दूर तक फैला रेत का समंदर। इस रेत के समंदर में मनुष्य का हर क़दम पर साथ देता रेगिस्तान के जहाज के नाम से मशहूर ऊंट। विश्व में एक कूबड़ और दो कूबड़ वाले ऊंट पाये जाते हैं। भारत में ज़्यादातर एक कूबड़ वाले ऊंट ही देखने को मिलते हैं। हालांकि ऊंट को भी दूसरे जानवरों की तरह नियमित रूप से भोजन और पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी विशेषता यह होती है कि यह 21 दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसकी पीठ पर जो कूबड़ होता है वह चर्बी का भंडार होता है। इसमें जमा चर्बी को यह ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल कर लेता है।
रेगिस्तान में ऊंट मनुष्य के सुख-दु:ख का सहभागी बनकर उसके सभी कार्यों, जैसे परिवहन, खेती, सेना की गश्त, दूध, गोश्त की पूर्ति करता है। राजस्थान की संस्कृति में यह गहरे तक प्रवेश किये हुए है। भारत में लगभग 75 प्रतिशत आबादी सिर्फ राजस्थान में है।
अपना मार्ग याद रखने की क्षमता, 15 किमी. प्रति घंटे से लेकर 65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता है। बीकानेर में ऊंट मेला लगता है और यहां पर ऊंट अनुसंधान केंद्र भी खुला है। आज ऊंटनी के दूध की उत्पादन क्षमता लगभग 1500 लाख लीटर है। ऊंटनी के दूध का रंग, रूपऔर गाढ़ापन गाय के दूध की तरह ही होता है और यह जल्दी से खराब नहीं होता। ऊंटनी के दूध से दही बनाना संभव नहीं है, लेकिन खोया, क्रीम, पनीर, घी तथा मिठाइयां आसानी से बनायी जा सकती हैं। औषधि के रूपमें भी ऊंट के दूध का बहुत महत्व है। यकृत तथा पीलिया के रोगों में इसका सेवन काफी लाभदायक होता है।
ऊंट के बाल भी प्रयोग में आते हैं। इसकी खाल से कुप्पी तथा चमड़े की वस्तुओं का निर्माण होता है। बीकानेर में उस्त कला के अंतर्गत ऊंट की खाल पर सुनहरी चित्रकारी विश्वप्रसिद्ध है। राजस्थान में एक अद्भुत बैंक भी है, जो ऊंट की पीठ से चलता है। ऊंट पर स्थापित ये बैंक जैसलमेर में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर और जयपुर की एक शाखा है और पिछले 12 साल से चल रही है। बैंक ने इसकी स्थापना विदेशी सैलानियों के हितों को ध्यान में रखकर की है। कल्पना से परे ये बैंकिंग उपयोगी है।
बीकानेर में हर साल ऊंट उत्सव का आयोजन होता है, जो ऊंट को राजस्थान में पर्यटन से जोड़ता है। इस उत्सव के दौरान इन्हें तरह - तरह से सजाया जाता है। इस अवसर पर करतब, दौड़, ऊंट नृत्य आदि खेलों का आयोजन होता है। इसमें जो भी ऊंट विजयी होता है, उसके मालिक को सम्मानित किया जाता है। ऊंट
राजस्थानी लोकगीतों में शामिल है। इस तरह ऊंट राजस्थान की मिट्टी में रचा-बसा है।
रेगिस्तान में ऊंट मनुष्य के सुख-दु:ख का सहभागी बनकर उसके सभी कार्यों, जैसे परिवहन, खेती, सेना की गश्त, दूध, गोश्त की पूर्ति करता है। राजस्थान की संस्कृति में यह गहरे तक प्रवेश किये हुए है। भारत में लगभग 75 प्रतिशत आबादी सिर्फ राजस्थान में है।
अपना मार्ग याद रखने की क्षमता, 15 किमी. प्रति घंटे से लेकर 65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता है। बीकानेर में ऊंट मेला लगता है और यहां पर ऊंट अनुसंधान केंद्र भी खुला है। आज ऊंटनी के दूध की उत्पादन क्षमता लगभग 1500 लाख लीटर है। ऊंटनी के दूध का रंग, रूपऔर गाढ़ापन गाय के दूध की तरह ही होता है और यह जल्दी से खराब नहीं होता। ऊंटनी के दूध से दही बनाना संभव नहीं है, लेकिन खोया, क्रीम, पनीर, घी तथा मिठाइयां आसानी से बनायी जा सकती हैं। औषधि के रूपमें भी ऊंट के दूध का बहुत महत्व है। यकृत तथा पीलिया के रोगों में इसका सेवन काफी लाभदायक होता है।
ऊंट के बाल भी प्रयोग में आते हैं। इसकी खाल से कुप्पी तथा चमड़े की वस्तुओं का निर्माण होता है। बीकानेर में उस्त कला के अंतर्गत ऊंट की खाल पर सुनहरी चित्रकारी विश्वप्रसिद्ध है। राजस्थान में एक अद्भुत बैंक भी है, जो ऊंट की पीठ से चलता है। ऊंट पर स्थापित ये बैंक जैसलमेर में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर और जयपुर की एक शाखा है और पिछले 12 साल से चल रही है। बैंक ने इसकी स्थापना विदेशी सैलानियों के हितों को ध्यान में रखकर की है। कल्पना से परे ये बैंकिंग उपयोगी है।
बीकानेर में हर साल ऊंट उत्सव का आयोजन होता है, जो ऊंट को राजस्थान में पर्यटन से जोड़ता है। इस उत्सव के दौरान इन्हें तरह - तरह से सजाया जाता है। इस अवसर पर करतब, दौड़, ऊंट नृत्य आदि खेलों का आयोजन होता है। इसमें जो भी ऊंट विजयी होता है, उसके मालिक को सम्मानित किया जाता है। ऊंट
राजस्थानी लोकगीतों में शामिल है। इस तरह ऊंट राजस्थान की मिट्टी में रचा-बसा है।
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