तत् लोक वाद्य यंत्र -जंतर
◆ यह वाद्य वीणा का प्रारम्भिक रूप कहा जा सकता है। इसकी आकृ वीणा से मिलती है तथा उसी के समान इसमें दो तुम्बे होते हैं।
जंतर लोक वाद्य यंत्र |
◆ इसकी डाँड बाँस की होती है जिस पर एक विशेष पशु की खाल के बने 22 पर्दे मोम से चिपकाये जाते हैं। कभी-कभी ये मगर की खाल के भी होते हैं।
◆ परदों के ऊपर पाँच या छः तार लगे होते हैं। तारों को हाथ की अंगुली और अंगूठे के आधार से इस प्रकार अघात करके बजाया जाता है कि ताल भी उसी से ध्वनित होने लगती है।
◆ इसका वादन खड़े होकर गले में लटकाकर किया जाता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से बगड़ावतों की कथा कहने वाले भोपे करते हैं
◆ जो पर्दे पर चित्रित कथा के सम्मुख खड़े होकर जन्तर को संगत करते हुए गाकर कहानी कहते हैं।
◆ ये लोक देवता देवनारायण जी के भजन और गीत भी इसके साथ गाते हैं।
◆ मेवाड़ और बदनौर, नेगड़िया, सवाई भोज आदि क्षेत्रों के भोपे इसके वादन में कुशल है।
Vadan alwar aur mewar me hota h
जवाब देंहटाएंKnowlegeble
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