राजस्थान का प्रमुख तत् वाद्य यंत्र-सारंगी
सारंगी-
◆ तत् वाद्यों में सारंगी श्रेष्ठ मानी जाती है।
◆ यह तून, सागवान, कैर या रोहिड़े की लकड़ी से बनाई जाती है।
◆ इसमें कुल 27 तार होते हैं तथा ऊपर की तांतें बकरे की आंतों से बनी होती हैं।
◆ इसका वादन गज से किया जाता है जो घोड़े की पूँछ के बालों से निर्मित होता है। इसे बिरोजा पर घिसकर बजाने पर ही तारों से ध्वनि उत्पन्न होती है।
◆ सारंगी के ऊपर लगी खूँटियों को झीले कहा जाता है।
◆ राजस्थान में दो प्रकार की सारंगियाँ प्रचलित हैं- सिन्धी सारंगी व गुजरातण सारंगी।
◆सिन्धी सारंगी में तारों की संख्या अधिक होती है तथा यह सारंगी का उन्नत व विकसित रूप है। इसकी बनावट और लम्बाई-चौड़ाई अन्य सारंगियों से भिन्न है।
◆गुजरातण सारंगी इसका छोटा रूप है, जिसमें तारों की संख्या केवल सात होती है। इन सारंगियों में मुख्य तार स्टील का होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त सारंगी में तांत होती है। इसी कारण इनका आधार स्वर ऊँचा होता है।
◆ इन सारंगियों का प्रयोग मुख्य रूप से जैसलमेर और बाड़मेर के लंगा जाति के लोग करते हैं।
◆ मरुधरा में दिलरुबा सारंगी भी बजाई जाती है। वैसे दिलरुबा सारंगी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लोकप्रिय वाद्य है, परंतु जैसलमेर ज़िले में सिंधी मुसलमान रहते हैं, इसलिए यह वाद्य काफ़ी लोकप्रिय है।
◆ मरुक्षेत्र में जोगी लोग सारंगी के साथ गोपीचन्द, भरथरी, सुल्तान निहालदे आदि के ख्याल गाते हैं।
◆ मेवाड़ में गड़रियों के भाट भी सारंगी-वादन में निपुण होते हैं।
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