• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

बुधवार, 21 जुलाई 2021

कमायचा तत लोक वाद्ययंत्र( "KAMAYACHA" LOK VADHYA YANTRA)

● यह सारंगी के समान वाद्य है, जिसकी बनावट में सारंगी से भिन्नता होती है। सारंगी की तबली लम्बी होती है किन्तु इसकी गोल व लगभग डेढ़ फुट चौड़ी होती है। 

● तबली पर चमड़ा मढ़ा रहता है। तबली की चौड़ाई व गोलाई के कारण इसकी ध्वनि में भारीपन व गूँज होती है।
● इसे बजाने का गज भी सारंगी के गज से लगभग डेढ़ा होता । 
● इसमें तीन मुख्य तार लगे होते हैं जो पशुओं की आंत के होते हैं। साथ ही चार से सात सहायक तार स्टील के तार ब्रिज के ऊपर लगे होते हैं।

● कई कमायचा ऐसे भी होते है जिनमे 27 तार लगे होते हैं। अलग अलग कमायचो में तारो की संख्या में भिन्नता देखी जा सकती है।
● तरबों की खूँटियाँ सब ऊपर की ओर होती हैं। इसकी ऊपरी आकृति बहुत कुछ मराठी सारंगी से मिलती है।
● इसमें एक ओर गुजरातण सारंगी की भाँति केवल सात तरबें होती हैं जो सा से नि तक के स्वरों में मिली रहती हैं।
● कामायचा के मुख्य तार तांत के होते हैं। इसकी तरबों का प्रयोग गज संचालन के साथ किया जाता  है। इसलिए वे घुड़च के ठीक ऊपर से निकाली जाती हैं। 
● इनसे वाद्य की ध्वनि अत्यन्त प्रखर हो जाती है। इस वाद्य का प्रयोग मुस्लिम शेख करते हैं जिन्हें मांगणियार भी कहा जाता है।
● नाथ पंथ के साधु भी भर्तृहरि व गोपीचंद की कथा के गीत कामायचा वाद्य यंत्र के साथ गाते है।
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बुधवार, 7 जुलाई 2021

VIDHYA SAMBAL YOJANA विद्या संबल योजना -शिक्षण संस्थाओं / आवासीय विद्यालयों व छात्रावासों में गैस्ट फैकल्टी के रूप में वेतन परअस्थाई शिक्षकों की नियुक्ति

VIDHYA SAMBAL YOJANA विद्या संबल योजना -शिक्षण संस्थाओं / आवासीय विद्यालयों व छात्रावासों में गैस्ट फैकल्टी के रूप में वेतन परअस्थाई शिक्षकों की नियुक्ति 

विभिन्न विभागों में शिक्षण कार्यों में शिक्षकों/ प्रशिक्षकों के रिक्त पद होने के कारण नियमित अध्यापन कार्य में व्यवधान उत्पन्न होता है एवं विद्यार्थियों के शैक्षिक स्तर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन संस्थानों में अध्यापन व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए 'विद्या संबल योजना' लागू की जा रही है, जिसके क्रम में निम्नांकित सामान्य निर्देश जारी किए गये हैं।

1. विभाग द्वारा प्रतिवर्ष शैक्षिक सत्र आरंभ होने से पूर्व रिक्त पदों का आंकलन किया जाएगा। इन पदों पर नियमित नियुक्ति हेतु अभ्यर्थना तैयार कर भर्ती हेतु निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए भर्ती संस्था को भेजी जाएगी। नियुक्ति प्रक्रिया में विलंब को देखते हुए विभाग नियमों में प्रावधित अत्यावश्क अस्थाई आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी पृथक् से आरंभ कर सकेगा।इन दोनों प्रक्रियाओं के पूर्ण होने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए विभाग गैस्ट फैकल्टी के माध्यम से अध्यापन कार्य निम्न निर्देशों का पालन करते हुए करा सकेंगे।

2. गैस्ट फैकल्टी केवल स्वीकृत रिक्त पद के विरुद्ध ली जा सकेगी। विभाग का मुख्यालय जिलेवार और संस्थावार गैस्ट फैकल्टी की आवश्यकता का आंकलन कर प्रत्येक जिला मुख्यालय पर विभाग का नोडल अधिकारी मनोनीत कर, यह विवरण नोडल अधिकारी को उपलब्ध कराएगा।


3. संबंधित सेवा नियमों में अंकित योग्यता आदि की पात्रता रखने वाले सेवानिवृत कार्मिक / निजी अभ्यार्थियों को गैस्ट फैकल्टी के रूप में लगाया जा सकेगा।


4. गैस्ट फैकल्टी / चयन प्रक्रिया :

(क) संस्थान प्रधान सीधे ही अपने स्तर संस्था में रिक्त चल रहे पदों पर संबंधित सेवा नियमों में अंकित योग्यता आदि की पात्रता रखने वाले सेवानिवृत कार्मिक/निजी अभ्यर्थियों का परिपत्र में वर्णित दरों पर बजट उपलब्धता की शर्त के अध्यधीन गैस्ट फैकल्टी रख सकेंगे।
अथवा

(ख) जिलास्तरीय समिति के माध्यम से :

I. प्रत्येक जिले में एक जिला स्तरीय समिति होगी जिसके अध्यक्ष जिला कलक्टर अथवा उनके द्वारा मनोनीत अधिकारी होंगे। इस समिति का सदस्य सचिव संबंधित विभाग का जिला स्तरीय अधिकारी अंथवा विभागीय नोडल अधिकारी होगा ।


II. शैक्षिक सत्र के आरंभ होने से पूर्व जिला मुख्यालय पर उक्त समिति द्वारा सार्वजनिक सूचना तैयार कर निर्धारित योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों से ब्लॉकवार-संस्थावार आवेदन आमंत्रित किये जायेंगे। उक्त समिति निर्धारित न्यूनतम शैक्षणिक परीक्षा में प्राप्त प्राप्तांकों के आधार पर वरीयता सूची तैयार करेगी तथा वरीयता सूची के आधार पर गैस्ट फैकल्टी की सेवाएं वरीयता क्रम में उनकी उपलब्धता के आधार पर ली जायेगी ।


III. चयन समिति का संबंधित विभाग के लिए जिला स्तर पर योग्य अभ्यर्थियों का पैनल तैयार किया जाएगा। प्रत्येक रिक्ति के विरूद्ध यथासंभव 3 अभ्यर्थियों का पैनल तैयार किया जाएगा। यह पैनल ब्लॉकवार होगा जिसमें विषयवार, कक्षावार आवश्यकता का ध्यान रखा जाएगा।


5. गैस्ट फैकल्टी हेतु देय मानदेय की दरें :

विद्यालय/प्रशिक्षण संस्थान :

पद(अध्यापक/प्रशिक्षक)  कक्षाप्रति घंटा मानदेयअधिकतम मासिक मानदेय
ग्रेड-।।।1 से 8300 /-21000 /-
ग्रेड-।।9 से 10350/-25000 /-
ग्रेड-।11 से 12400/-30000 /-
अनुदेशक300 /-21000/-
प्रयोगशाला सहायक300 /-21000/-

विश्वविद्यालय/महाविद्यालय/तकनीकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक कॉलेज :

पदप्रति घंटा मानदेयअधिकतम मासिक मानदेय
सहायक आचार्य800 /-45000/-
सह आचार्य1000/-52000/-
आचार्य1200/-60000/-
6. गैस्ट फैकल्टी की सेवाएं लिये जाने हेतु विभाग द्वारा समुचित शर्तों का समावेश करते हुए संलग्न प्रारूप अनुसार शपथ पत्र लिया जाना सुनिश्चित किया जावेगा ।

7. गैस्ट फैकल्टी के कार्य की समुचित मॉनिटरिंग की व्यवस्था कर उनके संतोषजनक कार्य संत्यापन के आधार पर भुगतान की कार्यवाही की जावेगी।
8. रिक्त पद भरे जाने पर उपरोक्त व्यवस्था स्वतः समाप्त समझी जावेगी।
9. चूंकि छात्रावासों में शिक्षकों के पद सृजित नहीं होते हैं, अतः छात्रावासों में कठिन विषयों की कोचिंग के लिए. रिक्त पदों संबंधी बाध्यता नहीं होगी। कोचिंग के लिए संस्था प्रधान सीधे ही अपने स्तर से अथवा उक्त चयन प्रक्रिया का पालन करते हुए इस हेतु उपलब्ध बजट प्रावधान सीमा तक तथा उपर वर्णित दरों के अनुसार भुगतान कर सकेंगे।

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मंगलवार, 6 जुलाई 2021

Samadhishwar Mahadev Temple-Mokalji Temple Chittorgarh fort समाधीश्वर/समिधेश्वर महादेवजी का मन्दिर-मोकलजी का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग

Samadhishwar Mahadev Temple-Mokalji  Temple Chittorgarh fort समाधीश्वर/समिधेश्वर महादेवजी का मन्दिर-मोकलजी का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग 


◆ विजय-स्तम्भ के दक्षिण में समिद्धेश्वर महादेव का एक प्राचीन मन्दिर है जिसके निज-मन्दिर में शिवलिंग के पीछे दीवार पर शिव की त्रिमूर्ति है। 
◆ शिव के ये तीन मुख 'सत (सत्यता), रज (वैभव), व 'तम' (क्रोध) के द्योतक हैं। 

समाधीश्वर/समिधेश्वर महादेवजी

◆  शिव को समर्पित इस मन्दिर का निर्माण परमार शासक भोज द्वारा ग्यारहवीं सदी के मध्य में किया था। विक्रम संवत 1485 (1428 ई.) में मोकल ने इस मन्दिर का पुर्ननिर्माण करवाया। 
◆ क्षैतिज योजना में मन्दिर गर्भगृह, अन्तराल, मण्डप के साथ उत्तर, दक्षिण व पश्चिम में सुखमण्डप से युक्त है। मण्डप की छत पिरामिड आकार की है। गर्भगृह में विशाल शिव की त्रिमूर्ति स्थापित है। 
◆ मंदिर के भीतरी एवं बाहय दीवारें देवी-देवताओं की आकृतियों से सुसज्जित है। साथ ही प्रांगण में अनेक छोटे-छोटे प्राचीन मन्दिर स्थित है। मंदिर के दक्षिण से पवित्र गोमुख जलाशय में उतरने हेतु सोपान बने हुए है ।

समाधीश्वर/समिधेश्वर महादेवजी शिलालेख

◆ इस मन्दिर में दो शिलालेख हैं। एक शिलालेख सन् 1150 ई का है जिसके अनुसार गुजरात के सोंलकी कुमारपाल का अजमेर के चौहान अनाजी (अनंगपाल) को परास्त कर चित्तौड़ आना ज्ञात होता है
◆ तथा दूसरा शिलालेख सन् 1428 का महाराणा मोकल के सम्बन्ध में हैं। इस मन्दिर को 'मोकलजी का मन्दिर' भी कहते हैं ।
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सोमवार, 5 जुलाई 2021

Vijay Stambh (jay stambh) chittorgarh fort विजयस्तम्भ ( जयस्तम्भ ) -चित्तौड़गढ़ किला

Vijay Stambh (jay stambh) chittorgarh fort विजयस्तम्भ ( जयस्तम्भ ) -चित्तौड़गढ़ किला

◆चित्तौड़गढ़ किले में 47 फीट वर्गाकार व 10 फीट (लगभग 3मीटर) ऊँचे आधार पर बना 122 फीट (लगभग 34 मीटर) ऊँचा नौ मंजिला यह स्मारक भारतीय स्थापत्य-कला की सुन्दर कारीगरी का प्रतीक है। 
◆ यह स्तम्भ आधार पर 30 फीट (6मीटर) चौड़ा है तथा इसमें ऊपर तक जाने के लिये 157 सीढ़ियां हैं हैं। जो केन्द्रीय दीवार के साथ-साथ घूमती हुई चली गयी हैं। 
◆ इस स्मारक के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर अनेक भारतीय पौराणिक देवी-देवताओं अर्द्धनारीश्वर, उमामहेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहरपितामह, व विष्णु के भिन्न रूपों व अवतारों की तथा रामायण और महाभारत के पात्रों आदि. की सैकड़ों मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। 
◆ इसके साथ ही देवी और मात्रिका प्रतिमाओं, दिक्पालों, ऋतुओं, नदियों एवं जनजीवन की विविधानेक झांकियों का सुन्दर अंकन प्रस्तुत किया गया है जिससे तत्कालीन शस्त्रास्त्रों नृत्यवादन आदि के वाद्य-यन्त्रों के साथ-साथ सामाजिक जीवन का परिचय प्राप्त किया जा सकता है ।
◆ इन अंकनों के नीचे उत्कीर्ण-लेख, मूर्तियों की विविधता एवं उसके लेख के आधार पर इसे' भारतीय मूर्तिकला का शब्दकोष' कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

विजय स्तम्भ 

◆ श्री रतनचन्द्र अग्रवाल के अनुसार इस स्तम्भ तथा कुम्मश्याम मन्दिर में उत्कृष्ट कला-कृतियों को मूर्तरूप देने का श्रेय जइता तथा उसके पुत्रों-नापा, पोमा, पूंजा, भूमि, बलराज आदि को है। 
◆ इस स्तम्भ की पांचवी मंजिल में इनकी मूर्तियों भी बनी मिलती हैं। मध्य में जड़ता एक कुर्सी पर बैठा है और पास ही उसके पुत्र नापा, पोमा, पूंजा खड़े हैं। उनकी आकृतियों के नीचे 'शिल्पिनः' खोदकर उनके नाम भी क्रमशः उत्कीर्ण हैं ।
विजय स्तम्भ की सीढ़िया


 ◆ इस स्तम्भ का निर्माणकार्य सन् 1440 में प्रारम्भ होकर सन् 1448 (वि. स. 1505) में सम्पूर्ण हुआ तथा इसकी औपचारिक प्रतिष्ठा वि. स. 1505 माघ कृष्णा दशमी को हुई थी, जैसा की कीर्ति-स्तम्भ की प्रशस्ति के निम्न श्लोक से सिद्ध होता है

'पुण्ये पञ्चदशे शते व्यपगते पञ्चाधिके वत्सरे,

माघ मासि वलक्षपक्षदशमी देवेज्यपुष्यागमे ।

कीर्ति-स्तम्भकायन्नरपतिः श्रीचित्रकूटाचले.

नानानिर्मित निर्जरावतणैर्मेरोर्हसन्तं श्रियम् । (श्लोक संख्या 186) 
◆ इस स्तम्भ का निर्माण महाराजा कुम्भा करवाया था, किन्तु इसके निर्माण ने का निश्चित प्रयोजन कहीं भी उल्लिखित प्राप्त नहीं परम्परा हुआ है ।
◆ जनश्रुति एवं के अनुसार इसका निर्माण मांडू (मालवा) के सुल्तान महमूद खिलजी तथा गुजरात के सुलतान कुतुबद्दीन की संयुक्त सेना पर महाराणा कुम्भा की विजय की स्मृति स्वरूप मानते हैं। 
◆ इतिहास की दृष्टि से यह कथन युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होती क्योंकि महाराणा कुम्भा की यह विजय सन् 1457 में हुई थी। जबकि विजय-स्तम्भ की प्रतिष्ठा सन् 1448 में ही हो चुकी थी। 
◆ यह सम्भव है कि महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुलतान महमूद खिलजी पर अपनी प्रथम विजय की स्मृति में बनवाया हो, क्योंकि महाराणा कुम्भा द्वारा सुलतान महमूद खिलजी को सन् 1437 में परास्त कर उसे चित्तौड़-दुर्ग में बंदी बनाकर रखने का उल्लेख मिलता है।

◆ कुछ विद्वानों की यह भी धारणा है कि उक्त स्तम्भ का निर्माण कुम्भश्याम मन्दिर के सामने विष्णु-स्तम्भ के रूप में हुआ हो जैसा कि देवताओं के निमित्त स्तम्भ निर्माण की परम्परा थी। 
◆ इस स्तम्भ पर उत्कीर्ण मूर्तियों एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से यह सम्भव प्रतीत होता है, । किन्तु इसकी स्थिति (कुम्भश्याम मंदिर के सामने न होकर लगभग 100 गज अर्थात 91 मीटर दक्षिण में) एवं शिलालेख इस धारणा की पूर्णरूप से पुष्टि करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं ।

विजय स्तम्भ 


◆ श्री ओझाजी ने इस सम्बन्ध में अपना मत इस प्रकार स्पष्ट किया है- "इसके (स्तम्भ) विषय में ऐसा प्रसिद्ध है कि मालवे के सुलतान महमूद खिलजी को प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में राणा कुम्भा ने अपने इष्ट देव विष्णु के निमित्त यह कीर्तिस्तम्भ बनवाया था।" अत: यह निश्चित है कि इस स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा अपनी विजय की स्मृति में ही करवाया गया था और इसी कारण यह ‘विजय-स्तम्भ' (Tower of victory) के नाम से प्रसिद्ध है और विजय का प्रतीक माना जाता है।
◆इस स्तम्भ की ऊपरी छतरी बिजली गिरने से नष्ट हो गई थी जिसका जीर्णोद्वार उदयपुर के महाराणा स्वरूपसिंह जी ने करवाया था ।

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रविवार, 4 जुलाई 2021

हिंगलू अहाड़ा के महल चित्तौड़ ( Hinglu ahada ke mahal chittorgarh)

हिंगलू अहाड़ा के महल चित्तौड़

◆ कुकड़ेश्वर मंदिर से आगे बढ़ने पर दाहिनी तरफ सड़क से कुछ दूर बस्ती के उत्तर में, ऊँची चट्टान पर स्थित महल के कुछ खण्डहर दिखाई देते हैं। 

◆ ये महल हिंगलू अहाड़ा के महल के नाम से प्रसिद्ध हैं। पूर्वकाल से 'अहाड़ स्थान पर रहने के कारण मेवाड़ के राणाओं का उपनाम 'अहाड़ा' हुआ और डूंगरपुर तथा बांसवाड़े के राजा भी 'अहाड़ा' कहलाते रहे। 

◆ हिंगलू डूंगरपुर का अहाड़ा सरदार था और इन महलों में रहता था जिससे ये महल 'हिंगलू अहाड़ा के महल' कहलाये।

◆ये " रतनसिंह के महल" के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाराणा सांगा का पुत्र रतनसिंह (महाराणा रतनसिंह द्वितीय) इन महलों में रहता था जिसके कारण इन्हें रतनसिंह महल कहने लगे ।

◆इन महलों के नीचे ही पूर्व में रतनेश्वर तालाब है जिसके पश्चिमी किनारे पर एक शिवालय है जो 'रतनेश्वर महादेव का मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध  है।

◆हिंगलू अहाड़ा महल से सड़क उत्तर की ओर 'लाखोटा बारी' की ओर जाती है । यह दुर्ग की उत्तरी-पूर्वी दीवार में एक छोटा सा द्वार है। इसी द्वार के पास राठौड़ जयमल की टांग में अकबर की गोली लगी थी । 


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शनिवार, 3 जुलाई 2021

भपंग-एक अनूठा तत लोक वाद्य यंत्र (Bhapang)

भपंग-एक अनूठा तत लोक वाद्य यंत्र (Bhapang)

● यह  डमरू आकार की लम्बी आल के तुम्बे का बना वाद्य होता है, जिसकी लम्बाई डेढ़ बालिश्त और चौड़ाई दस अंगुल होती है। चार बालिश्त लम्बी लकड़ी तीन अंगुल चौड़े तुम्बे में लगी रहती है। 

भपंग

● तुम्बे के नीचे का भाग खाल से मढ़ दिया जाता है और ऊपर का भाग खाली छोड़ दिया जाता है। 
● खाल के बीच में से तार निकालते हुए एक खूँटी से बाँध दिया जाता है। खूंटी को तानते व ढीला करते हुए इससे विभिन्न ध्वनियाँ निकाली जाती हैं।

भपंग एवं खूंटी 

● यह तत् वाद्य अलवर या मेवात क्षेत्र में बहुत प्रचलित है। जिसके एक सिरे पर चमड़ा मढ़ा होता है। 
●  वादक इस वाद्य के कांख में दबा कर डोर या तांत को खींच कर दूसरे साथ से उस पर लकड़ी के टुकड़े से आघात करता है। 

भपंग पर मढ़ा खाल

●  जहुर खाँ इसके ख्याति प्राप्त वादक हैं।

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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

"ZyCov-D" - the world's first DNA plasmid covid-19 vaccine "जायकोव-डी"- दुनिया की पहली डीएनए प्लाज्मिड कोविड-19 वैक्सीन

"ZyCov-D" - the world's first DNA plasmid covid-19 vaccine "जायकोव-डी"- दुनिया की पहली डीएनए प्लाज्मिड कोविड-19 वैक्सीन

◆ कोरोना वैक्सीन जायकोव-डी के लिए भारतीय कंपनी जायडस कैंडिला दवा नियामक (डीसीजीआई) से आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मांगी है।  

ZYCOV-D


◆ जायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए प्लाज्मिड वैक्सीन है। इसे बिना सुई तकनीक से लगाया जाएगा। 
◆ ये वैक्सीन 12 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए सुरक्षित होगी। जायकोव डी संभवतः दुनिया की पहली तीन डोज वाली वैक्सीन होगी। 
◆ मंजूरी मिलने पर ये देश में पांचवीं वैक्सीन होगी। 
◆ यह वेक्सीन सुई के बजाय जेट फार्माजेट इंजेक्टर से लगेगी। तेज प्रेशर के लिए कंप्रेस्ड गैस या स्प्रिंग का इस्तेमाल होगा। 
◆ इंजेक्शन में दवा भरकर उसे एक मशीन के जरिए बाह पर लगाते हैं। मशीन पर लगे बटन को दबाने से पर वैक्सीन की दवा शरीर में  पहुंच जाएगी।
◆ जायकोव-डी के लिए कोल्ड चेन की जरूरी नहीं इसे 2 से 8 डिग्री से. तापमान में रखा जा सकता  है।
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गुरुवार, 1 जुलाई 2021

सुप्रसिद्ध चूंधी गणेश मंदिर जैसलमेर ( Famous Chundhi ganesh temple jaisalmer)

सुप्रसिद्ध चूंधी गणेश मंदिर जैसलमेर ( Famous Chundhi ganesh temple jaisalmer)

◆ राजस्थान के जैसलमेर जिले से 12 किलोमीटर दूर सुप्रसिद्ध चूंधी गणेश जी का मंदिर स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूर्ण होती है ।

सुप्रसिद्ध चूंधी गणेश मंदिर जैसलमेर

◆ मंदिर का मुख्य द्वार विशाल पीले पत्थर का बना हुआ है द्वार के दोनों और सफेद संगमरमर की हाथी की मूर्तियां लगी हुई है। 
 चूंधी गणेश जी

◆ द्वार में प्रवेश कर आकर्षक उद्यान से गुजरते हुए एक रास्ता सीढियो से नीचे की तरफ नदी की ओर जाता है। इसी नदी में स्थित है सुप्रसिद्ध चूंधी गणेश जी का पावन मंदिर ।

 चूंधी गणेश मंदिर का मुख्य द्वार

◆ मंदिर की प्रतिमा से जुड़ी कथा के अनुसार, इसका निर्माण किसी शिल्पी ने नहीं किया था। यह स्वत: भूमि से प्रकट हुई थी। बरसात के मौसम में यहां नदी बहती है और प्रतिमा जलमग्न हो जाती है। 

 चूंधी गणेश मंदिर का मुख्य द्वार के बाहर हाथी की प्रतिमा 

◆ मंदिर की छत पर सुंदर कांच की नक्काशी की हुए है।तथा मंदिर का फ़र्श पिले पत्थर का बना हुआ है।
◆ यह मंदिर का करीब 1,400 साल पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि यहां चंवद नामक सिद्ध महात्मा ने कई सालो तक तपस्या की थी।  
 चूंधी गणेश मंदिर का परिसर

◆ वर्तमान में यह स्थान उन्हीं के नाम से चूंधी के नाम से जाना जाता है। यहां अन्य ऋषियों ने भी तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान को विशेष पवित्र माना गया है।
◆ यहां प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी को मेला लगता है दूर दूर से भक्तजन अपनी मनोकामना के साथ यहां आते है।तथा पूजा अर्चना करते है। 
कांक नदी 

◆ यहां नदी में बिखरे पत्थरो से भक्त जन अपना मनपसंद घर बनाते है और कामना करते है कि उन्हें भी भगवान गणेश अपना मनपसंद  घर जल्द ही प्रदान करे।

भक्तजनों द्वारा बनाये पत्थरों के घर 

◆ गणेश जी के मंदिर के साथ है यहां महादेव जी, रामदरबार - राम सीताजी ,लक्ष्मण जी,हनुमान जी के मंदिर भी बने हुए है।
◆ मंदिर के दोनों तरफ दो कुएं हैं जिनके बारे में मान्यता है कि इनमें हरिद्वार से मां गंगा का जल आता है। यह भी माना जाता है कि एक बार किसी भक्त का कंगन हरिद्वार में गंगा में गिर गया था, जो बाद में यहां निकल आया था।

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