• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

शुक्रवार, 22 मई 2015

Rajasthan's Lok Devta and Lok Devi (लोक देवता एंव लोक देवियां) GK


Rajasthan's Lok Devta and Lok Devi (लोक देवता एंव लोक देवियां)
1. चौबीस बाणियां किस लोकदेवता से संवंधित पुस्तक/
ग्रन्थ है ?
Ans: रामदेवजी
2. संत जसनाथजी का जन्म किस जिले में हुआ था (RAS 94,99)
Ans: बीकानेर
3. भूरिया बाबा किसके आराध्य देवता है ? (RPSC 2nd GR 2010)
Ans: मीणा
4. राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के प्रणेता थे ?
Ans: संत दादू
5. जाम्भो जी के अनुयायी कहलाते है (RPSC 2nd GR 2010, RAS 03)
Ans: विश्नोई
6. लोक संत पीपाजी का विशाल मेला कंहाँ लगता है
Ans: समदङी ग्राम में (बाङमेर)
7. किस संत के चमत्कारों से प्रसन्न होकर सिकंदर लोदी ने उन्हें जागीर प्रदान की ?(Patwari Hanumangarh 2011)
Ans: जसनाथजी
8. भूमि के रक्षक देवता के रूप में किसे पूजा जाता है ?
Ans: भौमिया जी
9. कबीर पंथी समुदाय का प्रमुख ग्रंथ है ? (B.ED. -03 )
Ans: कबीर वाणी
10. बल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल है ? (RAS -89 , 92 )
Ans: नाथद्वारा
11. लोक देवता गोगाजी का प्रसिध्द मेला कंहाँ लगता है
Ans: गोगामेङी, हनुमानगढ
12. तेजाजी का प्रमुख तीर्थ स्थान है ? (RPSC 2nd GR 2010)
Ans: परबतसर
13. कामङिया पंथ की स्थापना की थी ?
Ans: बाबा रामदेवजी ने
14. दादूपंथी सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी स्थित है (RPSC 2nd GR 2010)
Ans: नरैना (जयपुर) में
15. किस लोकदेवता की ख्याति 'चार हाथों वाला देवता' के रूप में हुई ?(Patwari Jaipur 2011)
Ans: वीर कल्ला जी
16. किस लोकदेवता को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है ?
Ans: पाबूजी को
17. गोगाजी के गुरु कौन थे ? (Patwari Bhilwara 2011)
Ans: गुरु गोरखनाथ
18. संत धन्ना का जन्म राजस्थान के किस जिले में हुआ था ? (RPSC 2nd GR 2007 )
Ans: टोंक जिले के धुवन गाँव में
19. किस लोक देवता को जाहिर पीर के नाम से जाना जाता है
Ans: गोगाजी को
20. दादू ने अपना अंतिम समय कंहाँ बिताया ?(RPSC 2nd GR 2010)
Ans: नारायणा (नरैना ) गाँव
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सोमवार, 4 मई 2015

Examination Guidance Quiz (Part-4) परीक्षा मार्गदर्शन प्रश्नोत्तरी(भाग -4)

1.राज्य में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाली पंचायत समिति कौनसी है ?
(१) बहरोड             (२) नीमराणा
(३) धौलपुर            (४) सिकराई           (३)
2.राज्य में सबसे अधिक जनसंख्या वाली तहसील है-
(१) लाडपुरा           (२) जोधपुर
(३) जयपुर             (४) अजमेर            (३)
3. राजस्थान का सबसे पहला साक्षर आदिवासी जिला है-
(१) बांसवाडा         (२) बारां
(३) डूंगरपुर           (४) सिरोही              (३)
4. जयपुर नगर की स्थापना किसने की?
(१) मानसिंह          (२)कोकील देव
(३)जयसिंह द्वितीय (४)भारमल          (३)
5. द्वारिकापुरी का रणछोड मन्दिर बनवाया था ?
(१)राव भारमल     (२)राव सुर्जन
(३)देव सिंह          (४)राव शत्रुशाल       (२)
6. जैसलमेर में गुंडाराज पुस्तक लिखी –
(१)जैसलसिंह       (२)जगवीर
(३)गुमान सिंह      (४)सागर मल गोपा (४)
7.सोडियम सल्फेट कारखाना कहाँ है?
(१)डीडवाना (नागौर) (२)पचपदरा (बाड़मेर)
(३)सांभर (फूलेरा)   (४)लूणकरणसर    (१)
8. राजस्थान में वर्तमान में संभाग ओर जिलों की संख्या का सही युग्म है –
(१)7-33              (२)6-47
(३)8-34              (४)7-32                  (१)
9. पश्चिमी राजस्थान का एक अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण वृक्ष है-
(१)खेजडी             (२)आक
(३)बबूल               (४)कैर                 (१)
10.राजस्थान का 33वे जिले का नाम है-
(१)हनुमानगढ़        (२)प्रतापगढ़
(३)दौसा               (४)कोटपुतली       (२)
11. रवीन्द्र रंगमंच की स्थापना कहां की गई थी –
(१)अजमेर            (२)जयपुर
(३)जोधपुर            (४)उदयपुर          (२)
12. राजस्थान का कौनसा जिला अति-आर्द्र जलवायु प्रदेश में स्थित है-
(१)बाँसवाडा         (२)अजमेर
(३)भरतपुर           (४)डूंगरपुर            (१)
13. राज्य का सर्वाधिक आर्द्र स्थान कौनसा है-
(१)झालावाड        (२)उदयपुर
(३)माउन्ट आबू     (४)सिरोही             (३)
14.राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री थे –
(१)हरिदेव जोशी   (२)भैरोंसिंह शेखावत
(३)हीरालाल शास्त्री(४)टीकाराम पालीवाल(३)
15. राजस्थान का राजकीय पुष्प है-
(१)गुलाब            (२)रोहिडा का फुल
(३)कमल            (४)सूरजमुखी          (२)
16.राज्य का राजकीय वृक्ष है-
(१)खेजडी           (२)नीम
(३)बरगद            (४)आम                (१)
17. राज्य का राजकीय पक्षी है-
(१)मोर              (२)तोता
(३)कबूतर         (४)गोडावण            (४)
18. राज्य का राजकीय पशु है-
(१)गोडावण       (२)शेर
(३)चिंकारा         (४)ऊंट                  (३)
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Rajasthan's leading animal development and reproduction center-राजस्थान के प्रमुख पशु विकास एवं प्रजनन केंद्र

1. भैंस प्रजनन केंद्र - वल्लभनगर (उदयपुर)
2. चारा बीज उत्पादन फार्म - मोहनगढ़ (जैसलमेर)
3. बतख, चूजा उत्पादन केंद्र - बांसवाड़ा
4. राष्ट्रीय पोषाहार संस्थान - जामडोली (जयपुर)
5. बकरी प्रजनन फार्म - रामसर (अजमेर)
6. षुकर प्रजनन फार्म - अलवर
7. बूलमदर फार्म - चादन गांव (जैसलमेर)
8. केंद्रीय पषु प्रजनन केद्र - सूरतगढ़ (गंगानगर)
9. राज्य कुंकुट फार्म - जयपुर
10. गौवंष संवर्द्धन फार्म - बस्सी (जयपुर)
11. राष्ट्री उष्ट्र अनुसंधान केंद्र - जोहड़बीड़ (बीकानेर)
12. पष्चिमी क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र - अविका नगर (टोंक)
13. केंन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधन संस्थान - अविकानगर (टोंक)
14. नाली नस्ल भेड़ प्रजनन अनुसंधान  केंद्र  - हनुमानगढ़
15. मगरा पुगल भेड़ प्रजनन अनुसंधान  केंद्र  - बीकानेर
16. राजस्थान भेड़ व ऊन प्रषिक्षण केद्र - जोधपुर
17. राजस्थान ऊन विष्लेषण प्रयोगषाला - बीकानेर
18. मुर्रा नस्ल भेड़ प्रजनन केंद्र - कुमेर (भरतपुर)
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Ancient names of different regions of Rajasthan-राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के प्राचीन नाम

राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के प्राचीन नाम
1. यौद्धैय - श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ के पास का क्षेत्र
2. अहिच्छत्रपुर - नागौर { जांगल प्रदेश की राजधानी
3. गुर्जरत्रा - जोधपुर पाली
4. वल्ल /दुंगल/माड - जैसलमेर
5. स्वर्णगिरि - जालोर
6. चंद्रावती - आबू
7. शिव/मेदपाट या प्राग्वाट/मेवाड़ - उदयपुर चित्तौड़
8. वागड़ - डूंगरपुर बाँसवाड़ा
9. कुरू - अलवर
10. शूरसेन/ब्रजभूमि - भरतपुर करौली धौलपुर
10. हय हय/ हाड़ौती - कोटा बूँदी झालावाड़
11. विराट/बैराठ - अलवर जयपुर
12. जांगल - बीकानेर जोधपुर
13. शाकम्भरी - सांभर
14. ढूंढाड़ - जयपुर टौंक
15. मालव देश - प्रतापगढ़ व झालावाड़
16. आलौर - अलवर
17. कांठल - प्रतापगढ़
18. मत्स्य प्रदेश - भरतपुर अलवर का क्षेत्र
19. गोपालपाल - करौली
20. आर्बुद प्रदेश - सिरोही
21. गोंडवाड़ा - जालोर व पाली का कुछ भाग
22. ब्रजनगर - झालरापाटन
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Rajasthan: Provisional statistics for 2011 census-राजस्थान : जनगणना - 2011 के अनंतिम आंकड़े

कुल जनसंख्या 68621012
(i)                महिला जनसंख्या 33000926
(ii)              पुरुष जनसंख्या 35620086
साक्षरता (%) में 67.06 (देश स्तर पर 33वां स्थान )
(i)                महिला साक्षरता 52.66
(ii)              पुरुष साक्षरता 80.51
(iii)            सर्वाधिक महिला साक्षरता कोटा (66.32%)
(iv)            सर्वाधिक पुरुष साक्षरता झुंझुनू (87.88%)
शीर्ष चार साक्षरता वाले जिले -कोटा (77.84%), जयपुर (76.44%), झुंझुनू
(74.72%), सीकर (72.58%)
न्यूनतम साक्षरता वाले  चार जिले- जालौर (55.58%), सिरोही (56.02%),
प्रतापगढ़ (56.30%), बांसवाड़ा (57.20%)
लिंगानुपात 926
(i)                0-6 आयु वर्ग लिंगानुपात 883
(ii)              सर्वाधिक और न्यूनतम लिंगानुपात क्रमशः डूंगरपुर (990) और धौलपुर (845)
जनघनत्व 201
सर्वाधिक जनघनत्व वाला जिला भरतपुर (503)
न्यूनतम जनघनत्व वाला जिला जैसलमेर (17)
दशकीय जनसंख्या वुद्धि दर 21.44%
सर्वाधिक एवं न्यूनतम दशकीय जनसं.या वुद्धि दर वाले जिले क्रमशः बाड़मेर (32.55%) और हनुमानगढ़ (10.06%)
सर्वाधिक जनसंख्या वाला जिला जयपुर (6663971)
न्यूनतम जनसंख्या वाला जिला जैसलमेर (672008)
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Major rivers of Rajasthan-राजस्थान की प्रमुख नदियाँ

१) चम्बल नदी -
इस नदी का प्राचीन नाम चर्मावती है।कुछ स्थानों पर इसे कामधेनु भी कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (६१६ मीटर ऊँची) के विन्ध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है। अपने उदगम् स्थल से ३२५ किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर एक लंबे संकीर्ण मार्ग से तीव्रगति से प्रवाहित होती हुई चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। यहां से कोटा तक लगभग ११३ किलोमीटर की दूरी एक गार्ज से बहकर तय करती है।चंबल नदी पर भैंस रोड़गढ़ के पास प्रख्यात चूलिया प्रपात है।यह नदी राजस्थान के कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर व धौलपुर जिलों में बहती हुई उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले मुरादगंज स्थान में यमुना में मिल जाती है। यह राजस्थान की एक मात्र ऐसी नदी है जो सालोंभर बहती है।इस नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध बने हैं।
ये बाँध सिंचाई तथा विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियों में काली, सिन्ध, पार्वती, बनास, कुराई तथा बामनी है। इस नदी की कुल लंबाई 965 किलोमीटर है। यह राजस्थान में कुल ३७६ किलोमीटर तक बहती है।
२) काली सिंध -
यह चंबल की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम् स्थल मध्य प्रदेश में देवास के निकट बागली गाँव है । कुध दूर मध्य प्रदेश में बहने के बाद यह राजस्थान के झालावाड़ और कोटा जिलों में बहती है। अंत में यह नोनेरा (बरण) गांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई २७८ किलोमीटर है। आहू, उजाड, नीवाज, परवन इसकी सहायक नदिया  है।
३) बनास नदी -
बनास एक मात्र ऐसी नदी है जो संपूर्ण चक्र राजस्थान में ही पूरा करती है। बनअआस अर्थात बनास अर्थात (वन की आशा) के रुपमें जानी जाने वाली यह नदी उदयपुर जिले के अरावली पर्वत श्रेणियों में कुंभलगढ़ के पास खमनौर की पहाड़ियों से निकलती है।यह नाथद्वारा, कंकरोली, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले में बहती हुई टौंक, सवाई माधोपुर के पश्चात रामेश्वरम के नजदीक (सवाई माधोपुर) चंबल में गिर जाती है। इसकी लंबाई लगभग ४८० किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में बेडच, कोठरी, मांसी, खारी, मुरेल व धुन्ध है। (i )बेडच नदी १९० किलोमीटर लंबी है तथा गोगंडा पहाड़ियों (उदयपुर) से निकलती है। (ii )कोठारी नदी उत्तरी राजसामंद जिले के दिवेर पहाड़ियों से निकलती है। यह १४५ किलोमीटर लंबी है तथा यह उदयपुर, भीलवाड़ा में बहती हुई बनास में मिल जाती है।(iii) खारी नदी ८० किलोमीटर लंबी है तथा राजसामंद के बिजराल की पहाड़ियों से निकलकर देवली (टौंक) के नजदीक बनास में मिल जाती है।
४) बाणगंगा -
इस नदी का उदगम् स्थल जयपुर की वैराठ की पहाड़ियों से है। इसकी कुल लंबाई ३८० किलोमीटर है तथा यह सवाई माधोपुर, भरतपुर में बहती हुई अंत में फतेहा बाद (आगरा) के समीप यमुना में मिल जाती है। इस नदी पर रामगढ़ के पास एक बांध बनाकर जयपुर को पेय जल की आपूर्ति की जाती है।
५) पार्वती नदी -
यह चंबल की एक सहायक नदी है। इसका उदगम् स्थल मध्य प्रदेश के विंध्यन श्रेणी के पर्वतों से है तथा यह उत्तरी ढाल से बहती है। यह नदी करया हट (कोटा) स्थान के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है और बून्दी जिले में बहती हुई चंबल में गिर जाती है।
६) गंभीरी नदी -
११० किलोमीटर लंबी यह नदी सवाई माधोपुर की पहाड़ियों से निकलकर करौली से बहती हुई भरतपुर से आगरा जिले में यमुना में गिर जाती है।
७) लूनी नदी -
यह नदी अजमेर के नाग पहाड़-पहाड़ियों से निकलकर नागौर की ओर बहती है। यह जोधपुर, बाड़मेर और जालौर में बहती हुई यह गुजरात में प्रवेश करती है। अंत में कच्छ की खाड़ी में गिर जाती है। लूनी नदी की कुल लंबाई ३२० किलोमीटर है। यह पूर्णत: मौसमी नदी है। बलोतरा तक इसका जल मीठा रहता है लेकिन आगे जाकर यह खारा होता जाता है। इस नदी में अरावली श्रृंखला के पश्चिमी ढाल से कई छोटी-छोटी जल धाराएँ, जैसे लालरी, गुहिया, बांड़ी, सुकरी जबाई, जोजरी और सागाई निकलकर लूनी नदी में मिल जाती है। इस नदी पर बिलाड़ा के निकट का बाँध सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है।
८) मादी नदी -
यह दक्षिण राजस्थान मुख्यत: बांसबाड़ा और डूंगरपुर जिले की मुख्य नदी है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल पर्वत के अममाऊ स्थान से निकलती है। उदगम् से उत्तर की ओर बहने के पश्चात् खाछू गांव (बांसबाड़ा) के निकट दक्षिणी राजस्थान में प्रवेश करती है। बांसबाड़ा और डूंगरपूर में बहती हुई यह नदी गुजरात में प्रवेश करती है। कुल ५७६ किलोमीटर बहने के पश्चात् यह खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरन है। इस नदी पर बांसबाड़ा जिले में माही बजाज सागर बांध बनाया गया है।
९) धग्धर नदी -
यह गंगानगर जिले की प्रमुख नदी है। यह नदी हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणियों से शिमला के समीप कालका के पास से निकलती है। यह अंबाला, पटियाला और हिसार जिलों में बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में टिब्वी के समीप उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवेश करती है। पूर्व में यह बीकानेर राज्य में बहती थी लेकिन अब यह हनुमानगढ़ के पश्चिम में लगभग ३ किलोमीटर दूर तक बहती है।
हनुमानगढ़ के पास भटनेर के मरुस्थलीय भाग में बहती हुई विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लंबाई ४६५ किलोमीटर है। इस नदी को प्राचीन सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है।
१०) काकनी नदी -
इस नदी को काकनेय तथा मसूरदी नाम से भी बुलाते है। यह नदी जैसलमेर से लगभग २७ किलोमीटर दूर दक्षिण में कोटरी गाँव से निकलती है। यह कुछ किलोमीटर प्रवाहित होने के उपरांत लुप्त हो जाती है। वर्षा अधिक होने पर यह काफी दूर तक बहती है। इसका पानी अंत में भुज झील में गिर जाता है।
११) सोम नदी -
उदयपुर जिले के बीछा मेड़ा स्थान से यह नदी निकलती है। प्रारंभ में यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई डूंगरपूर की सीमा के साथ-साथ पूर्व में बहती हुई बेपेश्वर के निकट माही नदी से मिल जाती है।
१२) जोखम -
यह नदी सादड़ी के निकट से निकलती है। प्रतापगढ़ जिले में बहती हुई उदयपुर के धारियाबाद तहसील में प्रवेश करती है और सोम नदी से मिल जाती है।
१३) साबरमती -
यह गुजरात की मुख्य नदी है परंतु यह २९ किलोमीटर राजस्थान के उदयपुर जिले में बहती है। यह नदी पड़रारा, कुंभलगढ़ के निकट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती है। इस नदी की कुल लंबाई ३१७ किलोमीटर है।
१४) काटली नदी -
सीकर जिले के खंडेला पहाड़ियों से यह नदी निकलती है। यह मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर यह प्रवाहित होती है। यह उत्तर में सींकर व झुंझुनू में लगभग १०० किलोमीटर बहने के उपरांत चुरु जिले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।
१५) साबी नदी -
यह नदी जयपुर जिले के सेवर पहाड़ियों से निकलकर मानसू, बहरोड़, किशनगढ़, मंडावर व तिजारा तहसीलों में बहने के बाद गुडगाँव (हरियाणा) जिले के कुछ दूर प्रवाहित होने के बाद पटौदी के उत्तर में भूमिगत हो जाती है।
१६) मन्था नदी -
यह जयपुर जिले में मनोहरपुर के निकट से निकलकर अंत में सांभर झील में जा मिलती है।



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Introduction to Rajasthan-राजस्थान -एक परिचय

राजस्थान -एक परिचय
राजस्थान हमारे देश का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य हैं, जो हमारे देश के उत्तर-पश्चिम मे स्थित है। यह भू-भाग प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक कई मानव सभ्यताओ के विकास एवं पतन की स्थली रहा है। यहाँ पूरा-पाषाण युग, कांस्य युगीन सिंधु सभ्यता की प्राचीन बस्तियाँ, वैदिक सभ्यता एवं ताम्रयुगीन सभ्यताएँ खूब फली फूली थी। छठी शताब्दी के बाद राजस्थानी भू-भाग मे राजपुत राज्यो का उदय प्रारम्भ हुआ। जो धीरे धीरे सम्पूर्ण क्षेत्र मे अलग-अलग रियासतो के रूपमे विस्तृत हो गयी। ये रियासते राजपूत राजाओ के अधीन थी। राजपूत राजाओ की प्रधानता के कारण कालांतर मे इस सम्पूर्ण क्षेत्र को 'राजपूताना' कहा जाने लगा। वाल्मीकि ने राजस्थान प्रदेश को 'मरुकांतार' कहा है।
राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग 'राजस्थानीयादित्य' वी.स. 682 मे उत्कीर्ण वसंतगढ़ (सिरोही) के शिलालेख मे उपलब्ध हुआ है। उसके बाद मुहणौत नैन्सी के ख्यात व रजरूपक में राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ है। परंतु इस भू-भाग के लिए राजपूताना शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1800 ई. मे जॉर्ज थॉमस द्वारा किया गया था। कर्नल जेम्स टोड (पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यो के पॉलिटिकल एजेंट) ने इस राज्य को 'रायथान' कहा, क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल मे राजाओ के निवास को रायथान कहते थे। उन्होने 1829 ई. मे लिखित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक 'Annals & Antiquities of Rajas'than' or Central and Western Rajpoot States of India) मे सर्वप्रथम इस भौगोलिक प्रदेश के लिए 'Rajas'than' शब्द प्रयुक्त किया। स्वतन्त्रता के पश्चात 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से इस प्रदेश का नाम 'राजस्थान' स्वीकार किया गया।
स्वतन्त्रता के समय राजस्थान 19 देसी रियासतो, 3 ठिकाने- कुशलगढ़, लावा व नीमराना तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशाषित अजमेर-मेरवाड़ा प्रदेश मे विभक्त था। स्वतंत्रता के बाद अजमेर-मेरवाड़ा के प्रथम एवं एकमात्र मुख्यमंत्री श्री हरिभाऊ उपाध्याय थे। राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप मे 1 नवम्बर, 1956को आया।
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Forest Estate of Rajasthan - Types of Forests-राजस्थान की वन सम्पदा- वनों के प्रकार

वन-सरंक्षण की दिशा मेंप्रयास-
राजस्थान में वन संरक्षण के लिए एकीकृत वन विभाग की स्थापना 1951 में की गई, तब राजस्थान के सभी वनों को नियमित वैज्ञानिक प्रबंध के अंतर्गत लिया गया और वनों की सीमा का सीमांकन किया गया। लगभगसभी वन-क्षेत्रों या फारेस्ट-ब्लॉक्स को राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अंतर्गत अधिसूचित किया गया । सन 1960 में जमीदारी उन्मूलन के साथ जागीर एवं जमीन वन राजस्थान वन विभाग के नियंत्रण मेंआ गए। जंगलों का वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए सभी वन प्रभागों के पास नियमित रूपसे कार्ययोजना है। राज्य के शुष्क परिस्थितियों तथा मरुस्थलीकरण को कम करने के लिए व्यापक वनीकरण योजनाओं रूप मेंअच्छी तरह से लागू की गई।
राज्य के वनों की सामान्य विशेषताएं-
राजस्थान का क्षेत्रफल नॉर्वे (3, 24,200 वर्गकिमी), पोलैंड (3, 12,600 वर्ग किमी) और इटली (3, 01,200 वर्गकिमी) जैसे कुछ पश्चिमी दुनिया के विकसित देशों के लगभगबराबर है।
राजस्थान में वनों का कुल क्षेत्रफल 32,638.74 वर्ग किलोमीटर है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9.54% है।
राजस्थान में वनक्षेत्र उत्तरी , दक्षिणी ,पूर्वी औरदक्षिण-पूर्वी भागों मेंअसमान रूप से फैले हुए हैं।
राज्य में सागौन वन विद्यमान हैं जो भारत में सागौन वनक्षेत्र की सबसे उत्तरी सीमा है। राजस्थान के ज्यादातर वन edapho-climatic climaxवन हैं।
राज्य मेंवन न केवल आंशिक रूप से ईंधन की लकड़ी और ग्रामीण लोगों के चारे की मांग को पूरा करते हैं बल्कि राज्य घरेलू उत्पाद (एसडीपी) में Rs.7160 मिलियन योगदान करते हैं।
राजस्थान में प्राकृतिक वनों की हद न केवल देश में सबसे कम है, लेकिन यह वन-उत्पादकता की दृष्टि से भी सबसे कम है।
इसके विपरीत राजस्थान बंजर भूमि की सबसे बड़ी मात्रा के साथ समृद्ध राज्य है जो देश की कुल बंजरभूमि का लगभग20% है।
राजस्थान में15 वर्षो मेंयहाँ के वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है। वर्ष 1990-91 में जहाँ राज्य में वन क्षेत्र का प्रतिशत 6.87 था , वह वर्ष 2005-06 में9.54 प्रतिशत हो गया।
राजस्थान में वन क्षेत्र का विस्तार 32,638.74 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्र का 9.54 प्रतिशत है। यह प्रतिशत राष्ट्रीय वन नीति द्वारा निर्धारित 33.33 प्रतिशत से बहुत कम है।
प्रदेश में सर्वाधिक प्रतिशत वन-क्षेत्र करौली जिले में 34.21 प्रतिशत है। राज्य में सबसे कम वन क्षेत्रफल वाला जिला चूरूहै जिसमें मात्र 71 वर्ग किमी. वनक्षेत्र है जो अर्थात 0.48 प्रतिशत है।
जैसलमेर, नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, जौधपुर, टोंक, गंगानगर, हनुमानगढ़ तथा जालौर जिले ऐसे हैं जहाँ वनों का क्षेत्र 5 प्रतिशत से कम है। सामान्य रूपसे राजस्थान में शुष्क सागवान वन, सालर वन, ढाक अथवा पलाश के वन, मरूस्थली वनस्पति, शुष्क पतझड़ वन तथा मिश्रित वन मिलते है।
राज्य में वन क्षेत्रों के सीमित विस्तार के कारण-
यहाँ कम वर्षा होना
उच्च तापमान
मरूस्थली क्षेत्रों का अधिक विस्तार
अनियन्त्रित पशुचारण तथा
मानव द्वारा किया जाने वाला वनोन्मूलन
वन संसाधनों का प्राकृतिक महत्व-
वन एक प्राकृतिक संसाधन है जिनका बहुमुखी उपयोग है। वन पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जैव-विविधता को संरक्षित रखतेहैं।
जलवायु परिवर्तन को रोकते है।
पर्यावरण को शुद्ध रखतेहैं।
प्राकृतिक सुंदरता में अभिवृद्धि करते हैं।
जलवायु को सम बनाते हैं,
तापमान में वृद्धि रोकते हैं।
आर्द्रता मेंवृद्धि कर वर्षा में सहायक है।
मिट्टी के कटान को रोकते है।
वनों का आर्थिक महत्व-
राज्य में वनों से लगभग हजारों व्यक्तियों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। राजस्थान के वनों से जो मुख्य उपजें प्राप्त होती हैं वेनिम्न हैं-
वनों से इमारती लकड़ी (सागवान, धोकड़ा, सालर, शीषम, बबूल, आदि से) तथा ईंधन हेतु लकड़ी और कोयला प्राप्त होते है तेंदू पत्ता एक महत्वपूर्ण उत्पाद है , जिसका उपयोग बीड़ी बनाने में होता है वनों से बाँस, गोंद, कत्था, लाख, घास, खस, महुआ एवं अनेक प्रकार की औषधियां प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त वनों से आँवला, कैर, बैर, शहद, मोम, तेंदू तथा अनेक कन्दमूल प्राप्त होते है।
राजस्थान में वनों के प्रकार -
राजस्थान पुष्पीय सम्पदा की दृष्टि से समृद्ध है किन्तु यह विभिन्नता लिए हुए छितराया हुआ है। चूँकि राज्य का पश्चिमी भाग मरू क्षेत्र है, अतः अधिकतर वन क्षेत्र पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में ही सीमित है, जहां के वन असमान रूपसे विभिन्न जिलों मेंफैले हुए है।
राज्य का अधिकाँश वन क्षेत्र पर्वतीय क्षेत्रों जैसे उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाडा, कोटा, बारां, सवाईमाधोपुर, सिरोही, बूंदी, झालावाड़, अलवर, में हैं जो राज्य के वनों का लगभग50 % है। राज्य में सघन प्राकृतिक वन अधिकतर विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। राज्य के शेष वनीय इलाके में से क्षेत्र अधिकांश वृक्षारोपण विभिन्न चरणों द्वारा विकसित किये गएक्षेत्रों के रूप मेंहैं।
राजस्थान के वनों को निम्नांकित 4 व्यापक प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. उष्णकटिबंधीय कंटक वन ( Tropical Thorn Forests) -
येवन पश्चिमी राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों मेंपाए जाते हैं।ये वन
पश्चिमी भारत-पाक सीमा से प्रारंभ होकर धीरे-धीरे अरावली पहाड़ियों के शुष्क पतझड़ मिश्रित वन और दक्षिण- पूर्वी पठार के साथ विलय हो जाते हैं।
इस वन क्षेत्र में प्रमुख रूपसे बबूल, केर, खेजड़ा (खेजड़ी-राज्य वृक्ष), कीकर, विलायती बबूल, बेर, रोहिड़ा, थूहड़ (थोर), नागफनी, ग्वारपाठा आदि वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों मूल रूप से राजस्थान के पश्चिमी भाग अर्थात् जोधपुर ,
पाली , जालोर , बाड़मेर , नागौर , चुरू , बीकानेर आदि जिलों में पाए जाते हैं।
2. उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन ( Tropical Dry Deciduous Forests) -
ये वन राज्य के अरावली पर्वतमाला के उत्तरी और पूर्वी ढलान के कुछ हिस्सों में छोटे-छोटे टुकड़ों में पाए जाते हैं, जो ज्यादातर अलवर, भरतपुर औरधौलपुर जिलों मेंहैं। शुष्क पतझड़ वन की कुछ प्रजातियों की छिटपुट विकास जालौर , नागौर , गंगानगर और बीकानेर जिलों की नदियों के शुष्क प्रवाह क्षेत्रों मेंपाया जाता है। वनों के इस प्रकार में पायी जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियां धावा (धावड़ा) , ढाक (पलाश) , बबूल, खैर-कत्था , बहेड़ा , अर्जुन वृक्ष ,सेमल,बांस ,सागवान , गूलर, आम,बरगद,आंवला आदि है।
3. केन्द्रीय भारतीय उपोष्णकटिबंधीय पर्वतीय वन
( Central Indian Sub - tropical Hill Forests) -
येवन मध्य भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सबसे प्रचुर मात्रा पाए जाते हैं। राज्य में ये वन सिरोही जिले में, अधिकतर माउंट आबू के इर्द-गिर्द की पहाड़ियों पर पाए जाते हैं।
इन वनों में अर्द्ध सदाबहार और कुछ सदाबहार वृक्षों की प्रजातियां मिलती है ।
माउंट आबू की वनस्पति में कई प्रकार के पौधें है जो हिमालय की उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र वृक्षों के समान हैं। ये वृक्ष माउंट आबू चारों ओर 700 मीटर से 800 ऊंचाई के मध्य प्रचुर रूप से पाए जाते हैं।
4. विविध मिश्रित वन ( Mixed Miscellaneous Forests) -
ये वन अधिकतर राजस्थान के दक्षिण पूर्वी और पूर्वी भाग में चित्तौड़गढ़ , कोटा , उदयपुर, सिरोही , बांसवाड़ा , डूंगरपुर, बारां और झालावाड़ जिलों में पाए जाते हैं। इनमें मिश्रित प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। धावा (धावड़ा) ,ढाक , बबूल, खैर- कत्था , हरड़, बहेड़ा , अर्जुन , सेमल, बांस , शीशम, नीम, सागवान आदि इनमे प्रमुख है।
प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के वनों की तीन श्रेणियां-
प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के वनों को तीन श्रेणियो मेंविभक्त किया गया है -
1- आरक्षित वन - जिन पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण होता है।
2- सुरक्षित वन - इनमें लकड़ी काटने, पशुचारण की सीमित सुविधा दी जाती है तथा इनको संरक्षित रखने का भी प्रयत्न किया जाता है।
3- अवर्गीकृत वन - इनमें शेष वन सम्मिलित किये जाते है, जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता
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रविवार, 3 मई 2015

Desert camel-रेगिस्थान का जहाज ऊँट

दूर तक फैला रेत का समंदर। इस रेत के समंदर में मनुष्य का हर क़दम पर साथ देता रेगिस्तान के जहाज के नाम से मशहूर ऊंट। विश्व में एक कूबड़ और दो कूबड़ वाले ऊंट पाये जाते हैं। भारत में ज़्यादातर एक कूबड़ वाले ऊंट ही देखने को मिलते हैं। हालांकि ऊंट को भी दूसरे जानवरों की तरह नियमित रूप से भोजन और पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी विशेषता यह होती है कि यह 21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसकी पीठ पर जो कूबड़ होता है वह चर्बी का भंडार होता है। इसमें जमा चर्बी को यह ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल कर लेता है।
रेगिस्तान में ऊंट मनुष्य के सुख-दु:ख का सहभागी बनकर उसके सभी कार्यों, जैसे परिवहन, खेती, सेना की गश्त, दूध, गोश्त की पूर्ति करता है। राजस्थान की संस्कृति में यह गहरे तक प्रवेश किये हुए है। भारत में लगभग 75 प्रतिशत आबादी सिर्फ राजस्थान में है।
अपना मार्ग याद रखने की क्षमता, 15 किमी. प्रति घंटे से लेकर 65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता है। बीकानेर में ऊंट मेला लगता है और यहां पर ऊंट अनुसंधान केंद्र भी खुला है। आज ऊंटनी के दूध की उत्पादन क्षमता लगभग 1500 लाख लीटर है। ऊंटनी के दूध का रंग, रूपऔर गाढ़ापन गाय के दूध की तरह ही होता है और यह जल्दी से खराब नहीं होता। ऊंटनी के दूध से दही बनाना संभव नहीं है, लेकिन खोया, क्रीम, पनीर, घी तथा मिठाइयां आसानी से बनायी जा सकती हैं। औषधि के रूपमें भी ऊंट के दूध का बहुत महत्व है। यकृत तथा पीलिया के रोगों में इसका सेवन काफी लाभदायक होता है।
ऊंट के बाल भी प्रयोग में आते हैं। इसकी खाल से कुप्पी तथा चमड़े की वस्तुओं का निर्माण होता है। बीकानेर में उस्त कला के अंतर्गत ऊंट की खाल पर सुनहरी चित्रकारी विश्वप्रसिद्ध है। राजस्थान में एक अद्भुत बैंक भी है, जो ऊंट की पीठ से चलता है। ऊंट पर स्थापित ये बैंक जैसलमेर में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर और जयपुर की एक शाखा है और पिछले 12 साल से चल रही है। बैंक ने इसकी स्थापना विदेशी सैलानियों के हितों को ध्यान में रखकर की है। कल्पना से परे ये बैंकिंग उपयोगी है।
बीकानेर में हर साल ऊंट उत्सव का आयोजन होता है, जो ऊंट को राजस्थान में पर्यटन से जोड़ता है। इस उत्सव के दौरान इन्हें तरह - तरह से सजाया जाता है। इस अवसर पर करतब, दौड़, ऊंट नृत्य आदि खेलों का आयोजन होता है। इसमें जो भी ऊंट विजयी होता है, उसके मालिक को सम्मानित किया जाता है। ऊंट
राजस्थानी लोकगीतों में शामिल है। इस तरह ऊंट राजस्थान की मिट्टी में रचा-बसा है।
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High Places of Rajasthan-राजस्थान के प्रमुख दर्शनीय स्थल

1. हवामहल – जयपुर
2. जंतर मंतर – जयपुर
3. गलता जी – जयपुर
4. आमेर किला – आमेर, जयपुर
5. बिड़ला तारामंडल – जयपुर
6. सरगासूली (ईसर लाट) – जयपुर (RPSC Exam)
7. गेटोर की छतरियां – जयपुर
8. नाहरगढ़ – जयपुर
9. गोविन्दजी का मंदिर – जयपुर
10. मुबारक महल – जयपुर (RPSC Exam)
11. आभानेरी मंदिर – दौसा
12. सोनीजी की नसियाँ – अजमेर
13. ढाई दिन का झोंपड़ा – अजमेर
14. दौलत बाग – अजमेर
15. अकबर का किला – अजमेर
16. दरगाह शरीफ् – अजमेर
17. ब्रह्मा मंदिर – पुष्कर
18. नव ग्रह मंदिर – किशन गढ़
19. सास-बहू के मंदिर ( प्राचीन नागदा के मंदिर) – कैलाशपुरी, उदयपुर
20. सहेलियों की बाड़ी – उदयपुर
21. सज्जनगढ़ – उदयपुर
22. आहड़ संग्रहालय – उदयपुर
23. जगत के प्राचीन मंदिर – जगत गाँव उदयपुर
24. कुम्भा श्याम मंदिर – उदयपुर
25. द्वारकाधीश मंदिर – कांकरोली राजसमंद
26. कुंभलगढ़ – केलवाड़ा राजसमंद
27. श्रीनाथजी मंदिर – नाथद्वारा, राजसमंद
28. विजय स्तम्भ – चित्तौड़
29. कीर्ति स्तम्भ – चित्तौड़
30. रानी पद्मनी महल – चित्तौड़गढ़
31. सांवलिया जी मंदिर – मंडफिया, चित्तौड़गढ़
32. विनय निवास महल – चित्तौड़गढ़
33. जसवंत थड़ा – जोधपुर
34. उम्मेद भवन – जोधपुर
35. मंडोर – जोधपुर
36. सच्चिया माता मंदिर – ओसियां ( जोधपुर)
48. श्री गणेश जी का मंदिर – रणथम्भौर
49. उषा मंदिर – बयाना
50. लक्ष्मण जी का मंदिर – भरतपुर
51. केलादेवी मंदिर – करौली
52. नक्की झील – माउंट आबू
53. दिलवाड़ा जैन मंदिर – माउंट आबू
54. अचल गढ़ दुर्ग - माउंट आबू, सिरोही
55. पटवों की हवेली – जैसलमेर
56. सालिम सिंह की हवेली – जैसलमेर
57. रामगढ़ की हवेलियां – जैसलमेर
58. नथमल की हवेली – जैसलमेर
59. बाबा रामदेव मंदिर – रामदेवरा, जैसलमेर
60. बादल महल – जैसलमेर
61. करनी माता मंदिर – देशनोक ( बीकानेर )
62. कपिल देव जी का मंदिर – कोलायत ( बीकानेर )
63. भांडासर जैन मंदिर – बीकानेर
64. अरथूना के प्राचीन मंदिर – बाँसवाड़ा
65. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर – बालोतरा (बाड़मेर)
66. कोलवी की गुफाएँ – झालावाड़
67. सूर्य मंदिर – झालावाड़
68. गैप सागर – डूंगरपुर
69. फखरुद्दीन की दरगाह – गलियाकोट, डूंगरपुर
70. देव सोमनाथ मंदिर – डूंगरपुर
71. रणकपुर जैन मंदिर – सादड़ी, पाली
72. जल महल – जयपुर, डीग व उदयपुर


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Lok Devata kalla ji rathod-लोक देवता कल्ला जी राठौड़

लोक देवता कल्ला जी राठौड़ का जन्म विक्रम संवत 1601 में दुर्गाष्टमी को नागौर जिले के मेड़ता शहर में हुआ था। वे मेड़ता रियासत के राव जयमल राठौड़ के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे। भक्त कवयित्री मीराबाई इनकी बुआ थी। इनका बाल्यकाल मेड़ता में ही व्यतीत हुआ लेकिन बाद में वे चित्तौड़ दुर्ग में आ गए। वे अपनी कुल देवी नागणेचीजी माता के भक्त थे। कल्ला जी प्रसिद्ध योगी संत भैरव नाथ के शिष्य थे। माता नागणेची की भक्ति के साथ साथ वे योगाभ्यास भी करते थे। कल्लाजी ने औषधि विज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की थी। ये चार हाथों वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध है। इनकी मूर्ति के चार हाथ होते हैं। इनकी वीरता की कथा बड़ी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सन 1568 में अकबर की सेना ने चितौड़ पर कब्जा करने के लिए किले को घेर लिया। लम्बे समय तक सेना जब दुर्ग को घेरे रही तो किले के अंदर की सारी रसद समाप्त हो गई। तब सेनापति जयमल राठौड़ ने केसरिया बाना पहन कर शाका करने तथा क्षत्राणियों ने जौहर करने का निश्चय किया। फिर क्या था, किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ की सेना मुगलों पर टूट पड़ी। युद्ध में सेनापति जयमल राठौड़ पैरों में घाव होने से घायल हो गए। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी, किन्तु उनसे उठा नहीं जा रहा था। कल्ला जी से उनकी ये हालत देखी नहीं गई। उन्होंने जयमल को अपने कंधों पर बैठा कर दोनों हाथों में तलवार दे दी एवं स्वयं भी दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध करने लगे। इस प्रकार वे दोनों चाचा भतीजे दुश्मन सेना पर टूट पड़े और दुश्मनों की लाशों का ढेर लगाने लगे। हाथी पर चढ़े हुए अकबर ने यह नजारा देख तो वह चकरा गया। उसने भारत के देवी देवताओं के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था। इस दृश्य से वह अचंभित हो गया। उसने सोचा कि ये भी दो सिर और चार हाथों वाला कोई देवता है। काफी देर वीरता पूर्वक युद्ध करने पर कल्लाजी व जयमल जी काफी थक गए। मौक़ा देख कर कल्ला जी ने चाचाजी को नीचे जमीन पर उतारा एवं इलाज करने लग गए। तभी एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका सिर काट दिया। फिर भी वे बहुत देर तक मस्तक विहीन धड़ से ही मुगलों से लड़ते रहे।
उनकी इस वीरता एवं पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोकजगत में चार हाथ वाले लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। पूरे मेवाड़, पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के गाँवों में उनके चार हाथ वाली मूर्तियों के मंदिर बने हुए हैं। चितौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वहाँ भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुई है। वहाँ प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है। कल्ला जी को शेषनाग या नाग देवता के अवतार के रूपमें पूजा जाता है।

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म्हारा जेठानी तो घर रा मालक सा
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म्हाने ल्याईदो नी बादिला ढोला लहेरियो सा
म्हारो देवरियो तो तारा बिचलो चंदो सा
महरी द्योरानी तो आभा माय्ली बीजळी सा
इण लहेरिये रा नौ सौ रुपया रोकड़ा सा
म्हाने ल्याईदो ल्याईदो ल्याईदो ढोला लहेरियो सा
म्हाने ल्याईदो नी बादिला ढोला लहेरियो सा
म्हारा सायब्जी तो दिल रा राजवी सा
म्हें तो सायब्जी रे मनडे री राणी सा
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म्हाने ल्याईदो ल्याईदो ल्याईदो ढोला लहेरियो सा
म्हाने ल्याईदो नी बादिला ढोला लहेरियो सा
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