सोमवार, 5 जुलाई 2021

Vijay Stambh (jay stambh) chittorgarh fort विजयस्तम्भ ( जयस्तम्भ ) -चित्तौड़गढ़ किला


Vijay Stambh (jay stambh) chittorgarh fort विजयस्तम्भ ( जयस्तम्भ ) -चित्तौड़गढ़ किला

◆चित्तौड़गढ़ किले में 47 फीट वर्गाकार व 10 फीट (लगभग 3मीटर) ऊँचे आधार पर बना 122 फीट (लगभग 34 मीटर) ऊँचा नौ मंजिला यह स्मारक भारतीय स्थापत्य-कला की सुन्दर कारीगरी का प्रतीक है। 
◆ यह स्तम्भ आधार पर 30 फीट (6मीटर) चौड़ा है तथा इसमें ऊपर तक जाने के लिये 157 सीढ़ियां हैं हैं। जो केन्द्रीय दीवार के साथ-साथ घूमती हुई चली गयी हैं। 
◆ इस स्मारक के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर अनेक भारतीय पौराणिक देवी-देवताओं अर्द्धनारीश्वर, उमामहेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहरपितामह, व विष्णु के भिन्न रूपों व अवतारों की तथा रामायण और महाभारत के पात्रों आदि. की सैकड़ों मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। 
◆ इसके साथ ही देवी और मात्रिका प्रतिमाओं, दिक्पालों, ऋतुओं, नदियों एवं जनजीवन की विविधानेक झांकियों का सुन्दर अंकन प्रस्तुत किया गया है जिससे तत्कालीन शस्त्रास्त्रों नृत्यवादन आदि के वाद्य-यन्त्रों के साथ-साथ सामाजिक जीवन का परिचय प्राप्त किया जा सकता है ।
◆ इन अंकनों के नीचे उत्कीर्ण-लेख, मूर्तियों की विविधता एवं उसके लेख के आधार पर इसे' भारतीय मूर्तिकला का शब्दकोष' कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

विजय स्तम्भ 

◆ श्री रतनचन्द्र अग्रवाल के अनुसार इस स्तम्भ तथा कुम्मश्याम मन्दिर में उत्कृष्ट कला-कृतियों को मूर्तरूप देने का श्रेय जइता तथा उसके पुत्रों-नापा, पोमा, पूंजा, भूमि, बलराज आदि को है। 
◆ इस स्तम्भ की पांचवी मंजिल में इनकी मूर्तियों भी बनी मिलती हैं। मध्य में जड़ता एक कुर्सी पर बैठा है और पास ही उसके पुत्र नापा, पोमा, पूंजा खड़े हैं। उनकी आकृतियों के नीचे 'शिल्पिनः' खोदकर उनके नाम भी क्रमशः उत्कीर्ण हैं ।
विजय स्तम्भ की सीढ़िया


 ◆ इस स्तम्भ का निर्माणकार्य सन् 1440 में प्रारम्भ होकर सन् 1448 (वि. स. 1505) में सम्पूर्ण हुआ तथा इसकी औपचारिक प्रतिष्ठा वि. स. 1505 माघ कृष्णा दशमी को हुई थी, जैसा की कीर्ति-स्तम्भ की प्रशस्ति के निम्न श्लोक से सिद्ध होता है

'पुण्ये पञ्चदशे शते व्यपगते पञ्चाधिके वत्सरे,

माघ मासि वलक्षपक्षदशमी देवेज्यपुष्यागमे ।

कीर्ति-स्तम्भकायन्नरपतिः श्रीचित्रकूटाचले.

नानानिर्मित निर्जरावतणैर्मेरोर्हसन्तं श्रियम् । (श्लोक संख्या 186) 
◆ इस स्तम्भ का निर्माण महाराजा कुम्भा करवाया था, किन्तु इसके निर्माण ने का निश्चित प्रयोजन कहीं भी उल्लिखित प्राप्त नहीं परम्परा हुआ है ।
◆ जनश्रुति एवं के अनुसार इसका निर्माण मांडू (मालवा) के सुल्तान महमूद खिलजी तथा गुजरात के सुलतान कुतुबद्दीन की संयुक्त सेना पर महाराणा कुम्भा की विजय की स्मृति स्वरूप मानते हैं। 
◆ इतिहास की दृष्टि से यह कथन युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होती क्योंकि महाराणा कुम्भा की यह विजय सन् 1457 में हुई थी। जबकि विजय-स्तम्भ की प्रतिष्ठा सन् 1448 में ही हो चुकी थी। 
◆ यह सम्भव है कि महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुलतान महमूद खिलजी पर अपनी प्रथम विजय की स्मृति में बनवाया हो, क्योंकि महाराणा कुम्भा द्वारा सुलतान महमूद खिलजी को सन् 1437 में परास्त कर उसे चित्तौड़-दुर्ग में बंदी बनाकर रखने का उल्लेख मिलता है।

◆ कुछ विद्वानों की यह भी धारणा है कि उक्त स्तम्भ का निर्माण कुम्भश्याम मन्दिर के सामने विष्णु-स्तम्भ के रूप में हुआ हो जैसा कि देवताओं के निमित्त स्तम्भ निर्माण की परम्परा थी। 
◆ इस स्तम्भ पर उत्कीर्ण मूर्तियों एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से यह सम्भव प्रतीत होता है, । किन्तु इसकी स्थिति (कुम्भश्याम मंदिर के सामने न होकर लगभग 100 गज अर्थात 91 मीटर दक्षिण में) एवं शिलालेख इस धारणा की पूर्णरूप से पुष्टि करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं ।

विजय स्तम्भ 


◆ श्री ओझाजी ने इस सम्बन्ध में अपना मत इस प्रकार स्पष्ट किया है- "इसके (स्तम्भ) विषय में ऐसा प्रसिद्ध है कि मालवे के सुलतान महमूद खिलजी को प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में राणा कुम्भा ने अपने इष्ट देव विष्णु के निमित्त यह कीर्तिस्तम्भ बनवाया था।" अत: यह निश्चित है कि इस स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा अपनी विजय की स्मृति में ही करवाया गया था और इसी कारण यह ‘विजय-स्तम्भ' (Tower of victory) के नाम से प्रसिद्ध है और विजय का प्रतीक माना जाता है।
◆इस स्तम्भ की ऊपरी छतरी बिजली गिरने से नष्ट हो गई थी जिसका जीर्णोद्वार उदयपुर के महाराणा स्वरूपसिंह जी ने करवाया था ।

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