● यह सारंगी के समान वाद्य है, जिसकी बनावट में सारंगी से भिन्नता होती है। सारंगी की तबली लम्बी होती है किन्तु इसकी गोल व लगभग डेढ़ फुट चौड़ी होती है।
● तबली पर चमड़ा मढ़ा रहता है। तबली की चौड़ाई व गोलाई के कारण इसकी ध्वनि में भारीपन व गूँज होती है।
● इसे बजाने का गज भी सारंगी के गज से लगभग डेढ़ा होता ।
● इसमें तीन मुख्य तार लगे होते हैं जो पशुओं की आंत के होते हैं। साथ ही चार से सात सहायक तार स्टील के तार ब्रिज के ऊपर लगे होते हैं।
● कई कमायचा ऐसे भी होते है जिनमे 27 तार लगे होते हैं। अलग अलग कमायचो में तारो की संख्या में भिन्नता देखी जा सकती है।
● तरबों की खूँटियाँ सब ऊपर की ओर होती हैं। इसकी ऊपरी आकृति बहुत कुछ मराठी सारंगी से मिलती है।
● इसमें एक ओर गुजरातण सारंगी की भाँति केवल सात तरबें होती हैं जो सा से नि तक के स्वरों में मिली रहती हैं।
● कामायचा के मुख्य तार तांत के होते हैं। इसकी तरबों का प्रयोग गज संचालन के साथ किया जाता है। इसलिए वे घुड़च के ठीक ऊपर से निकाली जाती हैं।
● इनसे वाद्य की ध्वनि अत्यन्त प्रखर हो जाती है। इस वाद्य का प्रयोग मुस्लिम शेख करते हैं जिन्हें मांगणियार भी कहा जाता है।
● नाथ पंथ के साधु भी भर्तृहरि व गोपीचंद की कथा के गीत कामायचा वाद्य यंत्र के साथ गाते है।
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