मंगलवार, 29 जून 2021
RSSB PATWARI EXAM 2021 BEST OF RAJASTHAN GK,QUIZ,TEST SERIES, MODEL PAPER FOR REGULAR PRACTICE AND SUCCESS POINTS
रविवार, 27 जून 2021
रावण हत्था-भोपो का प्रमुख तत लोक वाद्य यंत्र
रावण हत्था-भोपो का प्रमुख तत लोक वाद्य यंत्र
◆ रावण हत्था यह राजस्थान का बहुप्रचलित लोक वाद्य है।
◆ भोपों का प्रमुख वाद्य है रावण हत्था
◆पाबूजी की फड़ पूरे राजस्थान में विख्यात है जिसे भोपे बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। भारतीय संस्कृति की इस ऐतिहासिक धरोहर को वर्षों से उन्होंने अपनी परंपरा में संभाल कर रखा और विकसित किया है। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं।
◆ ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं जो सारंगीनुमा वाद्य यन्त्र होता है।
◆ इसे बड़े नारियल की कटोरी पर खाल मढ़ कर बनाया जाता है।
शनिवार, 26 जून 2021
जंतर-तत् लोक वाद्य यंत्र
तत् लोक वाद्य यंत्र -जंतर
जंतर लोक वाद्य यंत्र |
सारंगी-राजस्थान का प्रमुख तत् लोक वाद्य यंत्र
राजस्थान का प्रमुख तत् वाद्य यंत्र-सारंगी
सारंगी-
राजस्थान सरकार की "मुख्यमंत्री कोरोना सहायता योजना" (Mukhyamantri corona sahayata yojana)
राजस्थान सरकार की "मुख्यमंत्री कोरोना सहायता योजना" (Mukhyamantri corona sahayata yojana)
1. योजना का उद्देश्यः
2. योजना का विस्तार:
3. परिभाषा:
4. पात्रता :
5. प्राधिकृत अधिकारी :
6. अनुदान / आर्थिक सहायता
(अ.) आर्थिक सहायता
(ब) शैक्षणिक / अन्य सहायता
मुख्यमंत्री कोरोना विधवा सहायता (विधवा महिला हेतु)
मुख्यमंत्री कोरोना पालनहार सहायता (विधवा महिला के बालक / बालिका हेतु)
7. चयन प्रक्रिया / अनुदान स्वीकृतिः
8. भुगतान मदः
9. योजना की मॉनीटरिंग एवं बजट आवंटनः
10. विविध:
11. नियमों में शिथिलताः
गुरुवार, 24 जून 2021
राजस्थान में विशेष योग्यजन कल्याणार्थ संचालित प्रमुख योजनायें
राजस्थान में विशेष योग्यजन कल्याणार्थ संचालित प्रमुख योजनायें
1. पेंशन योजना:
2. छात्रवृत्ति योजना
3. मुख्यमंत्री विशेष योग्यजन स्वरोजगार योजना
4. सुखद दाम्पत्य विवाह अनुदान योजना
5. संयुक्त सहायता, कृत्रिम अंग / उपकरण हेतु अनुदान योजना
6. विशेष योग्यजन अनुप्रति योजना
7. विशेष योग्यजन पालनहार योजना
8. आस्था योजना
मंगलवार, 22 जून 2021
मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा/जांच योजना(MUKHYAMANTRI NIHSHULK DAWA/JANCH YOJANA)
मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना
मुख्यमंत्री निःशुल्क जांच योजना
सोमवार, 21 जून 2021
राजस्थान साहित्य अकादमी(Rajasthan Sahitya Akademi)
राजस्थान साहित्य अकादमी(Rajasthan Sahitya Akademi)
राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना 28 जनवरी, 1958 को राज्य सरकार द्वारा एक शासकीय इकाई के रूप में की गई और 08 नवम्बर, 1962 को स्वायतता प्रदान की गई, तदुपरान्त यह संस्थान अपने संविधान के अनुसार राजस्थान में साहित्य की प्रोन्नति तथा साहित्यिक संचेतना के प्रचार-प्रसार के लिए सतत सक्रिय है।
राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना साहित्य जगत् हेतु एक सुखद और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। साथ ही राजस्थानके सांस्कृतिक और साहित्यिक पुनर्निर्माण एवं विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
राजस्थान साहित्य अकादमी |
उद्देश्य
- राजस्थान में हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्न करना।
- राजस्थान के हिन्दी भाषा के साहित्यकारों और विद्वानों में पारस्परिक सहयोग की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्न करना।
- संस्थाओं और व्यक्तियों को हिन्दी साहित्य से संबंधित उच्च स्तरीय ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं, कोश ,विश्वकोष, आधारभूत शब्दावली, ग्रन्थ निर्देशिका, सर्वेक्षण व सूचीकरण आदि के सृजन व प्रकाशन में सहायता देना तथा स्वयं भी इनके प्रकाशन की व्यवस्था करना।
- भारतीय भाषाओं में एवं विश्वभाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद करना तथा ऐसे अनुवाद कार्य को प्रोत्साहित करना या सहयोग देना।
- साहित्यिक सम्मेलन, विचार-संगोष्ठियों, परिसंवादों, सृजनतीर्थ, रचना पाठ, लेखक शिविर, प्रदर्शनियां, अन्तर प्रादेशिक साहित्यकार बंधुत्व यात्राएं, भाषणमाला, कवि सम्मेलन एवं हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार की अन्य योजनाओं आदि की व्यवस्था करना तथा तद्निमित्त आर्थिक सहयोग देना।
- राजस्थान के साहित्यकारों को उनकी हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट रचनाओं के लिए सम्मानित करना।
- हिन्दी साहित्य से संबंधित सृजन, अनुवाद, साहित्यिक शोध व आलोचनापरक अध्ययन संबंधी प्रकल्प, भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक सर्वेक्षण, लोक साहित्य संग्रह तथा ऐसे ही प्रकल्पों के लिए राजस्थान की संस्थाओं तथा व्यक्तियों को वित्तीय सहयोग देना तथा स्वयं भी ऐसे प्रकल्पों को निष्पन्न करना।
- राजस्थान के हिन्दी के साहित्यकारों को वित्तीय सहायता, शोधवृत्तियां आदि देना।
- अकादमी पुस्तकालय, वाचनालय तथा अध्ययन एवं विचार-विमर्श केन्द्र स्थापित करना और इस प्रवृत्ति के विकास के लिए राजस्थान की हिन्दी संस्थाओं को वित्तीय सहयोग देना।
- ऐसे अन्य कार्य करना जो अकादमी के उद्देश्यों को आगे बढाने के लिए आवश्यक समझे जावें चाहे वे उपरोक्त कृत्यों में हो या न हों
संगठन :
- सरस्वती सभा (सर्वोच्च सभा)
- संचालिका (कार्यकारिणी)
- वित्त समिति
- परामर्शदात्री समितियां
सम्मान एवं पुरस्कार योजना -
- सम्मान परम्परा - प्रदेश के वरिष्ठ और मूर्धन्य साहित्यकारों को अकादमी उनके समग्र कृतित्व एवं व्यक्तित्व के आधार पर चार प्रकार से सम्मानित करती है - ‘साहित्य मनीषी’, ‘जनार्दनराय नागर सम्मान’, ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान और ‘अमृत सम्मान’। ‘साहित्य मनीषी’ सम्मान प्रति तीन वर्ष की कालावधि में राज्य के एक श्रेष्ठ साहित्यकार को प्रदान किया जाता है जिसमें सम्मान स्वरूप 2.51 लाख रु., प्रशस्ति पत्र आदि भेंट किये जाने का प्रावधान है। ‘जनार्दनराय नागर सम्मान’ सम्मान 1.00 लाख रु. का है। ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ में 51 हजार रु., प्रशस्ति पत्र आदि भेंट किये जाते हैं। ‘अमृत सम्मान’ में 31 हजार रु. प्रशस्ति पत्र आदि भेंट किये जाते हैं।
- पुरस्कार योजना - अकादमी प्रति वर्ष विज्ञप्ति प्रसारित कर श्रेष्ठ कृतियों को पुरस्कृत करती है। अकादमी द्वारा वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ-साथ, विद्यालयों में अध्ययनरत विधार्थियों को पुरस्कृत करने की योजनाएं हैं। अकादमी का सर्वोच्च ‘मीरा पुरस्कार’ 75 हजार रु. है। इसके अलावा अकादमी प्रतिवर्ष - ‘सुधीन्द्र’(कविता), ‘रांगेय राघव’(कहानी-उपन्यास), ‘देवीलाल सामर’(नाटक) , ‘देवराज उपाध्याय’ (आलोचना), ‘कन्हैयालाल सहल’(विविध विधाएं), ‘सुमनेश जोशी’(प्रथम प्रकाशित कृति), ‘श्ांभूदयाल सक्सेना’(बाल साहित्य) के साथ महाविद्यालय और विद्यालय स्तरीय डॉ. सुधा गुप्ता, चन्द्रदेव शर्मा और परदेशी पुरस्कार की प्रविष्टियां आमंत्रित कर प्रदान करती है।
प्रवृत्तियां -
- मधुमती पत्रिका - अकादमी की मधुमती मासिक पत्रिका हिन्दी-साहित्य की चर्चित और उल्लेखनीय पत्रिका है। गत् 53 वर्षों से यह पत्रिका प्रकाशित हो रही है। मधुमती पत्रिका ने गत् 58 वर्षों में राजस्थान की भाषा-साहित्य और संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया है। मधुमती पत्रिका के माध्यम से राज्य में नवोदित साहित्यकारों को प्रोत्साहित और उन्हें अवसर देने का पूरा कार्य किया गया है।
- कृतिकार प्रस्तुति योजना - अकादमी ने राजस्थान के स्थापित प्रबुद्ध साहित्यकारों के कृतित्व व उनके साहित्यिक योगदान को सामान्यजन तक पहुंचाने का विनम्र प्रयास ‘कृतिकार प्रस्तुति’ (मोनोग्राफ) प्रकाशन योजना के माध्यम से किया है। इस योजना के अन्तर्गत चुनिंदा रचनाकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर केन्द्रित विशिष्ट सामग्री प्रकाशित की जाती है।
- पुस्तक प्रकाशन सहयोग योजना - अकादमी की प्रमुख प्रवृत्ति श्रेष्ठ व साहित्यिक ग्रंथों का प्रकाशन करना है। इस योजना के अन्तर्गत अकादमी राजस्थान के सृजनशील लेखकों की पुस्तकों, संकलनों, ग्रंथावलियों आदि का प्रकाशन करती है। अकादमी अपने रचनाकारों को पुस्तक प्रकाशन पर यथानियम रायल्टी या मानदेय भी देती हैं। हमारे पुरोधा - इस योजना में दिवंगत पुरोधा साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर हमारे पुरोधा ग्रंथों का प्रकाशन किया गया है।
- साहित्यिक समारोह - अकादमी राजस्थान में यथानिर्णय विभिन्न प्रकार के साहित्यिक समारोह प्रतिवर्ष विभिन्न अंचलों में आयोजित करती है। इन समारोहों में लेखक सम्मेलन, साहित्यकार सम्मान समारोह, आंचलिक साहित्यकार समारोह, सेमीनार, कवि गोष्ठियां, लेखक शिविर, अन्तरप्रान्तीय बंधुत्व यात्रा, साहित्यकार सृजन साक्षात्कार, पाठक मंच और साहित्य के सामाजिक सरोकार आदि विषयों पर मूर्धन्य व पुरोधा साहित्यकारों की स्मृति में व्याख्यानमालाएं आदि।
- पाठक मंच - पाठकों में साहित्यिक कृतियों के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने और एक साहित्यिक वातावरण निर्मित करने के लिए अकादमी ने राजस्थान में विभिन्न स्थानों पर पाठक मंचों की स्थापना की है। इन पाठक मंचों के माध्यम से साहित्यिक कृतियों पर खुली चर्चा तथा बहस की शुरुआत की गयी है। राज्य के विभिन्न जिलों स्थित केन्द्रों पर संचालित इस योजना का व्यापक प्रभाव व स्वागत हुआ है।
- अध्ययन विचार-विमर्श केन्द्र - यह योजना राजस्थान में अद्यतन अग्रांकित स्थानों पर संचालित है - श्रीडूंगरगढ़, बीकानेर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, भरतपुर। इन केन्द्रों में अकादमी द्वारा पाठकों को अकादमी प्रकाशन व पत्रिका आदि निःशुल्क अध्ययनार्थ उपलब्ध हैं।
साहित्यकारों को आर्थिक सहयोग -
- चिकित्सा व अभावग्रस्त सहयोग - अकादमी द्वरा प्रतिवर्ष रुग्ण साहित्यकारों को चिकित्सा एवं अभावग्रस्त योजना में चिकित्सा सहयोग दिया जाता है। साथ ही अभावग्रस्त साहित्यकारों को भी अिर्थक सहयोग प्रदान किया जाता है।
- सक्रिय, संरक्षित सम्मान सहयोग - अकादमी प्रतिवर्ष सक्रिय, संरक्षित सम्मान सहयोग योजना में राजस्थान के वरिष्ठ और सक्रिय साहित्यकारों को सम्मान सहयोग राशि लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु प्रदान करती है।
- पाण्डुलिपि प्रकाशन सहयोग योजना - अकादमी की ‘पांडुलिपि प्रकाशन सहयोग’ योजनान्तर्गत राज्य के नवोदित लेखकों से पांडुलिपियों पर सहयोग दिया जाता है। सत्र 82-83 से प्रारंभ की गई इस योजना में अब तक अकादमी के सहयोग से अद्यतन 606 पांडुलिपियां प्रकाशित हुई हैं।
- प्रकाशित ग्रंथों पर सहयोग - इस योजनान्तर्गत लेखकों व लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु अकादमी प्रकाशित पुस्तकों पर आर्थिक सहयोग प्रदान करती है।
- साहित्यिक संस्थाओं को सहयोग - अकादमी से इस समय राजस्थान स्थित 8 संस्थाएं सम्बद्ध और 13 मान्यता प्राप्त संस्थाएं हैं, जो सम्पूर्ण राजस्थान में निरन्तर साहित्यिक प्रसारात्मक कार्यों में संलग्न हैं।
- वृहद शोध संदर्भ केन्द्र - शोधार्थियों, आमजन हेतु अकादमी भवन में ही एक शोध संदर्भ, पुस्तकालय-वाचनालय का संचालन किया जा रहा है। इस पुस्तकालय में शोधपरक हिन्दी भाषा और साहित्य की 28,299 महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ उपलब्ध हैं। वाचनालय में अध्ययनार्थ आने वाले पाठकों के लिए 79 साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक व त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं तथा 13 दैनिक पत्र उपलब्ध हैं।
- ध्वनि-चित्र संकलन - लब्ध प्रतिष्ठ व वरिष्ठ साहित्यकारों की वाणी को संरक्षित रखने की दृष्टि से यह योजना प्रारंभ की गई है। इस योजना में अद्यतन राजस्थान के 53 रचनाकारों की रचनाएं उन्हीं की वाणी में संग्रहीत हैं।
- एकात्म सभागार - माननीय मुख्यमंत्री, राजस्थान की घोषणा के अन्तर्गत अकदमी में एकात्म सभागार का निर्माण किया गया है। उक्त सभागार में 200 व्यक्तियों के बैठकों की सुविधा है और इस सभागार ए.सी. की सुविधा उपलब्धहै । उक्त सभागार की लागत 230.58 लाख रु. है।
मीरा अकादमिक पुरस्कार ( Meera Academic Award)
मींरा पुरस्कार
1 | डॉ. रामानंद तिवारी | भारतीय संस्कृति के प्रतीक(नि.) | 1959-60 |
2 | डॉ. रामानंद तिवारी | अभिनव रस मीमांसा (आ.) | 1962-63 |
3 | श्री रघुवीर मित्र | भूमिजा (का.) | 1963-64 |
4 | श्री पोद्दार रामावतार‘अरुण’ | बाणाम्बरी (का.) | 1963-64 |
5 | डॉ. वेंकट शर्मा | काव्य सर्जना और काव्यास्वाद (आ.) | 1974-75 |
6 | डॉ. दयाकृष्ण विजय | आंजनेय (का.) | 1978-79 |
7 | डॉ. पानू खोलिया | सत्तर पार के शिखर (उप.) | 1979-80 |
8 | श्री हमीदुल्ला | उत्तर उर्वशी (ना.) | 1980-81 |
9 | श्री यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ | हजार घोड़ों का सवार (उप.) | 1982-83 |
10 | श्री नंद चतुर्वेदी | शब्द संसार की यायावरी (आ.) | 1983-84 |
11 | श्री विजेन्द्र | चैत की लाल टहनी (का.) | 1986-87 |
12 | श्री नंदकिशोर आचार्य | वह एक समुद्र था (का.) | 1986-87 |
13 | श्री हरीश भादानी | एक अकेला सूरज खेले (का.) | 1986-87 |
14 | श्री ऋतुराज | नहीं प्रबोध चन्द्रोदय (का.) | 1987-88 |
15 | श्री ईश्वर चन्दर | लौटता हुआ अतीत (कथा.) | 1988-89 |
16 | डॉ. विश्वंभरनाथ उपाध्याय | जोगी मत जा (उप.) | 1990-91 |
17 | श्री अन्नाराम सुदामा | आंगन नदिया (उप.) | 1991-92 |
18 | डॉ. कन्हैयालाल शर्मा | पूर्वी राजस्थानी उद्भव और विकास (आलो.) | 1992-93 |
19 | डॉ. राजेन्द्रमोहन भटनागर | प्रेम दीवानी (उप.) | 1994-95 |
20 | श्री भगवान अटलानी | अपनी-अपनी मरीचिका (उप.) | 1995-96 |
21 | श्रीमती सावित्री परमार | जमी हुई झील (कथा) | 1997-98 |
22 | डॉ. चंद्रप्रकाश देवल | बोलो माधवी (काव्य) | 1998-99 |
23 | डॉ. जीवनसिंह | कविता और कविकर्म (आलो.) | 2000-01 |
24 | डॉ. जबरनाथ पुरोहित | रेंगती हैं चिटियां (काव्य) | 2001-02 |
25 | श्री हरिराम मीणा | हां, चांद मेरा है (काव्य) | 2002-03 |
26 | श्री बलवीर सिंह ‘करुण’ | मैं द्रोणाचार्य बोलता हूं (महाकाव्य) | 2005-06 |
27 | श्री आनंद शर्मा | अमृत पुत्र (उप.) | 2007-08 |
28 | श्रीमती मृदुला बिहारी | कुछ अनकही (उप.) | 2008-09 |
29 | डॉ. जयप्रकाश पण्ड्या ‘ज्योतिपुंज‘ | बोलो मनु! बोलते क्यों नहीं? | 2010-11 |
30 | श्री अम्बिका दत्त | आवों में बारहों मास | 2011-12 |
31 | श्री भवानी सिंह | मांणस तथा अन्य कहानियां | 2012-13 |
मीरा बाई पेनोरमा ,मेड़ता,नागौर(MEERA BAI PENORAMA,MEDTA,NAGOUR)
मीरा बाई पेनोरमा ,मेड़ता,नागौर
◆ 95.36 लाख रूपये की वित्तीय स्वीकृति से पेनोरमा का निर्माण पूर्ण किया जा चुका है।आमजन के दर्शनार्थ चालू है।
मीरा बाई के जीवन का संक्षिप्त परिचय
◆ श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा बाई श्री कृष्ण की भक्ति करते-करते अन्ततः श्री कृष्ण की प्रतिमा में विलीन हो गयी।राव दूदाजी ने पन्द्रहवीं शताब्दी में दूदागढ़, मेड़ता सिटी में भव्य गढ़ का कलाकृति से निर्माण कराया, जो एक लोक आकर्षक धरोहर ‘गढ़’ भवन के रूप में प्रसिद्ध है।
◆ मीरा बाई मेड़ता के राठौड़ वंष के शासक राव रतनसिंह की पुत्री थी। मीरा का जन्म 1498 ई. में ‘कुड़की’ गांव (मेड़ता) में हुआ था। इसका लालन-पालन इनके दादा दूदाजी ने किया। इनका बाल्यकाल वैष्णव धर्म से ओत-प्रोत था। मीरा में कृष्ण के प्रति भक्ति का बीजारोपण बचपन से ही हो गया था। इनकी भक्ति भावना ‘माधुर्य’ भाव की थी। मीरा नारी संतों में ईष्वर प्राप्ति की साधना में लगे रहने वाले भक्तों में प्रमुख थी।
◆ 1516 ई. में मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ। भोजराज की आकस्मिक मृत्यु के उपरान्त मीरा का सांसारिक जीवन में लगाव कम हो गया और उसकी निष्ठा भक्ति व संत सेवा की ओर बढ़ने लगी। मीरा को जब ये ज्ञात हुआ कि उसके नटवरनागर-कृष्ण तो बहुत पहले ही वृन्दावन त्याग कर द्वारिका जा बसे हैं तो उसी समय वह उनसे मिलने द्वारिका चल दी।
◆ भक्ति काल में मीरा के समकक्ष अन्य कोई नारी भक्त नहीं थी। मीरा के पदों में सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पाकर ईष्वर की भक्ति में पूर्ण समर्पण की भावना दृष्टिगत होती है। मीरा का धर्म अपने आराध्य की हृदय से भक्ति करना था।
◆ मीरा के मुख्य ग्रंथ- ‘‘सत्यभाभा जी नू रूसणो’’, ‘‘गीत गोविन्द की टीका’’, ‘‘राग गोविन्द’’, ‘‘मीरा री गरीबी’’, ‘‘रूकमणी मंगल’’, आदि माने गये हैं। उन के भजनों में जीव, दया और अहिंसा को विषेष महत्व दिया गया है। देषकाल व वातावरण के अनुसार मीरा के पदों में भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।
◆ आज भी ‘‘मीरादासी सम्प्रदाय’’ अनेक भक्तों द्वारा अपनाया जाता है जो भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धान्तों का पोषक है। आज भी मीरा के भजन जन-जन के कण्ठों से मुखरित होते सुनाई पड़ते हैं।
◆ श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा बाई एवं उनकी भक्ति को प्रदर्षित करने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2008 में 95.36 लाख रूपये से राव दूदागढ़, मेड़ता का संरक्षण कर उसमें मीरा बाई पेनोरमा का निर्माण किया गया है। इस पेनोरमा में सिलिकाॅन फाइबर से निर्मित मूर्तियां, रिलिफ पेनल, मिनिएचर, षिलालेख आदि के माध्यम से मीरा बाई के जीवन के प्रेरणादायी प्रसंगों एवं महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को आम जनता के अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया गया है।
◆राजस्थान सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग के अधीन कार्यरत राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण द्वारा मीरा बाई पेनोरमा, मेड़तासिटी का विकास एवं विस्तार का कार्य द्वितीय चरण में वर्ष 2014 से किया जा रहा है।
◆ वर्ष 2015 में मीरा बाई पेनोरमा, मेड़तासिटी का 1,60,262 तथा वर्ष 2016 में 1,50,076 पर्यटकों ने टिकिट लेकर अवलोकन किया। वर्ष 2008 से वर्ष 2016 तक कुल 10,28,852 पर्यटकों ने राव दूदागढ़, मेड़ता स्थित इस पेनोरमा का अवलोकन किया है। राव दूदागढ़ कृष्णभक्तों के लिए एक तीर्थस्थल की भांति लोकप्रिय हो गया है।