थानी भी सीख ली। वह अपने जीवन के प्रारम्भ से ही क्रान्तिकारी थे। इंदौर में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल से हुई जिन्होंने उनका परिचय रासबिहारी बोस से कराया। रासबिहारी बोस ने पंजाब, दिल्ली, उत्तर भारत तथा राजस्थान में 21 फरवरी 1915 को एक साथ सशस्त्र क्रांति करने की योजना बनाई। इस क्रांति का राजस्थान में लक्ष्य अजमेर, ब्यावर एवं नसीराबाद थे तथा संयोजक राव गोपाल सिंह खरवा थे। क्रान्तिकारियों ने पथिक जी को राजस्थान में शस्र संग्रह के लिए नियुक्त किया गया था। पथिक ने यहाँ पहुँच कर भीलों, मीणों और किसानों में राजनैतिक चेतना जागृत की। 1913 में उदयपुर राज्य की जागीर बिजौलिया ठिकाने के भयंकर अत्याचारों तथा 84 प्रकार के लाग बाग जैसे भारी करों व बेगार के बोझ से त्रस्त किसानों ने साधु सीताराम के नेतृत्व में किसान आन्दोलन आरम्भ किया तथा किसानों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए भूमि कर देने से इन्कार कर दिया और एक वर्ष के लिए खेती करना स्थगित कर दिया। इस समय जागीरदारों द्वारा बिजौलिया के लोगों पर लाग बाग जैसे 84 प्रकार के भारी कर लगाए गए थे और उनसे जबरदस्ती बेगार ली जाती थी। बिजौलिया आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य इन अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाना था। 1917 में इस आन्दोलन का नेतृत्व विजयसिंह पथिक ने संभाल लिया था तथा किसानों ने अन्याय और शोषण के विरुद्ध किसानों के संगठन "उपरमाल पंचायत बोर्ड" नामक एक जबरदस्त संगठन की स्थापना की, जिसका सरपंच मन्नालाल पटेल को बनाया गया। इस समय किसानों ने विजयसिंह पथिक के आह्वान पर प्रथम विश्व युद्ध के संबंध में लिया जाने वाला युद्ध का चंदा देने से इन्कार कर दिया। तब बिजौलिया आन्दोलन इतना उग्र हो गया था कि ब्रिटिश सरकार को इस आन्दोलन में रुस के बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने महाराणा व बिजौलिया के ठाकुर को आदेश दिया कि वे आन्दोलन को कुचल दें। आदेश की पालना में बिजौलिया के ठाकुर ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनकारी नीतियाँ अपनाई। हजारों किसानों और उनके प्रतिनिधियों को जेलों में ठूंस दिया गया, जिनमें साधु सीतारामदास, रामनारायण चौधरी एवं माणिक्यलाल वर्मा भी शामिल थे। इस समय पथिक भागकर कोटा राज्य की सीमा में चले गए और वहीं से आन्दोलन का नेतृत्व एवं संचालन किया। बिजौलिया के ठाकुर ने आन्दोलन को निर्ममतापूर्वक कुचलने का प्रयास किया, किन्तु किसानों ने समपंण करने से इन्कार कर दिया। बिजौलिया का यह समूचा आन्दोलन राष्ट्रीय भावना से प्रेरित था तथा किसान परस्पर मिलने पर वंदे मातरम् का संबोधन करते थे। प्रत्येक स्थान और आयोजन में वन्दे मातरम् की आवाज सुनाई देती थी। पथिक जी ने इसकी खबरों को देश में पहुँचाने के लिए 'प्रताप' के संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी से संपर्क किया। उनके समाचार पत्र के माध्यम से इस आन्दोलन का प्रसिद्धि सारे राष्ट्र में फैल गई। महात्मा गाँधी, तिलक आदि नेताओं ने दमन नीति की निन्दा की। जब आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया, तब राजस्थान में ए० जी० सर हालैण्ड एवं मेवाड़ रेजीडेन्ट विलकिन्सन समस्या का समाधान निकालने के लिए बिजौलिया पहुँचे और किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। मेवाड़ राज्य व बिजौलिया ठिकानों के प्रतिनिधियों ने भी वार्ता में भाग लिया। परिणामस्वरूप बिजौलिया के ठाकुर तथा वहाँ के किसानों के बीच एक समझौता हो गया। किसानों की कई मांगें स्वीकार कर ली गईं, उनमें 35 लागत व बेगार प्रथा की समाप्ति भी शामिल थी। इस प्रकार बिजौलिया का किसान आन्दोलन एकबारगी 11 फरवरी 1922 में वन्दे मातरम् के नारों के बीच सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। राजस्थान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले इस महान स्वतन्त्रता सेनानी का निधन 28मई 1954को अजमेर मे हुआ।
जाने जयपुर के गुलाल गोठे के बारेमें


वैसे नाम से तो लगता है कि गुलाल गोठा कोई मिठाई का नाम हैं ।पर यह मिठाई है नही ।तो फिर है क्या और इसका क्या प्रयोग होता हैं और कैसे बनता है जाने आज की इस पोस्ट में गुलाल गोठा, लाख को गरम करके उसे फुला कर गेंद का आकार देकर उसमे गुलाल भर कर बनाया जाता हैं।पुराने समय मे जयपुर के राजा महाराजा अपनी जनता के साथ होली खेलने के लिए इसका प्रयोग करते थे।राजा जनता पर इस गुलाल गोठे को फेकते जिससे इसके अन्दर का गुलाल बाहर निकल कर जनता पर लग जाता ।इस प्रकार जनता राजा के साथ होली खेल कर बडी प्रसन्न होती थी । गुलाल गोठे कि खासियत यह है कि इससे किसी पर फेकने पर बिना चोट लगे यह फुट जाता हैं और इसके अन्दर का गुलाल बाहर निकल जाता हैं।समय के साथ इसका प्रयोग घटता जा रहा हैं पर आज भी होली के समय जयपुर कि विशेष पहचान बना हुआ हैं।जयपुर मे मनिहारो कि गली मे मुस्लिम समुदाय के लोगो के द्वारा इसे बनाया जाता हैं और यह उनकी रोजी रोटी का एक जरिया हैं।
Rajasthan state bird godavana-राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण
Rajasthan state bird godavana-राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण
राजस्थान राज्य पक्षी
गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ; वैज्ञानिक नाम: (Ardeotis nigriceps) एक बड़े आकार का पक्षी है जो भारत के राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है। उडने वाली.पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षियों में है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी 'सोहन चिडिया ' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है।
गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। यह सर्वाहारी पक्षी है। इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है। यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है।
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राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण |
सोमवार, 12 अक्तूबर 2015
Seven Stages of formation or PoliticalIntegration of Rajasthan (1948-1956 )-राजस्थान के निर्माण या राजनैतिकएकीकरण के सात चरण एक दृष्टि में
संघ का नाम, सम्मिलित हुई रियासतें / राज्य , एकीकरण दिनांक-
( Name of Group, States, Date of Integration )-
( Name of Group, States, Date of Integration )-
1मत्स्य संघ Matsya Union-
अलवर भरतपुर धौलपुर करौली Alwar, Bharatpur, Dholpur, Karauli
दिनांक 17-03-1948
2.
राजस्थान संघ Rajasthan Union -बाँसवाड़ा बूँदी डूंगरपुर झालावाड़ किशनगढ़ कोटा प्रतापगढ़ शाहपुरा और टौंक
Banswara, Bundi, Dungarpur, Jhalawar, Kishangarh, Kota, Pratapgarh, Shahpura, Tonk.
दिनांक 25-03-1948
3.
संयुक्त राजस्थान संघ United State of Rajasthan-

उदयपुर रियासत का संयुक्त राजस्थान में विलय Udaipur also joined with the other Union of Rajasthan.
दिनांक 18-04-1948
4. वृहद् राजस्थान Greater Rajasthan - बीकानेर जयपुर जैसलमेर जोधपुर भी संयुक्त राजस्थान में जुड़े
Bikaner, Jaipur, Jaisalmer & Jodhpur also joined with the United State of Rajasthan.
दिनांक 30-03-1949
5.
संयुक्त वृहद् राजस्थान United State of Greater Rajasthan -
दिनांक 15-05-1949
6.
राजस्थान संघ United Rajasthan - आबू और दिलवाडा को छोड़ कर सिरोही
राज्य का संयुक्त वृहद् राजस्थान के 18 राज्यो में विलय
18 States of United Rajasthan merged with Princely State Sirohi except Abu & Delwara.
दिनांक 26-01-1950
7.
पुनर्गठित राजस्थान या आधुनिक राजस्थान Re-organised Rajasthan-

इसमें State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ के तहत अजमेर तथा रियासतकालीन राज्य सिरोही का अंग रहे आबूरोड तालुका { आबू व दिलवाड़ा } जो पूर्व में बंबई राज्य में मिल चुका था एवं पूर्व मध्य भारत के अंग रहे सुनेल टप्पा का राजस्थान संघ में विलय। साथ ही झालावाड़ जिले के सिरोंज उप जिला को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया।
Under the State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ State of Ajmer, Abu Road Taluka, former part of princely State Sirohi which was merged in former Bombay State & Sunel Tappa region of the former Madhya Bharat merged with Rajasthan & Sironj sub district of Jhalawar district was transferred to Madhya Pradesh.
दिनांक 01-11-1956
Bundi's Farmers Agitation बूंदी काकिसान आंदोलन -
बूंदी का किसान आंदोलन-
राजस्थान में भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के बावजूद भी गावों में धीरे-धीरे महाजनों का वर्चस्व बढ़ने लगे। 'साद' प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में महाजन से लगान की अदायगी का आश्वासन लिया जाने लगा। इस व्यवस्था से किसान अधिकाधिक रूप से महाजनों पर आश्रित होने लगे तथा उनके चंगुल में फंसने लगे। 19 वीं सदी के अंत में व 20 वीं सदी के शुरू में जागीरदारों द्वारा किसानों पर नए-नए कर लगाये जाने लगे और उनसे बड़ी धनराशि एकत्रित की जाने लगी। जागीरदारी व्यवस्था शोषणात्मक हो गई। किसानों से अनेक करों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के लाग-बाग लेने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई। ये लागें दो प्रकार की थी-
1. स्थाई लाग
2. अस्थाई लाग (इन्हें कभी-कभी लिया जाता था।)
इस कारण से जागीर क्षेत्र में किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई जिसके कारण किसानों में रोष उत्पन्न हुआ तथा वे आन्दोलन करने को उतारू हो गए।
बिजोलिया, बेगूं और अन्य क्षेत्र के किसानों के समान ही बूंदी राज्य के
किसानों को भी अनेक प्रकार की लागतों (लगभग 25%), बेगार एवं ऊँची दरों पर लगान की रकम देनी पड़ रही थी। बूंदी राज्य में वसूले जा रहे कई करों के अलावा 1 रुपये पर 1 आने की दर से स्थाई रूप से युद्धकोष के लिए धनराशि ली जाने लगी। किसानों के लिए यह अतिरिक्त भर असहनीय था। किसान राजकीय अत्याचारों से परेशान होने लगे। मेवाड़ राज्य के बिजोलिया में हुए किसान आन्दोलन की कहानियां पूरे राजस्थान में व्याप्त हुई। अप्रेल 1922 में बिजोलिया की सीमा से जुड़े बूंदी राज्य के 'बराड़' क्षेत्र के त्रस्त किसानों ने आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। इसीलिए इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं।
किसानों को 'राजस्थान सेवा संघ' का मार्गदर्शन प्राप्त था। किसानों ने राज्य
की सरकार को अनियमित लाग, बेगार व भेंट आदि देना बंद कर दिया। आन्दोलन का नेतृत्व 'राजस्थान सेवा संघ' के कर्मठ कार्यकर्ता 'नयनू राम शर्मा' कर रहे थे। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया। राज्य की ओर से बातचीत द्वारा किसानों की समस्याओं एवं शिकायतों को दूर करने कई प्रयास हुए, किन्तु वे विफल हो गए। तब राज्य की सरकार ने दमनात्मक नीति अपनाना शुरू किया और निहत्थे किसानों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां व गोलियां बरसाई गई। सत्याग्रह करने वाली स्त्रियों पर घुड़सवारों द्वारा घोड़े दौड़कर एवं भाले चलाकर अमानवीय अत्याचार किया गया। पुलिस द्वारा किसानों पर की गई गोलीबारी में झण्डा गीत गाते हुए ' नानकजी भील' शहीद हो गए। आन्दोलनकारियों के नेता नयनू राम शर्मा, नारायण लाल, भंवरलाल आदि एवं राजस्थान सेवा संघ के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर मुकदमे चलाए गए। नयनू राम शर्मा को राजद्रोह के अपराध में 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई।
यद्यपि यह आन्दोलन असफल रहा किन्तु इस आन्दोलन से यहाँ के किसानों को कुछ रियायतें अवश्य प्राप्त हुई और भ्रष्ट अधिकारियों को दण्डित किया गया
तथा राज्य के प्रशासन में सुधारों का सूत्रपात हुआ। बूंदी का किसान आन्दोलन राज्य प्रशासन के विरुद्ध था, जबकि मेवाड़ राज्य के बिजोलिया के आन्दोलन में किसानों ने अधिकांशतः जागीर-व्यवस्था का विरोध किया था। बूंदी के किसान आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राजस्थान में भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के बावजूद भी गावों में धीरे-धीरे महाजनों का वर्चस्व बढ़ने लगे। 'साद' प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में महाजन से लगान की अदायगी का आश्वासन लिया जाने लगा। इस व्यवस्था से किसान अधिकाधिक रूप से महाजनों पर आश्रित होने लगे तथा उनके चंगुल में फंसने लगे। 19 वीं सदी के अंत में व 20 वीं सदी के शुरू में जागीरदारों द्वारा किसानों पर नए-नए कर लगाये जाने लगे और उनसे बड़ी धनराशि एकत्रित की जाने लगी। जागीरदारी व्यवस्था शोषणात्मक हो गई। किसानों से अनेक करों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के लाग-बाग लेने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई। ये लागें दो प्रकार की थी-
1. स्थाई लाग
2. अस्थाई लाग (इन्हें कभी-कभी लिया जाता था।)
इस कारण से जागीर क्षेत्र में किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई जिसके कारण किसानों में रोष उत्पन्न हुआ तथा वे आन्दोलन करने को उतारू हो गए।
बिजोलिया, बेगूं और अन्य क्षेत्र के किसानों के समान ही बूंदी राज्य के
किसानों को भी अनेक प्रकार की लागतों (लगभग 25%), बेगार एवं ऊँची दरों पर लगान की रकम देनी पड़ रही थी। बूंदी राज्य में वसूले जा रहे कई करों के अलावा 1 रुपये पर 1 आने की दर से स्थाई रूप से युद्धकोष के लिए धनराशि ली जाने लगी। किसानों के लिए यह अतिरिक्त भर असहनीय था। किसान राजकीय अत्याचारों से परेशान होने लगे। मेवाड़ राज्य के बिजोलिया में हुए किसान आन्दोलन की कहानियां पूरे राजस्थान में व्याप्त हुई। अप्रेल 1922 में बिजोलिया की सीमा से जुड़े बूंदी राज्य के 'बराड़' क्षेत्र के त्रस्त किसानों ने आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। इसीलिए इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं।
किसानों को 'राजस्थान सेवा संघ' का मार्गदर्शन प्राप्त था। किसानों ने राज्य
की सरकार को अनियमित लाग, बेगार व भेंट आदि देना बंद कर दिया। आन्दोलन का नेतृत्व 'राजस्थान सेवा संघ' के कर्मठ कार्यकर्ता 'नयनू राम शर्मा' कर रहे थे। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया। राज्य की ओर से बातचीत द्वारा किसानों की समस्याओं एवं शिकायतों को दूर करने कई प्रयास हुए, किन्तु वे विफल हो गए। तब राज्य की सरकार ने दमनात्मक नीति अपनाना शुरू किया और निहत्थे किसानों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां व गोलियां बरसाई गई। सत्याग्रह करने वाली स्त्रियों पर घुड़सवारों द्वारा घोड़े दौड़कर एवं भाले चलाकर अमानवीय अत्याचार किया गया। पुलिस द्वारा किसानों पर की गई गोलीबारी में झण्डा गीत गाते हुए ' नानकजी भील' शहीद हो गए। आन्दोलनकारियों के नेता नयनू राम शर्मा, नारायण लाल, भंवरलाल आदि एवं राजस्थान सेवा संघ के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर मुकदमे चलाए गए। नयनू राम शर्मा को राजद्रोह के अपराध में 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई।
यद्यपि यह आन्दोलन असफल रहा किन्तु इस आन्दोलन से यहाँ के किसानों को कुछ रियायतें अवश्य प्राप्त हुई और भ्रष्ट अधिकारियों को दण्डित किया गया
तथा राज्य के प्रशासन में सुधारों का सूत्रपात हुआ। बूंदी का किसान आन्दोलन राज्य प्रशासन के विरुद्ध था, जबकि मेवाड़ राज्य के बिजोलिया के आन्दोलन में किसानों ने अधिकांशतः जागीर-व्यवस्था का विरोध किया था। बूंदी के किसान आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
Aamer's Kachwah dynasty-आमेर का कछवाहा वंश
1 . कछवाहा वंश राजस्थान के इतिहास मंच पर बारहवीं सदी से दिखाई देता है। उनको प्रारम्भ में मीणों और बड़गुर्जरों का सामना करना पड़ा था। इस वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हराय व पृथ्वीराज बडे़ प्रभावशाली थे जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था। पृथ्वीराज, राणा सांगा का सामन्त होने के नाते खानवा के युद्ध (1527) में बाबर के विरुद्ध लड़ा था। पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद कछवाहों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। गृहकलह तथा अयोग्य शासकों से राज्य निर्बल हो रहा था। 1547 में भारमल ने आमेर की बागडोर हाथ में ली। भारमल ने उदीयमान अकबर की शक्ति का महत्त्व समझा और 1562 में उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी ज्येष्ठ पुत्री हरकूबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया। अकबर की यह बेगम मरियम-उज्जमानी के नाम से विख्यात हुई। भारमल पहला राजपूत था जिसने मुगल से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे
2. भारमल के पश्चात् कछवाहा शासक मानसिंह अकबर के दरबार का योग्य
सेनानायक था। रणथम्भौर के 1569 के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवन्तदास अकबर के साथ थे। मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहार और बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था तथा उसे अकबर ने 7000 मनसब प्रदान किया था। मानसिंह ने आमेर में शिलादेवी मन्दिर, जगत शिरोमणि मन्दिर इत्यादि का निर्माण करवाया। इसके समय में दादूदयाल ने ’वाणी’ की रचना की थी। मानसिंह के पश्चात् के शासकों में मिर्जा राजा जयसिंह (1621- 1667) महत्त्वपूर्ण था, जिसने 46 वर्षों तक शासन किया। इस दौरान उसे जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे शाहजहाँ ने ’मिर्जा राजा ’का खिताब प्रदान किया। औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को मराठों के विरुद्ध दक्षिण भारत में नियुक्त किया था। जयसिंह ने पुरन्दर में शिवाजी को पराजित कर मुगलों से संधि के लिए बाध्य किया। 11 जून, 1665 को शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरन्दर की संधि हुई थी, जिसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर शिवाजी ने मुगलों की सेवा में उपस्थित होने का वचन दिया। इस प्रकार पुरन्दर की संधि जयसिंह की राजनीतिक दूरदर्शिता का एक सफल परिणाम थी। जयसिंह के बनवाये आमेर के महल तथा जयगढ़ और औरंगाबाद में जयसिंहपुरा उसकी वास्तुकला के प्रति रुचि को प्रदर्शित करते हैं। इसके दरबार में हिन्दी का प्रसिद्ध कवि बिहारीमल था।
सेनानायक था। रणथम्भौर के 1569 के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवन्तदास अकबर के साथ थे। मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहार और बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था तथा उसे अकबर ने 7000 मनसब प्रदान किया था। मानसिंह ने आमेर में शिलादेवी मन्दिर, जगत शिरोमणि मन्दिर इत्यादि का निर्माण करवाया। इसके समय में दादूदयाल ने ’वाणी’ की रचना की थी। मानसिंह के पश्चात् के शासकों में मिर्जा राजा जयसिंह (1621- 1667) महत्त्वपूर्ण था, जिसने 46 वर्षों तक शासन किया। इस दौरान उसे जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे शाहजहाँ ने ’मिर्जा राजा ’का खिताब प्रदान किया। औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को मराठों के विरुद्ध दक्षिण भारत में नियुक्त किया था। जयसिंह ने पुरन्दर में शिवाजी को पराजित कर मुगलों से संधि के लिए बाध्य किया। 11 जून, 1665 को शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरन्दर की संधि हुई थी, जिसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर शिवाजी ने मुगलों की सेवा में उपस्थित होने का वचन दिया। इस प्रकार पुरन्दर की संधि जयसिंह की राजनीतिक दूरदर्शिता का एक सफल परिणाम थी। जयसिंह के बनवाये आमेर के महल तथा जयगढ़ और औरंगाबाद में जयसिंहपुरा उसकी वास्तुकला के प्रति रुचि को प्रदर्शित करते हैं। इसके दरबार में हिन्दी का प्रसिद्ध कवि बिहारीमल था।
3. कछवाहा शासकों में सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743) का अद्वितीय स्थान है। वह राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, खगोलविद्, विद्वान एवं साहित्यकार तथा कला का पारखी था। वह मालवा का मुगल सूबेदार रहा था। जयसिंह ने मुगल प्रतिनिधि के रूप में बदनसिंह के सहयोग से जाटों का दमन किया। सवाई जयसिंह ने राजपूताना में अपनी स्थिति मजबूत करने तथा मराठों का मुकाबला करने के उद्देश्य से 17 जुलाई,1734 को हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूत राजाओं का
सम्मेलन आयोजित किया। इसमें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, किशनगढ़, नागौर, बीकानेर आदि के शासकों ने भाग लिया था परन्तु इस सम्मेलन का जो परिणाम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ, क्योंकि राजस्थान के शासकों के स्वार्थ भिन्न-भिन्न थे। सवाई जयसिंह अपना प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से बूँदी के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर स्वयं वहाँ का सर्वेसर्वा बन बैठा, परन्तु बूँदी के बुद्धसिंह की पत्नी अमर कुँवरि ने, जो जयसिंह की बहिन थी, मराठा मल्हारराव होल्कर को अपना राखीबन्द भाई बनाकर और धन का लालच देकर बूँदी आमंत्रित किया जिससे होल्कर और सिन्धिया ने बूँदी पर आक्रमण कर दिया। सवाई जयसिंह संस्कृत और फारसी का विद्वान होने के साथ गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पण्डित था। उसने 1725 में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुगल सम्राट के नाम पर ’जीजमुहम्मदशाही ’नाम रखा। उसने 'जयसिंह कारिका ’नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। सवाई जयसिंह की महान् देन जयपुर है, जिसकी उसने 1727 में स्थापना की थी। जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। नगर निर्माण के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का अनूठा है, जिसकी समकालीन और वतर्मानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। जयपुर में जयसिंह ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ) किले का निर्माण करवाया तथा जयगढ़ किले में जयबाण नामक तोप बनवाई। उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पांच वैधशालाओं (जन्तर- मन्तर) का निर्माण ग्रह- नक्षत्रादि की गति को सही तौर से जानने के लिए करवाया जयपुर के जन्तर-मन्तर में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ’सूर्य घड़ी’ है, जिसे ’सम्राट यंत्र ’के नाम से जाना जाता है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। धर्मरक्षक होने के नाते उसने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया। वह अन्तिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परम्परा के अनुकूल अश्वमेध यज्ञ किया। इस प्रकार सवाई जयसिंह अपने शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्याति प्राप्त व्यक्ति बन गया था, परन्तु वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर न उठ सका।(साभार- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की राजस्थान अध्ययन की पुस्तक)
सम्मेलन आयोजित किया। इसमें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, किशनगढ़, नागौर, बीकानेर आदि के शासकों ने भाग लिया था परन्तु इस सम्मेलन का जो परिणाम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ, क्योंकि राजस्थान के शासकों के स्वार्थ भिन्न-भिन्न थे। सवाई जयसिंह अपना प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से बूँदी के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर स्वयं वहाँ का सर्वेसर्वा बन बैठा, परन्तु बूँदी के बुद्धसिंह की पत्नी अमर कुँवरि ने, जो जयसिंह की बहिन थी, मराठा मल्हारराव होल्कर को अपना राखीबन्द भाई बनाकर और धन का लालच देकर बूँदी आमंत्रित किया जिससे होल्कर और सिन्धिया ने बूँदी पर आक्रमण कर दिया। सवाई जयसिंह संस्कृत और फारसी का विद्वान होने के साथ गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पण्डित था। उसने 1725 में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुगल सम्राट के नाम पर ’जीजमुहम्मदशाही ’नाम रखा। उसने 'जयसिंह कारिका ’नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। सवाई जयसिंह की महान् देन जयपुर है, जिसकी उसने 1727 में स्थापना की थी। जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। नगर निर्माण के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का अनूठा है, जिसकी समकालीन और वतर्मानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। जयपुर में जयसिंह ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ) किले का निर्माण करवाया तथा जयगढ़ किले में जयबाण नामक तोप बनवाई। उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पांच वैधशालाओं (जन्तर- मन्तर) का निर्माण ग्रह- नक्षत्रादि की गति को सही तौर से जानने के लिए करवाया जयपुर के जन्तर-मन्तर में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ’सूर्य घड़ी’ है, जिसे ’सम्राट यंत्र ’के नाम से जाना जाता है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। धर्मरक्षक होने के नाते उसने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया। वह अन्तिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परम्परा के अनुकूल अश्वमेध यज्ञ किया। इस प्रकार सवाई जयसिंह अपने शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्याति प्राप्त व्यक्ति बन गया था, परन्तु वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर न उठ सका।(साभार- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की राजस्थान अध्ययन की पुस्तक)
शनिवार, 10 अक्तूबर 2015
Exam Guidance Quiz, Part-6-परीक्षा मार्गदर्शन प्रश्नोत्तरी, भाग-6
1. राजस्थान के बजट घोषणा 2013 के अन्तर्गत किस गाँव में पक्षी अभ्यारण्य स्थापित किया गया है?
(अ) फलौदी (जिला- जोधपुर)
(ब) बड़ोपल (जिला- हनुमानगढ़)
(स) बाघेरी (जिला- राजसमन्द)
(द) जमवारामगढ़ (जिला- जयपुर)
उत्तर- ब
2. राजस्थान के किस वन्यजीव क्षेत्र को एशिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रजनन स्थली कहा जाता है?
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर
(ब) सोरसन, बारां
(स) संवत्सर-कोटसर, बीकानेर
(द) धवा डोली, जोधपुर
उत्तर- अ
3. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक वन्य जीव अभयारण्य है?
(अ) राजसमन्द
(ब) हनुमानगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- स
4. राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावन के संरक्षण हेतु प्रसिद्ध दो आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौन-कौनसे हैं?
(अ) धावा डोली, गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(ब) कुंवालजी (सवाईमाधोपुर),
सोंखलिया (अजमेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर), सोरसन
(बारां)
(द) सोरसन (बारां), सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- द
5. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र है?
(अ) जोधपुर
(ब) प्रतापगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
6. राजस्थान का सबसे बड़ा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) संवत्सर-कोटसर (बीकानेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- ब
7. राजस्थान का सबसे छोटा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) धोरीमन्ना - बाड़मेर
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सैथल सागर - दौसा
उत्तर- द
8. राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1 नवम्बर 1980 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) इनमे से कोई नहीं
उत्तर- स
9. राजस्थान का द्वितीय राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) केवलादेव घना
उत्तर- द
10. राजस्थान का 1985 में विश्व धरोहर के रूप में घोषित अभयारण्य है -
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर- अ
11. राजस्थान का सन 1974 में घोषित प्रथम बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- स
12. राजस्थान का सन 1978 में घोषित द्वितीय बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- द
13. राजस्थान का कौनसा अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान नहीं है?
(अ) मरू उद्यान
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- ब
14. साथीन व ढेंचू आखेट (शिकार) निषिद्ध क्षेत्र किस जिले में है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
15. आकल वुड फॉसिल पार्क (आकल जीवाश्म क्षेत्र) किस जिले में स्थित है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- स
16. टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल भारत की सबसे छोटी बाघ परियोजना है -
(अ) गिर (गुजरात)
(ब) कान्हा किसली (म. प्र.)
(स) रणथंभौर (राजस्थान)
(द) सरिस्का (राजस्थान)
उत्तर- स
17. किसे भारत में बाघ परियोजना के जनक माना जाता है?
(अ) कैलाश सांखला को
(ब) डॉ. सालिम अली को
(स) कैलाश विजय को
(द) राजेंद्र सिंह को
उत्तर- अ
18. सीतामाता अभयारण्य किन दो जिलों में विस्तृत है?
(अ) चितौडगढ़ व राजसमन्द
(ब) प्रतापगढ व उदयपुर
(स) प्रतापगढ व चितौडगढ़
(द) चितौडगढ़ व बाँसवाड़ा
उत्तर- ब
19. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 राजस्थान में किस वर्ष लागू हुआ?
(अ) 1972 को
(ब) 1973 को
(स) 1974 को
(द) 1976 को
उत्तर- ब
20. सीतामाता अभयारण्य का अधिकांश क्षेत्र किस जिले में आता है?
(अ) राजसमन्द
(ब) उदयपुर
(स) प्रतापगढ
(द) बाँसवाड़ा
उत्तर- स
(अ) फलौदी (जिला- जोधपुर)
(ब) बड़ोपल (जिला- हनुमानगढ़)
(स) बाघेरी (जिला- राजसमन्द)
(द) जमवारामगढ़ (जिला- जयपुर)
उत्तर- ब
2. राजस्थान के किस वन्यजीव क्षेत्र को एशिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रजनन स्थली कहा जाता है?
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर
(ब) सोरसन, बारां
(स) संवत्सर-कोटसर, बीकानेर
(द) धवा डोली, जोधपुर
उत्तर- अ
3. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक वन्य जीव अभयारण्य है?
(अ) राजसमन्द
(ब) हनुमानगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- स
4. राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावन के संरक्षण हेतु प्रसिद्ध दो आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौन-कौनसे हैं?
(अ) धावा डोली, गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(ब) कुंवालजी (सवाईमाधोपुर),
सोंखलिया (अजमेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर), सोरसन
(बारां)
(द) सोरसन (बारां), सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- द
5. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र है?
(अ) जोधपुर
(ब) प्रतापगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
6. राजस्थान का सबसे बड़ा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) संवत्सर-कोटसर (बीकानेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- ब
7. राजस्थान का सबसे छोटा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) धोरीमन्ना - बाड़मेर
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सैथल सागर - दौसा
उत्तर- द
8. राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1 नवम्बर 1980 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) इनमे से कोई नहीं
उत्तर- स
9. राजस्थान का द्वितीय राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) केवलादेव घना
उत्तर- द
10. राजस्थान का 1985 में विश्व धरोहर के रूप में घोषित अभयारण्य है -
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर- अ
11. राजस्थान का सन 1974 में घोषित प्रथम बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- स
12. राजस्थान का सन 1978 में घोषित द्वितीय बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- द
13. राजस्थान का कौनसा अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान नहीं है?
(अ) मरू उद्यान
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- ब
14. साथीन व ढेंचू आखेट (शिकार) निषिद्ध क्षेत्र किस जिले में है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
15. आकल वुड फॉसिल पार्क (आकल जीवाश्म क्षेत्र) किस जिले में स्थित है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- स
16. टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल भारत की सबसे छोटी बाघ परियोजना है -
(अ) गिर (गुजरात)
(ब) कान्हा किसली (म. प्र.)
(स) रणथंभौर (राजस्थान)
(द) सरिस्का (राजस्थान)
उत्तर- स
17. किसे भारत में बाघ परियोजना के जनक माना जाता है?
(अ) कैलाश सांखला को
(ब) डॉ. सालिम अली को
(स) कैलाश विजय को
(द) राजेंद्र सिंह को
उत्तर- अ
18. सीतामाता अभयारण्य किन दो जिलों में विस्तृत है?
(अ) चितौडगढ़ व राजसमन्द
(ब) प्रतापगढ व उदयपुर
(स) प्रतापगढ व चितौडगढ़
(द) चितौडगढ़ व बाँसवाड़ा
उत्तर- ब
19. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 राजस्थान में किस वर्ष लागू हुआ?
(अ) 1972 को
(ब) 1973 को
(स) 1974 को
(द) 1976 को
उत्तर- ब
20. सीतामाता अभयारण्य का अधिकांश क्षेत्र किस जिले में आता है?
(अ) राजसमन्द
(ब) उदयपुर
(स) प्रतापगढ
(द) बाँसवाड़ा
उत्तर- स
(SpecialEconomic Zones-SEZ in Rajasthan)-राजस्थान में विशेष आर्थिक क्षेत्र
राजस्थान की दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पश्चिमी तट के बंदरगाहों से समीपता इस राज्य को निर्यात-उन्मुख औद्योगिक विकास के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं। प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई फ्रेट कॉरिडोर का 40% भाग राजस्थान से गुजरता है जो यहाँ इस कॉरिडोर में विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में औद्योगिक बेल्ट के विकास के लिए भारी संभावनाएं उत्पन्न करता है। सरकार का मुख्य उद्देश्य राज्य में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा निर्मित करने तथा उद्योगों के लिए परेशानी मुक्त वातावरण प्रदान करने में सक्षम बनाने हेतु विशेष रूप से चिह्नित आर्थिक क्षेत्र विकसित करने का है।सरकार द्वारा रत्न एवं आभूषण, हस्तशिल्प, ऊनी कालीन आदि क्षेत्रों में राज्य की अंतर्निहित क्षमता का दोहन करने के लिए ''उत्पाद विशिष्ट विशेष आर्थिक क्षेत्रों'' के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। 165.15 अरब के निवेश की उम्मीद के साथ छह विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) को पहले से ही अधिसूचित किया जा चुका है जो निम्नांकित हैं-
1. महिंद्रा वर्ल्ड सिटी (जयपुर) लिमिटेड,
जयपुर
2. सोमानी वर्स्टेड लिमिटेड, खुशखेडा,
भिवाड़ी, अलवर
3. जेनपैक्ट इंफ्रास्ट्रक्चर (जयपुर) प्रा.
लिमिटेड, जयपुर
4. वाटिका जयपुर सेज डेवलपर्स लिमिटेड,
जयपुर
5. मानसरोवर औद्योगिक विकास निगम,
जोधपुर
6. आरएनबी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट
लिमिटेड, बीकानेर (270 करोड़ रुपये)
1. महिंद्रा वर्ल्ड सिटी (जयपुर) लिमिटेड,
जयपुर
2. सोमानी वर्स्टेड लिमिटेड, खुशखेडा,
भिवाड़ी, अलवर
3. जेनपैक्ट इंफ्रास्ट्रक्चर (जयपुर) प्रा.
लिमिटेड, जयपुर
4. वाटिका जयपुर सेज डेवलपर्स लिमिटेड,
जयपुर
5. मानसरोवर औद्योगिक विकास निगम,
जोधपुर
6. आरएनबी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट
लिमिटेड, बीकानेर (270 करोड़ रुपये)
सेज में निम्नांकित क्षेत्रों में विकास की क्षमता मौजूद है-
●रत्न और आभूषण
●मल्टी सर्विसेज (अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा, जैवप्रौद्योगिकी, आईटीईएस)
●आईटी
●ऑटो कॉम्पोनेंट्स
●कृषि आधारित उत्पाद
●मुक्त व्यापार और भंडारण
●नवीकरण स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा के उत्पादन (सौर, पवन)
●चिकित्सा पर्यटन
●वस्त्र और परिधान
●पत्थर
●रत्न और आभूषण
●मल्टी सर्विसेज (अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा, जैवप्रौद्योगिकी, आईटीईएस)
●आईटी
●ऑटो कॉम्पोनेंट्स
●कृषि आधारित उत्पाद
●मुक्त व्यापार और भंडारण
●नवीकरण स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा के उत्पादन (सौर, पवन)
●चिकित्सा पर्यटन
●वस्त्र और परिधान
●पत्थर
विकास के लिए संभावित स्थान-
1. जयपुर
2. नीमराना, अलवर
3. जोधपुर
4. उदयपुर
5. कोटा
6. बांसवाड़ा
7. बीकानेर
1. जयपुर
2. नीमराना, अलवर
3. जोधपुर
4. उदयपुर
5. कोटा
6. बांसवाड़ा
7. बीकानेर
प्रोत्साहन और सुविधाएं -
●ग्रामीण क्षेत्रों में डेवलपर्स के लिए Rs100 की दर पर भूमि रूपांतरण।
●डेवलपर्स के लिए और रीको के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थापित इकाइयों कोभी स्टाम्प ड्यूटी पर 100% छूट।
●इकाइयों को 7 साल के लिए बिजली शुल्क में 50% छूट।
●इकाइयों और डेवलपर्स को 7 साल के लिए 'कार्य अनुबंध कर' पर 100% छूट।
●विशेष आर्थिक क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने के लिए पूंजीगत माल के रूप मेंउपयोग हेतु स्थानीय क्षेत्र में लायी जाने वाली पूंजीगत वस्तुओं में प्रवेश कर से 100%।देश से बाहर निर्यात के लिए निर्माण में विशेष उपयोग में लायी जाने वाली पंजीकरण प्रमाण पत्र में विनिर्दिष्ट माल की बिक्री या खरीद पर वैट से
100% छूट।
●7 साल के लिए विलासिता कर से 100%छूट।
●7 साल के लिए मनोरंजन कर से 50%छूट।
●ग्रामीण क्षेत्रों में डेवलपर्स के लिए Rs100 की दर पर भूमि रूपांतरण।
●डेवलपर्स के लिए और रीको के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थापित इकाइयों कोभी स्टाम्प ड्यूटी पर 100% छूट।
●इकाइयों को 7 साल के लिए बिजली शुल्क में 50% छूट।
●इकाइयों और डेवलपर्स को 7 साल के लिए 'कार्य अनुबंध कर' पर 100% छूट।
●विशेष आर्थिक क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने के लिए पूंजीगत माल के रूप मेंउपयोग हेतु स्थानीय क्षेत्र में लायी जाने वाली पूंजीगत वस्तुओं में प्रवेश कर से 100%।देश से बाहर निर्यात के लिए निर्माण में विशेष उपयोग में लायी जाने वाली पंजीकरण प्रमाण पत्र में विनिर्दिष्ट माल की बिक्री या खरीद पर वैट से
100% छूट।
●7 साल के लिए विलासिता कर से 100%छूट।
●7 साल के लिए मनोरंजन कर से 50%छूट।
नई विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम विचाराधीन भी है और नए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम के लागू होने के बाद कुछ अतिरिक्त प्रोत्साहन भी विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए उपलब्ध होगा।
रविवार, 28 जून 2015
Rajasthan Current AffairsQuiz - राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र क्विज -
1. प्रदेश में नौकरी के लिए आवेदन में किस दिनांक से नोटरी से सत्यापित शपथ-पत्र और न ही राजपत्रित अधिकारी से सत्यापन की आवश्यकता है तथा नागरिक द्वारा स्व प्रमाणित दस्तावेजों को मान्यता दी गई है।
(1) 1 जनवरी, 2015
(2) 1 फरवरी, 2015
(3) 1 मार्च, 2015
(4) 1 मई, 2015
उत्तर- 1
2. राज्य में "ज्योतिबा फुले फल एवं सब्जी मंडी, मुहाना, जयपुर" के परिसर में पृथक से किस की मंडी के प्रागंण की भी स्थापना की गई है?
(1) सोयाबीन मंडी के
(2) धान मंडी के
(3) पुष्प मंडी के
(4) ड्राई फ्रूट मंडी के
उत्तर- 3
3. राजस्थान के डेयरी विभाग के नाम बदल कर क्या कर दिया गया है?
(1) गौ-धन विभाग
(2) गोपालन विभाग
(3) गौ-संरक्षण विभाग
(4) गौ-उत्पाद विभाग
उत्तर- 2
4. अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस कब मनाया जाता है?
(1) 22 मई
(2) 21 जून
(3) 24 जुलाई
(4) 26 मई
उत्तर- 2
5. जयपुर में 3 जून, 2015 को मेट्रो रेल सेवा का प्रारंभ करके जयपुर देश का मेट्रो रेल सेवा वाला कौनसे स्थान का शहर बन गया है ?
(1) पांचवां
(2) छठा
(3) सातवाँ
(4) आठवां
उत्तर- 2
6. राजस्थान के आयुष विभाग द्वारा 13-16 फरवरी, 2015 तक 'राष्ट्रीय आरोग्य मेला 2015' किस शहर में आयोजित हुआ ?
(1) उदयपुर
(2) जोधपुर
(3) कोटा
(4) जयपुर
उत्तर- 4
7. सिंचित क्षेत्र विकास विभाग द्वारा किस हानिकारक खरपतवार के जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सीकन कीट zygogramme bicollorata को छोड़कर कर उसे नष्ट करने का अध्ययन किया जा रहा है?
(1) गाजर घास
(2) लेंटेना
(3) बथुआ
(4)विलायती बबूल
उत्तर- 1
8. पुलिस की अपराध शाखा में कौनसा सॉफटवेयर तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से सी.आई.डी.(सीबी.) राज. जयपुर द्वारा अनुसंधानरत अभियोगों की पत्रावलियों के वतर्मान स्टेटस की सूचना लेना एवं उनका अपडेशन का कार्य ऑनलाईन किया जा सकेगा?
(1) केस स्टेटस
(2) केस चित्रण
(3) केस दर्पण
(4) आशा सॉफ्ट
उत्तर- 3
9. ई-शुभ लक्ष्मी योजना संबंधित है-
(1) अल्पबचत से
(2) बालिका शिक्षा से (3) खनन रोयल्टी से
(4) बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने से
उत्तर- 4
10. 21 जून 2015 को आग लग जाने के कारण कौनसा मंदिर चर्चा में रहा ?
(1) चारभुजा मंदिर, गढ़बोर
(2) केशरियाजी मंदिर, ऋषभदेव
(3) द्वारिकाधीश मंदिर, कांकरोली
(4)रणकपुर मंदिर
उत्तर- 3
(1) 1 जनवरी, 2015
(2) 1 फरवरी, 2015
(3) 1 मार्च, 2015
(4) 1 मई, 2015
उत्तर- 1
2. राज्य में "ज्योतिबा फुले फल एवं सब्जी मंडी, मुहाना, जयपुर" के परिसर में पृथक से किस की मंडी के प्रागंण की भी स्थापना की गई है?
(1) सोयाबीन मंडी के
(2) धान मंडी के
(3) पुष्प मंडी के
(4) ड्राई फ्रूट मंडी के
उत्तर- 3
3. राजस्थान के डेयरी विभाग के नाम बदल कर क्या कर दिया गया है?
(1) गौ-धन विभाग
(2) गोपालन विभाग
(3) गौ-संरक्षण विभाग
(4) गौ-उत्पाद विभाग
उत्तर- 2
4. अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस कब मनाया जाता है?
(1) 22 मई
(2) 21 जून
(3) 24 जुलाई
(4) 26 मई
उत्तर- 2
5. जयपुर में 3 जून, 2015 को मेट्रो रेल सेवा का प्रारंभ करके जयपुर देश का मेट्रो रेल सेवा वाला कौनसे स्थान का शहर बन गया है ?
(1) पांचवां
(2) छठा
(3) सातवाँ
(4) आठवां
उत्तर- 2
6. राजस्थान के आयुष विभाग द्वारा 13-16 फरवरी, 2015 तक 'राष्ट्रीय आरोग्य मेला 2015' किस शहर में आयोजित हुआ ?
(1) उदयपुर
(2) जोधपुर
(3) कोटा
(4) जयपुर
उत्तर- 4
7. सिंचित क्षेत्र विकास विभाग द्वारा किस हानिकारक खरपतवार के जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सीकन कीट zygogramme bicollorata को छोड़कर कर उसे नष्ट करने का अध्ययन किया जा रहा है?
(1) गाजर घास
(2) लेंटेना
(3) बथुआ
(4)विलायती बबूल
उत्तर- 1
8. पुलिस की अपराध शाखा में कौनसा सॉफटवेयर तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से सी.आई.डी.(सीबी.) राज. जयपुर द्वारा अनुसंधानरत अभियोगों की पत्रावलियों के वतर्मान स्टेटस की सूचना लेना एवं उनका अपडेशन का कार्य ऑनलाईन किया जा सकेगा?
(1) केस स्टेटस
(2) केस चित्रण
(3) केस दर्पण
(4) आशा सॉफ्ट
उत्तर- 3
9. ई-शुभ लक्ष्मी योजना संबंधित है-
(1) अल्पबचत से
(2) बालिका शिक्षा से (3) खनन रोयल्टी से
(4) बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने से
उत्तर- 4
10. 21 जून 2015 को आग लग जाने के कारण कौनसा मंदिर चर्चा में रहा ?
(1) चारभुजा मंदिर, गढ़बोर
(2) केशरियाजी मंदिर, ऋषभदेव
(3) द्वारिकाधीश मंदिर, कांकरोली
(4)रणकपुर मंदिर
उत्तर- 3
100 Important Fact OfRajasthan Gk - राजस्थान सामान्य ज्ञान 100 महत्वपूर्ण तथ्य
01. माही बजाज सागर परियोजना
से संबंधित बाँध किस जिले में है -
बाँसवाड़ा
02. राज्य के किस भाग में माही व
उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं-
दक्षिण भाग
03. किस नदी की दो मुख्य सहायक
नदियाँ एराव और एरन हैं - माही की
04. माही मुख्यतया किस राज्य की
नदी है - गुजरात की
05. माही नदी का उद्गम स्थल
मध्यप्रदेश के किस जिले में विन्ध्याचल
पर्वत में है - धार जिले के
06. राजस्थान में माही नदी का
प्रवाह क्षेत्र किन जिलों में है-
बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़),
व डूंगरपुर
07. माही प्रवाह क्षेत्र के मैदानों
को क्या कहते हैं - छप्पन मैदान
08. माही किस प्रकार की नदी है -
बरसाती नदी
09. माही का प्रवाह किस ओर है -
अरब सागर की ओर
10. माही नदी किस खाड़ी में
गिरती है- खम्भात की खाड़ी में
11. माही नदी पर बाँध के लिए
प्रसिद्ध लोहारिया गाँव किस
जिले में है- बाँसवाड़ा जिले में
12. राष्ट्रीय जल विकास
प्राधिकरण की किस परियोजना में
राजस्थान की काली सिन्ध-
पार्वती-बनास नदियों को जोड़ा
जाना है- नदी जोड़ो परियोजना में
13. काली सिन्ध-पार्वती-बनास
नदियों को किस बाँध से जोड़ा
जाएगा - राणा प्रताप सागर बाँध
14. कौनसी नदी जयपुर के पास
विराटनगर की पहाड़ियों से
निकलकर पूर्वी भाग में बहती है-
बाणगंगा
15. बाणगंगा भरतपुर व धौलपुर में से
बहती हुई उत्तरप्रदेश के किस स्थान के
समीप यमुना में मिलती है -
फतेहाबाद
16. अलवर में रूपारेल और कोटपुतली
तहसील में साबी-सोता नदियाँ हैं ।
17. अलवर क्षेत्र का ढाल पूर्व की ओर
है ।
18. अलवर क्षेत्र की सभी नदियाँ
पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है ।
19. पूर्वी मैदानी प्रदेश की साल भर
बहने वाली प्रमुख नदी चम्बल है ।
20. चम्बल नदी मध्यप्रदेश में
विन्ध्याचल पर्वत के उत्तरी ढाल में
मऊ नामक स्थान से निकलती है ।
21. राजस्थान में चम्बल का प्रवाह
क्षेत्र केवल कोटा, बूँदी और
झालावाड़ जिलों में है ।
22. चम्बल घाटी परियोजना का
राजस्थान व मध्यप्रदेश के आर्थिक
विकास में केन्द्रीय स्थान है ।
23. पार्वती, काली सिन्ध, बामनी
व चन्द्रभागा चम्बल की सहायक
नदियाँ हैं ।
24. चम्बल नदी सवाई माधोपुर व
धौलपुर जिलों में राजस्थान और
मध्यप्रदेश की सीमा बनाती है ।
25. ऊबड़-खाबड़ भूमि, जिसमें रेत के ऊँचे
टीलों के मध्य गहरी घाटियाँ हों,
बीहड़ कहलाती है ।
26. बीहड़ भूमि खेती के लिए सर्वथा
अनुपयुक्त होती है ।
27. सरकार द्वारा कन्दराओं की
भूमि के विकास हेतु बीहड़ क्षेत्र में
वृक्षारोपण करवाया जा रहा है ।
28. चम्बल नदी उत्तरप्रदेश में यमुना में
मिलती है ।
29. ढुन्ड नदी जयपुर जिले से सम्बद्ध है ।
30. बनास व उसकी सहायक नदियाँ
पूर्वी मैदानी प्रदेश में बहती है ।
31. पूर्वी मैदानी प्रदेशों की मुख्य
फसलें गेंहूं, जौ, चना, बाजरा, ज्वार,
सरसों, तिलहन व गन्ना आदि हैं ।
32. बनास नदी का उद्गम स्रोत राजसमन्द जिले में खमनौर की
पहाड़ियों से है ।
33. बनास नदी राजसमन्द,
चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर,
टोंक, बूँदी और सवाई माधोपुर
जिलों में बहती है ।
34. बनास नदी सवाई माधोपुर जिले
में खण्डार के समीप चम्बल नदी में
गिरती है ।
35. बनास नदी को ''वन की आशा''
भी कहा जाता है ।
36. बेढ़च, गम्भीरी, कोठारी, खारी
और मुरेल, बनास की सहायक नदियाँ
हैं ।
37. बनास नदी बरसाती नदी है ।
38. बनास नदी के बहाव क्षेत्र में कुओं
द्वारा सिंचाई की जाती है ।
39. राजस्थान का 3/5 भाग
अरावली के उत्तर-पश्चिम में तथा 2/5
भाग दक्षिण-पूर्व में पड़ता है ।
40. अरावली पर्वत मालाएँ पश्चिम से
आने वाली मिट्टी को रोकती हैं ।
41. अरावली पहाड़ के बाएँ भाग में
उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
तथा दाएँ भाग में मैदानी प्रदेश
पाया जाता है ।
42. वर्षा की दृष्टि से अरावली
पहाड़ का दायाँ भाग, बाएँ भाग
की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध है।
43. अरावली पहाड़ का दक्षिण-
पश्चिमी छोर माउण्ट आबू के समीप है
।
44. अरावली पहाड़ का उत्तरी-
पूर्वी भाग खेतड़ी के पास है ।
45. राजस्थान में अरावली पर्वत का
विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-
पश्चिम की ओर है ।
46. कम ऊँचाई वाले अरावली पर्वत
अजमेर, जयपुर व अलवर जिलों में फैले हैं,
इन जिलों में औसत ऊँचाई 550-670
मीटर तक ।
47. अजमेर में अरावली पर्वत की सबसे
ऊँची पर्वतमाला तारागढ़-870
मीटर , जयपुर में नाहरगढ़ है ।
48. जवाई, लीलरी, जोजरी व सूकड़ी
आदि लूनी की सहायक नदियाँ हैं ।
49. लूनी की सहायक नदियाँ
अरावली की पश्चिमी ढालों से
निकलती है ।
50. अरावली की ढालों पर
विशेषतः मक्का की खेती की
जाती है ।
51. अरावली पर्वत क्षेत्र मुख्यतः
अभ्रक खनन के लिए प्रसिद्ध है ।
52. खेतड़ी का सिंघाना क्षेत्र
ताँबा खनन के लिए जाना जाता है ।
53. खेतड़ी में ताँबा खनन का कार्य
खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट द्वारा
किया जा रहा है ।
54. जावर जस्ते व सीसे की खानों के
लिए जाना जाता है ।
55. जावर खानों में खनन कार्य भारत
सरकार के उपक्रम हिन्दुस्तान जिंक
लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है ।
56. अरावली पर्वतों का सबसे ऊँचा
शिखर गुरुशिखर (1722 मी.) है ।
57. गुरुशिखर माउण्ट आबू (सिरोही)
में स्थित है ।
58. गुरु शिखर के आसपास की अन्य
चोटियाँ सेर (1597 मी.), अचलगढ. (1380 मी.) और दिलवाड़ा के पश्चिम
में तीन अन्य चोटियाँ ।
59. अरावली पर्वतों की कई
समानान्तर श्रेणियाँ सिरोही,
उदयपुर और डूंगरपुर जिलों में फैली हुई हैं ।
60. राजस्थान का राजकीय खेल
बास्केटबाल है ।
61. मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश
सम्पूर्ण उदयपुर व डूंगरपुर जिले में फैला
हुआ है, यह सिरोही, पाली,
बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व अजमेर
जिलों के कुछ भागों में फैला हुआ है ।
62. विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में से
एक अरावली पर्वत की अधिकतम
ऊँचाई उदयपुर जिले की कुम्भलगढ़ व
गोगुन्दा तहसीलों में पाई जाती है ।
63. उदयपुर जिले में अरावली पर्वत के
अधिकतम ऊँचाई वाले क्षेत्र को
'भोराठ का पठार' कहा जाता है ।
64. थार का मरुस्थल अरावली
पर्वतीय प्रदेश के सुदूर पश्चिमी भाग व
भारत-पाक सीमा को छूते हुए फैला
हुआ है।
65. जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर
व मारवाड़ थार के रेगिस्तान के वे
भाग हैं, जहाँ मरुस्थल उग्र है।
66. धरातल और जलवायु के अन्तरों के
आधार पर राजस्थान राज्य को मोटे
तौर पर चार भागों में बाँटा जाता
है,
· उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय
प्रदेश
· मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय
प्रदेश,
· पूर्वी मैदानी प्रदेश व
· दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती पठार) ।
67. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राज्य का लगभग 61 प्रतिशत
रेगिस्तानी भाग सम्मिलित है ।
68. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राज्य के 12 जिले- सम्पूर्ण जैसलमेर,
बाड़मेर, जोधपुर, जालौर, बीकानेर,
श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनूँ,
नागौर और सीकर, तथा सिरोही,
पाली, अजमेर, और जयपुर जिलों के
उत्तरी पश्चिमी भाग शामिल हैं ।
69. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का पूर्वी भाग ''मारवाड़'' कहलाता
है तथा पश्चिमी भाग ''थार का
रेगिस्तान' ' कहलाता है ।
70. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश के
अधिकांश भाग में वर्षा का औसत 20
से 50 सेमी . तथा न्यूनतम 10 सेमी. से
भी कम है ।
71. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का गर्मियो में उच्चतम तापमान 48o
सेल्सियस तथा सर्दियों में -3o
सेल्सियस तक पहुँच जाता है ।
72. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
बलुई मिट्टी का अत्यधिक जमाव
पाया जाता है।
73. जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और
जालौर जिलों में रेत के स्थाई टीले हैं,
जबकि उत्तरी भागों विशेषतः चूरू,
झुंझुनूँ, सीकर और बीकानेर में अस्थाई
टीले हैं, जो तेज हवाओं के साथ
स्थानांतरित होकर सड़क व रेलमार्ग
में बाधा बनते हैं ।
74. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
भाग में भूमिगत जल की गहराई 20-100
मीटर तक होती है, अतः बैलों अथवा
ऊँटों को कुओं में जोतकर पानी
निकाला जाता है ।
75. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
की एकमात्र नदी लूनी है ।
76. लूनी नदी का उद्गम अजमेर के पास
पुष्कर घाटी के समीप अरावली की
पहाड़ियों मे आनासागर से होता है
।
77. लूनी नदी पश्चिम मे बहती हुई,
दक्षिण-पश्चिम भाग में 320 किमी.
तक बहकर कच्छ के रण में प्रवेश करती है,
जहाँ इसका पानी फैल जाता है।
78. लूनी बरसाती नदी है ।
79. लूनी नदी का जल दक्षिण बहाव
क्षेत्र में खारा है और पीने व सिंचाई
के अयोग्य है ।
80. अरावली पर्वत के पश्चिम में बहने
वाली लूनी केवल एकमात्र नदी है ।
81. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
की मुख्य फसल बाजरा, मूँग, मोठ
आदि थोड़ी वर्षा से पकने वाली हैं ।
82. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का मुख्य धंधा पशु-पालन बन गया है ।
83. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राठी और थारपारकर नस्ल की गायें,
जो कठिन जलवायु की
परिस्थितियों के अनुकूल हैं, पाई
जाती हैं ।
84. मरुस्थलीय प्रदेश में कुछ स्थानों पर
छोटी-छोटी पहाड़ियाँ भी
होती हैं ।
85. मरुस्थलीय प्रदेश मे जैसलमेर के समीप
पीला पत्थर निकाला जाता है ।
86. मरुस्थलीय प्रदेश मे जोधपुर के पास
लाल रंग का इमारती बलुआ पत्थर
निकाला जाता है ।
87. मरुस्थलीय प्रदेश मे डेगाना (नागौर) भारत का एकमात्र टंगस्टन
उत्पादक क्षेत्र है ।
88. मरुस्थलीय प्रदेश मे टंगस्टन के
अलावा जिप्सम और रॉक फास्फेट
खनिजों के विशाल भण्डार हैं ।
89. काली सिन्ध व पार्वती
नदियों डीप चैनल के जरिए बाँध
बनाकर भीलवाड़ा में जहाजपुर के
पास लाकर बनास से जोड़ा जाएगा
।
90. फतेहाबाद (उ.प्र.) के निकट
बाणगंगा नदी यमुना में गिरती है ।
91. उत्तर प्रदेश में यमुना में गिरने
वाली राज्य की दूसरी मुख्य नदी
चम्बल है।
92. खमनौर की पहाड़ियाँ उदयपुर
जिले में हैं ।
93. खण्डार नामक स्थल सवाई
माधोपुर जिले में है ।
94. खम्भात की खाड़ी में गिरने
वाली नदी बनास है ।
95. राज्य की अंतरराष्ट्रीय सीमा
पर 04 जिले (बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर
व श्री गंगानगर) स्थित हैं ।
96. राज्य की अंतरराज्यीय सीमा
05 राज्यों (पंजाब, गुजरात,
हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश) को
छूती है ।
97. हरियाणा राजस्थान की उत्तर-
पूर्वी सीमा पर स्थित है ।
98. उत्तरी सीमा पर पंजाब स्थित है
।
99. पूर्वी सीमा पर उत्तरप्रदेश स्थित
है ।
100. राजस्थान भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम भाग में स्थित है ।
से संबंधित बाँध किस जिले में है -
बाँसवाड़ा
02. राज्य के किस भाग में माही व
उसकी सहायक नदियाँ बहती हैं-
दक्षिण भाग
03. किस नदी की दो मुख्य सहायक
नदियाँ एराव और एरन हैं - माही की
04. माही मुख्यतया किस राज्य की
नदी है - गुजरात की
05. माही नदी का उद्गम स्थल
मध्यप्रदेश के किस जिले में विन्ध्याचल
पर्वत में है - धार जिले के
06. राजस्थान में माही नदी का
प्रवाह क्षेत्र किन जिलों में है-
बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ (चित्तौड़गढ़),
व डूंगरपुर
07. माही प्रवाह क्षेत्र के मैदानों
को क्या कहते हैं - छप्पन मैदान
08. माही किस प्रकार की नदी है -
बरसाती नदी
09. माही का प्रवाह किस ओर है -
अरब सागर की ओर
10. माही नदी किस खाड़ी में
गिरती है- खम्भात की खाड़ी में
11. माही नदी पर बाँध के लिए
प्रसिद्ध लोहारिया गाँव किस
जिले में है- बाँसवाड़ा जिले में
12. राष्ट्रीय जल विकास
प्राधिकरण की किस परियोजना में
राजस्थान की काली सिन्ध-
पार्वती-बनास नदियों को जोड़ा
जाना है- नदी जोड़ो परियोजना में
13. काली सिन्ध-पार्वती-बनास
नदियों को किस बाँध से जोड़ा
जाएगा - राणा प्रताप सागर बाँध
14. कौनसी नदी जयपुर के पास
विराटनगर की पहाड़ियों से
निकलकर पूर्वी भाग में बहती है-
बाणगंगा
15. बाणगंगा भरतपुर व धौलपुर में से
बहती हुई उत्तरप्रदेश के किस स्थान के
समीप यमुना में मिलती है -
फतेहाबाद
16. अलवर में रूपारेल और कोटपुतली
तहसील में साबी-सोता नदियाँ हैं ।
17. अलवर क्षेत्र का ढाल पूर्व की ओर
है ।
18. अलवर क्षेत्र की सभी नदियाँ
पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है ।
19. पूर्वी मैदानी प्रदेश की साल भर
बहने वाली प्रमुख नदी चम्बल है ।
20. चम्बल नदी मध्यप्रदेश में
विन्ध्याचल पर्वत के उत्तरी ढाल में
मऊ नामक स्थान से निकलती है ।
21. राजस्थान में चम्बल का प्रवाह
क्षेत्र केवल कोटा, बूँदी और
झालावाड़ जिलों में है ।
22. चम्बल घाटी परियोजना का
राजस्थान व मध्यप्रदेश के आर्थिक
विकास में केन्द्रीय स्थान है ।
23. पार्वती, काली सिन्ध, बामनी
व चन्द्रभागा चम्बल की सहायक
नदियाँ हैं ।
24. चम्बल नदी सवाई माधोपुर व
धौलपुर जिलों में राजस्थान और
मध्यप्रदेश की सीमा बनाती है ।
25. ऊबड़-खाबड़ भूमि, जिसमें रेत के ऊँचे
टीलों के मध्य गहरी घाटियाँ हों,
बीहड़ कहलाती है ।
26. बीहड़ भूमि खेती के लिए सर्वथा
अनुपयुक्त होती है ।
27. सरकार द्वारा कन्दराओं की
भूमि के विकास हेतु बीहड़ क्षेत्र में
वृक्षारोपण करवाया जा रहा है ।
28. चम्बल नदी उत्तरप्रदेश में यमुना में
मिलती है ।
29. ढुन्ड नदी जयपुर जिले से सम्बद्ध है ।
30. बनास व उसकी सहायक नदियाँ
पूर्वी मैदानी प्रदेश में बहती है ।
31. पूर्वी मैदानी प्रदेशों की मुख्य
फसलें गेंहूं, जौ, चना, बाजरा, ज्वार,
सरसों, तिलहन व गन्ना आदि हैं ।
32. बनास नदी का उद्गम स्रोत राजसमन्द जिले में खमनौर की
पहाड़ियों से है ।
33. बनास नदी राजसमन्द,
चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर,
टोंक, बूँदी और सवाई माधोपुर
जिलों में बहती है ।
34. बनास नदी सवाई माधोपुर जिले
में खण्डार के समीप चम्बल नदी में
गिरती है ।
35. बनास नदी को ''वन की आशा''
भी कहा जाता है ।
36. बेढ़च, गम्भीरी, कोठारी, खारी
और मुरेल, बनास की सहायक नदियाँ
हैं ।
37. बनास नदी बरसाती नदी है ।
38. बनास नदी के बहाव क्षेत्र में कुओं
द्वारा सिंचाई की जाती है ।
39. राजस्थान का 3/5 भाग
अरावली के उत्तर-पश्चिम में तथा 2/5
भाग दक्षिण-पूर्व में पड़ता है ।
40. अरावली पर्वत मालाएँ पश्चिम से
आने वाली मिट्टी को रोकती हैं ।
41. अरावली पहाड़ के बाएँ भाग में
उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
तथा दाएँ भाग में मैदानी प्रदेश
पाया जाता है ।
42. वर्षा की दृष्टि से अरावली
पहाड़ का दायाँ भाग, बाएँ भाग
की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध है।
43. अरावली पहाड़ का दक्षिण-
पश्चिमी छोर माउण्ट आबू के समीप है
।
44. अरावली पहाड़ का उत्तरी-
पूर्वी भाग खेतड़ी के पास है ।
45. राजस्थान में अरावली पर्वत का
विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-
पश्चिम की ओर है ।
46. कम ऊँचाई वाले अरावली पर्वत
अजमेर, जयपुर व अलवर जिलों में फैले हैं,
इन जिलों में औसत ऊँचाई 550-670
मीटर तक ।
47. अजमेर में अरावली पर्वत की सबसे
ऊँची पर्वतमाला तारागढ़-870
मीटर , जयपुर में नाहरगढ़ है ।
48. जवाई, लीलरी, जोजरी व सूकड़ी
आदि लूनी की सहायक नदियाँ हैं ।
49. लूनी की सहायक नदियाँ
अरावली की पश्चिमी ढालों से
निकलती है ।
50. अरावली की ढालों पर
विशेषतः मक्का की खेती की
जाती है ।
51. अरावली पर्वत क्षेत्र मुख्यतः
अभ्रक खनन के लिए प्रसिद्ध है ।
52. खेतड़ी का सिंघाना क्षेत्र
ताँबा खनन के लिए जाना जाता है ।
53. खेतड़ी में ताँबा खनन का कार्य
खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट द्वारा
किया जा रहा है ।
54. जावर जस्ते व सीसे की खानों के
लिए जाना जाता है ।
55. जावर खानों में खनन कार्य भारत
सरकार के उपक्रम हिन्दुस्तान जिंक
लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है ।
56. अरावली पर्वतों का सबसे ऊँचा
शिखर गुरुशिखर (1722 मी.) है ।
57. गुरुशिखर माउण्ट आबू (सिरोही)
में स्थित है ।
58. गुरु शिखर के आसपास की अन्य
चोटियाँ सेर (1597 मी.), अचलगढ. (1380 मी.) और दिलवाड़ा के पश्चिम
में तीन अन्य चोटियाँ ।
59. अरावली पर्वतों की कई
समानान्तर श्रेणियाँ सिरोही,
उदयपुर और डूंगरपुर जिलों में फैली हुई हैं ।
60. राजस्थान का राजकीय खेल
बास्केटबाल है ।
61. मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश
सम्पूर्ण उदयपुर व डूंगरपुर जिले में फैला
हुआ है, यह सिरोही, पाली,
बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व अजमेर
जिलों के कुछ भागों में फैला हुआ है ।
62. विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में से
एक अरावली पर्वत की अधिकतम
ऊँचाई उदयपुर जिले की कुम्भलगढ़ व
गोगुन्दा तहसीलों में पाई जाती है ।
63. उदयपुर जिले में अरावली पर्वत के
अधिकतम ऊँचाई वाले क्षेत्र को
'भोराठ का पठार' कहा जाता है ।
64. थार का मरुस्थल अरावली
पर्वतीय प्रदेश के सुदूर पश्चिमी भाग व
भारत-पाक सीमा को छूते हुए फैला
हुआ है।
65. जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर
व मारवाड़ थार के रेगिस्तान के वे
भाग हैं, जहाँ मरुस्थल उग्र है।
66. धरातल और जलवायु के अन्तरों के
आधार पर राजस्थान राज्य को मोटे
तौर पर चार भागों में बाँटा जाता
है,
· उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय
प्रदेश
· मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय
प्रदेश,
· पूर्वी मैदानी प्रदेश व
· दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती पठार) ।
67. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राज्य का लगभग 61 प्रतिशत
रेगिस्तानी भाग सम्मिलित है ।
68. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राज्य के 12 जिले- सम्पूर्ण जैसलमेर,
बाड़मेर, जोधपुर, जालौर, बीकानेर,
श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनूँ,
नागौर और सीकर, तथा सिरोही,
पाली, अजमेर, और जयपुर जिलों के
उत्तरी पश्चिमी भाग शामिल हैं ।
69. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का पूर्वी भाग ''मारवाड़'' कहलाता
है तथा पश्चिमी भाग ''थार का
रेगिस्तान' ' कहलाता है ।
70. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश के
अधिकांश भाग में वर्षा का औसत 20
से 50 सेमी . तथा न्यूनतम 10 सेमी. से
भी कम है ।
71. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का गर्मियो में उच्चतम तापमान 48o
सेल्सियस तथा सर्दियों में -3o
सेल्सियस तक पहुँच जाता है ।
72. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
बलुई मिट्टी का अत्यधिक जमाव
पाया जाता है।
73. जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और
जालौर जिलों में रेत के स्थाई टीले हैं,
जबकि उत्तरी भागों विशेषतः चूरू,
झुंझुनूँ, सीकर और बीकानेर में अस्थाई
टीले हैं, जो तेज हवाओं के साथ
स्थानांतरित होकर सड़क व रेलमार्ग
में बाधा बनते हैं ।
74. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
भाग में भूमिगत जल की गहराई 20-100
मीटर तक होती है, अतः बैलों अथवा
ऊँटों को कुओं में जोतकर पानी
निकाला जाता है ।
75. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
की एकमात्र नदी लूनी है ।
76. लूनी नदी का उद्गम अजमेर के पास
पुष्कर घाटी के समीप अरावली की
पहाड़ियों मे आनासागर से होता है
।
77. लूनी नदी पश्चिम मे बहती हुई,
दक्षिण-पश्चिम भाग में 320 किमी.
तक बहकर कच्छ के रण में प्रवेश करती है,
जहाँ इसका पानी फैल जाता है।
78. लूनी बरसाती नदी है ।
79. लूनी नदी का जल दक्षिण बहाव
क्षेत्र में खारा है और पीने व सिंचाई
के अयोग्य है ।
80. अरावली पर्वत के पश्चिम में बहने
वाली लूनी केवल एकमात्र नदी है ।
81. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
की मुख्य फसल बाजरा, मूँग, मोठ
आदि थोड़ी वर्षा से पकने वाली हैं ।
82. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
का मुख्य धंधा पशु-पालन बन गया है ।
83. उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में
राठी और थारपारकर नस्ल की गायें,
जो कठिन जलवायु की
परिस्थितियों के अनुकूल हैं, पाई
जाती हैं ।
84. मरुस्थलीय प्रदेश में कुछ स्थानों पर
छोटी-छोटी पहाड़ियाँ भी
होती हैं ।
85. मरुस्थलीय प्रदेश मे जैसलमेर के समीप
पीला पत्थर निकाला जाता है ।
86. मरुस्थलीय प्रदेश मे जोधपुर के पास
लाल रंग का इमारती बलुआ पत्थर
निकाला जाता है ।
87. मरुस्थलीय प्रदेश मे डेगाना (नागौर) भारत का एकमात्र टंगस्टन
उत्पादक क्षेत्र है ।
88. मरुस्थलीय प्रदेश मे टंगस्टन के
अलावा जिप्सम और रॉक फास्फेट
खनिजों के विशाल भण्डार हैं ।
89. काली सिन्ध व पार्वती
नदियों डीप चैनल के जरिए बाँध
बनाकर भीलवाड़ा में जहाजपुर के
पास लाकर बनास से जोड़ा जाएगा
।
90. फतेहाबाद (उ.प्र.) के निकट
बाणगंगा नदी यमुना में गिरती है ।
91. उत्तर प्रदेश में यमुना में गिरने
वाली राज्य की दूसरी मुख्य नदी
चम्बल है।
92. खमनौर की पहाड़ियाँ उदयपुर
जिले में हैं ।
93. खण्डार नामक स्थल सवाई
माधोपुर जिले में है ।
94. खम्भात की खाड़ी में गिरने
वाली नदी बनास है ।
95. राज्य की अंतरराष्ट्रीय सीमा
पर 04 जिले (बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर
व श्री गंगानगर) स्थित हैं ।
96. राज्य की अंतरराज्यीय सीमा
05 राज्यों (पंजाब, गुजरात,
हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश) को
छूती है ।
97. हरियाणा राजस्थान की उत्तर-
पूर्वी सीमा पर स्थित है ।
98. उत्तरी सीमा पर पंजाब स्थित है
।
99. पूर्वी सीमा पर उत्तरप्रदेश स्थित
है ।
100. राजस्थान भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम भाग में स्थित है ।