• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

SUVRNA GIRI JALORE FORT-सुवर्ण गिरि दुर्ग ( जालोरदुर्ग)

सुवर्ण गिरि दुर्ग ( जालोर दुर्ग) ,JALORE FORT

यह दुर्ग मारवाङ मे सुकङी नदी के दाहीने किनारे कनकाचल सुवर्ण गिरी पहाङी पर स्थित हैं।ङाँ दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभटट् प्रथम ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था । वीर कान्हडदेव सोनगरा और उसके पुत्र वीरमदेव अलाउद्दीन खिलजी के साथ जालौर दुर्ग में युध्द करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा 1311-1312ई.के लगभग खिलजी ने जालौर पर अधिकार किया । इस युध्द का वर्णन कवि पद्मनाभ द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ ' कान्हङदे प्रबंध 'तथा ' वीरमदेव सोनगरा री बात ' मे किया गया हैं। जालौर दुर्ग अपनी.सुदृढता के कारण संकटकाल मे जहाॅ मारवाङ के राजाओ का आश्रय स्थल रहा वही इसमे राजकीय कोष भी रखा जाता रहा ।संत मल्लिक शाह की दरगाह तथा दुर्ग मे स्थित परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ जैन धर्मावलम्बियो की आस्था का केन्द्र प्रसिद्ध ' स्वर्णगिरी ' मंदिर ,तोपखाना आदि जालौर दुर्ग के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं।



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Vijay Singh Pathik-विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक
विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह था। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर जिले के गुढ़ावाली अख्तियारपुर गाँव में 27 फरवरी 1888 को एक गुर्जर परिवार में हुआ। उनके पिता श्री हमीरमल गुर्जर तथा माता श्रीमती कमलकँवर थी। बचपन में ही अपने माता पिता के निधन हो जाने के कारण बालक भूप सिंह अपने बहन बहनोई के पास इंदौर आ गए। उन्होंने विधिवत शिक्षा केवल पाँचवी तक ही ग्रहण की किंतु बहन से हिंदी तथा बहनोई से अंग्रेजी, अरबी व फारसी की शिक्षा ली। कालांतर में उन्होंने संस्कृत, उर्दू, मराठी, बांग्ला, गुजराती तथा राजस्थानी भी सीख ली। वह अपने जीवन के प्रारम्भ से ही क्रान्तिकारी थे। इंदौर में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल से हुई जिन्होंने उनका परिचय रासबिहारी बोस से कराया। रासबिहारी बोस ने पंजाब, दिल्ली, उत्तर भारत तथा राजस्थान में 21 फरवरी 1915 को एक साथ सशस्त्र क्रांति करने की योजना बनाई। इस क्रांति का राजस्थान में लक्ष्य अजमेर, ब्यावर एवं नसीराबाद थे तथा संयोजक राव गोपाल सिंह खरवा थे। क्रान्तिकारियों ने पथिक जी को राजस्थान में शस्र संग्रह के लिए नियुक्त किया गया था। पथिक ने यहाँ पहुँच कर भीलों, मीणों और किसानों में राजनैतिक चेतना जागृत की। 1913 में उदयपुर राज्य की जागीर बिजौलिया ठिकाने के भयंकर अत्याचारों तथा 84 प्रकार के लाग बाग जैसे भारी करों व बेगार के बोझ से त्रस्त किसानों ने साधु सीताराम के नेतृत्व में किसान आन्दोलन आरम्भ किया तथा किसानों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए भूमि कर देने से इन्कार कर दिया और एक वर्ष के लिए खेती करना स्थगित कर दिया। इस समय जागीरदारों द्वारा बिजौलिया के लोगों पर लाग बाग जैसे 84 प्रकार के भारी कर लगाए गए थे और उनसे जबरदस्ती बेगार ली जाती थी। बिजौलिया आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य इन अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाना था। 1917 में इस आन्दोलन का नेतृत्व विजयसिंह पथिक ने संभाल लिया था तथा किसानों ने अन्याय और शोषण के विरुद्ध किसानों के संगठन "उपरमाल पंचायत बोर्ड" नामक एक जबरदस्त संगठन की स्थापना की, जिसका सरपंच मन्नालाल पटेल को बनाया गया। इस समय किसानों ने विजयसिंह पथिक के आह्वान पर प्रथम विश्व युद्ध के संबंध में लिया जाने वाला युद्ध का चंदा देने से इन्कार कर दिया। तब बिजौलिया आन्दोलन इतना उग्र हो गया था कि ब्रिटिश सरकार को इस आन्दोलन में रुस के बोल्शेविक आन्दोलन की प्रतिछाया दिखाई देने लगी। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने महाराणा व बिजौलिया के ठाकुर को आदेश दिया कि वे आन्दोलन को कुचल दें। आदेश की पालना में बिजौलिया के ठाकुर ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनकारी नीतियाँ अपनाई। हजारों किसानों और उनके प्रतिनिधियों को जेलों में ठूंस दिया गया, जिनमें साधु सीतारामदास, रामनारायण चौधरी एवं माणिक्यलाल वर्मा भी शामिल थे। इस समय पथिक भागकर कोटा राज्य की सीमा में चले गए और वहीं से आन्दोलन का नेतृत्व एवं संचालन किया। बिजौलिया के ठाकुर ने आन्दोलन को निर्ममतापूर्वक कुचलने का प्रयास किया, किन्तु किसानों ने समपंण करने से इन्कार कर दिया। बिजौलिया का यह समूचा आन्दोलन राष्ट्रीय भावना से प्रेरित था तथा किसान परस्पर मिलने पर वंदे मातरम् का संबोधन करते थे। प्रत्येक स्थान और आयोजन में वन्दे मातरम् की आवाज सुनाई देती थी। पथिक जी ने इसकी खबरों को देश में पहुँचाने के लिए 'प्रताप' के संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी से संपर्क किया। उनके समाचार पत्र के माध्यम से इस आन्दोलन का प्रसिद्धि सारे राष्ट्र में फैल गई। महात्मा गाँधी, तिलक आदि नेताओं ने दमन नीति की निन्दा की। जब आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया, तब राजस्थान में ए० जी० सर हालैण्ड एवं मेवाड़ रेजीडेन्ट विलकिन्सन समस्या का समाधान निकालने के लिए बिजौलिया पहुँचे और किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। मेवाड़ राज्य व बिजौलिया ठिकानों के प्रतिनिधियों ने भी वार्ता में भाग लिया। परिणामस्वरूप बिजौलिया के ठाकुर तथा वहाँ के किसानों के बीच एक समझौता हो गया। किसानों की कई मांगें स्वीकार कर ली गईं, उनमें 35 लागत व बेगार प्रथा की समाप्ति भी शामिल थी। इस प्रकार बिजौलिया का किसान आन्दोलन एकबारगी 11 फरवरी 1922 में वन्दे मातरम् के नारों के बीच सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। राजस्थान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले इस महान स्वतन्त्रता सेनानी का निधन 28मई 1954को अजमेर मे हुआ।
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जाने जयपुर के गुलाल गोठे के बारेमें


वैसे नाम से तो लगता है कि गुलाल गोठा कोई मिठाई का नाम हैं ।पर यह मिठाई है नही ।तो फिर है क्या और इसका क्या प्रयोग होता हैं और कैसे बनता है जाने आज की इस पोस्ट में गुलाल गोठा, लाख को गरम करके उसे फुला कर गेंद का आकार देकर उसमे गुलाल भर कर बनाया जाता हैं।पुराने समय मे जयपुर के राजा महाराजा अपनी जनता के साथ होली खेलने के लिए इसका प्रयोग करते थे।राजा जनता पर इस गुलाल गोठे को फेकते जिससे इसके अन्दर का गुलाल बाहर निकल कर जनता पर लग जाता ।इस प्रकार जनता राजा के साथ होली खेल कर बडी प्रसन्न होती थी । गुलाल गोठे कि खासियत यह है कि इससे किसी पर फेकने पर बिना चोट लगे यह फुट जाता हैं और इसके अन्दर का गुलाल बाहर निकल जाता हैं।समय के साथ इसका प्रयोग घटता जा रहा हैं पर आज भी होली के समय जयपुर कि विशेष पहचान बना हुआ हैं।जयपुर मे मनिहारो कि गली मे मुस्लिम समुदाय के लोगो के द्वारा इसे बनाया जाता हैं और यह उनकी रोजी रोटी का एक जरिया हैं।


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Rajasthan state bird godavana-राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण

 Rajasthan state bird godavana-राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण

राजस्थान राज्य पक्षी

गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ; वैज्ञानिक नाम: (Ardeotis nigriceps) एक बड़े आकार का पक्षी है जो भारत के राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में पाया जाता है। उडने वाली.पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षियों में है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी 'सोहन चिडिया ' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है।
गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। यह सर्वाहारी पक्षी है। इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है। यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है।
राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण
राजस्थान राज्य पक्षीगोडावण
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सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

Seven Stages of formation or PoliticalIntegration of Rajasthan (1948-1956 )-राजस्थान के निर्माण या राजनैतिकएकीकरण के सात चरण एक दृष्टि में

संघ का नाम, सम्मिलित हुई रियासतें / राज्य , एकीकरण दिनांक-
( Name of Group, States, Date of Integration )-
1मत्स्य संघ Matsya Union-
अलवर भरतपुर धौलपुर करौली Alwar, Bharatpur, Dholpur, Karauli
दिनांक 17-03-1948

2.
राजस्थान संघ Rajasthan Union -बाँसवाड़ा बूँदी डूंगरपुर झालावाड़ किशनगढ़ कोटा प्रतापगढ़ शाहपुरा और टौंक
Banswara, Bundi, Dungarpur, Jhalawar, Kishangarh, Kota, Pratapgarh, Shahpura, Tonk.
दिनांक 25-03-1948

3.
संयुक्त राजस्थान संघ United State of Rajasthan-

उदयपुर रियासत का संयुक्त राजस्थान में विलय Udaipur also joined with the other Union of Rajasthan.

दिनांक 18-04-1948

4. वृहद् राजस्थान Greater Rajasthan - बीकानेर जयपुर जैसलमेर जोधपुर भी संयुक्त राजस्थान में जुड़े
Bikaner, Jaipur, Jaisalmer & Jodhpur also joined with the United State of Rajasthan.
दिनांक 30-03-1949

5.
संयुक्त वृहद् राजस्थान United State of Greater Rajasthan -
मत्स्य संघ का वृहद् राजस्थान में विलय Matsya Union also merged in Greater Rajasthan
दिनांक 15-05-1949

6.

राजस्थान संघ United Rajasthan - आबू और दिलवाडा को छोड़ कर सिरोही

राज्य का संयुक्त वृहद् राजस्थान के 18 राज्यो में विलय
18 States of United Rajasthan merged with Princely State Sirohi except Abu & Delwara.
दिनांक 26-01-1950

7.
पुनर्गठित राजस्थान या आधुनिक राजस्थान Re-organised Rajasthan-

इसमें State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ के तहत अजमेर तथा रियासतकालीन राज्य सिरोही का अंग रहे आबूरोड तालुका { आबू व दिलवाड़ा } जो पूर्व में बंबई राज्य में मिल चुका था एवं पूर्व मध्य भारत के अंग रहे सुनेल टप्पा का राजस्थान संघ में विलय। साथ ही झालावाड़ जिले के सिरोंज उप जिला को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया।

Under the State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ State of Ajmer, Abu Road Taluka, former part of princely State Sirohi which was merged in former Bombay State & Sunel Tappa region of the former Madhya Bharat merged with Rajasthan & Sironj sub district of Jhalawar district was transferred to Madhya Pradesh.
दिनांक 01-11-1956


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Bundi's Farmers Agitation बूंदी काकिसान आंदोलन -

बूंदी का किसान आंदोलन-
राजस्थान में भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के बावजूद भी गावों में धीरे-धीरे महाजनों का वर्चस्व बढ़ने लगे। 'साद' प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में महाजन से लगान की अदायगी का आश्वासन लिया जाने लगा। इस व्यवस्था से किसान अधिकाधिक रूप से महाजनों पर आश्रित होने लगे तथा उनके चंगुल में फंसने लगे। 19 वीं सदी के अंत में व 20 वीं सदी के शुरू में जागीरदारों द्वारा किसानों पर नए-नए कर लगाये जाने लगे और उनसे बड़ी धनराशि एकत्रित की जाने लगी। जागीरदारी व्यवस्था शोषणात्मक हो गई। किसानों से अनेक करों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के लाग-बाग लेने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई। ये लागें दो प्रकार की थी-
1. स्थाई लाग
2. अस्थाई लाग (इन्हें कभी-कभी लिया जाता था।)
इस कारण से जागीर क्षेत्र में किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई जिसके कारण किसानों में रोष उत्पन्न हुआ तथा वे आन्दोलन करने को उतारू हो गए।
बिजोलिया, बेगूं और अन्य क्षेत्र के किसानों के समान ही बूंदी राज्य के
किसानों को भी अनेक प्रकार की लागतों (लगभग 25%), बेगार एवं ऊँची दरों पर लगान की रकम देनी पड़ रही थी। बूंदी राज्य में वसूले जा रहे कई करों के अलावा 1 रुपये पर 1 आने की दर से स्थाई रूप से युद्धकोष के लिए धनराशि ली जाने लगी। किसानों के लिए यह अतिरिक्त भर असहनीय था। किसान राजकीय अत्याचारों से परेशान होने लगे। मेवाड़ राज्य के बिजोलिया में हुए किसान आन्दोलन की कहानियां पूरे राजस्थान में व्याप्त हुई। अप्रेल 1922 में बिजोलिया की सीमा से जुड़े बूंदी राज्य के 'बराड़' क्षेत्र के त्रस्त किसानों ने आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। इसीलिए इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं।
किसानों को 'राजस्थान सेवा संघ' का मार्गदर्शन प्राप्त था। किसानों ने राज्य
की सरकार को अनियमित लाग, बेगार व भेंट आदि देना बंद कर दिया। आन्दोलन का नेतृत्व 'राजस्थान सेवा संघ' के कर्मठ कार्यकर्ता 'नयनू राम शर्मा' कर रहे थे। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया। राज्य की ओर से बातचीत द्वारा किसानों की समस्याओं एवं शिकायतों को दूर करने कई प्रयास हुए, किन्तु वे विफल हो गए। तब राज्य की सरकार ने दमनात्मक नीति अपनाना शुरू किया और निहत्थे किसानों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां व गोलियां बरसाई गई। सत्याग्रह करने वाली स्त्रियों पर घुड़सवारों द्वारा घोड़े दौड़कर एवं भाले चलाकर अमानवीय अत्याचार किया गया। पुलिस द्वारा किसानों पर की गई गोलीबारी में झण्डा गीत गाते हुए ' नानकजी भील' शहीद हो गए। आन्दोलनकारियों के नेता नयनू राम शर्मा, नारायण लाल, भंवरलाल आदि एवं राजस्थान सेवा संघ के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर मुकदमे चलाए गए। नयनू राम शर्मा को राजद्रोह के अपराध में 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई।
यद्यपि यह आन्दोलन असफल रहा किन्तु इस आन्दोलन से यहाँ के किसानों को कुछ रियायतें अवश्य प्राप्त हुई और भ्रष्ट अधिकारियों को दण्डित किया गया
तथा राज्य के प्रशासन में सुधारों का सूत्रपात हुआ। बूंदी का किसान आन्दोलन राज्य प्रशासन के विरुद्ध था, जबकि मेवाड़ राज्य के बिजोलिया के आन्दोलन में किसानों ने अधिकांशतः जागीर-व्यवस्था का विरोध किया था। बूंदी के किसान आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


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Aamer's Kachwah dynasty-आमेर का कछवाहा वंश

1 . कछवाहा वंश राजस्थान के इतिहास मंच पर बारहवीं सदी से दिखाई देता है। उनको प्रारम्भ में मीणों और बड़गुर्जरों का सामना करना पड़ा था। इस वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हराय व पृथ्वीराज बडे़ प्रभावशाली थे जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था। पृथ्वीराज, राणा सांगा का सामन्त होने के नाते खानवा के युद्ध (1527) में बाबर के विरुद्ध लड़ा था। पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद कछवाहों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। गृहकलह तथा अयोग्य शासकों से राज्य निर्बल हो रहा था। 1547 में भारमल ने आमेर की बागडोर हाथ में ली। भारमल ने उदीयमान अकबर की शक्ति का महत्त्व समझा और 1562 में उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी ज्येष्ठ पुत्री हरकूबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया। अकबर की यह बेगम मरियम-उज्जमानी के नाम से विख्यात हुई। भारमल पहला राजपूत था जिसने मुगल से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे
2. भारमल के पश्चात् कछवाहा शासक मानसिंह अकबर के दरबार का योग्य
सेनानायक था। रणथम्भौर के 1569 के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवन्तदास अकबर के साथ थे। मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहार और बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था तथा उसे अकबर ने 7000 मनसब प्रदान किया था। मानसिंह ने आमेर में शिलादेवी मन्दिर, जगत शिरोमणि मन्दिर इत्यादि का निर्माण करवाया। इसके समय में दादूदयाल ने ’वाणी’ की रचना की थी। मानसिंह के पश्चात् के शासकों में मिर्जा राजा जयसिंह (1621- 1667) महत्त्वपूर्ण था, जिसने 46 वर्षों तक शासन किया। इस दौरान उसे जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे शाहजहाँ ने ’मिर्जा राजा ’का खिताब प्रदान किया। औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को मराठों के विरुद्ध दक्षिण भारत में नियुक्त किया था। जयसिंह ने पुरन्दर में शिवाजी को पराजित कर मुगलों से संधि के लिए बाध्य किया। 11 जून, 1665 को शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरन्दर की संधि हुई थी, जिसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर शिवाजी ने मुगलों की सेवा में उपस्थित होने का वचन दिया। इस प्रकार पुरन्दर की संधि जयसिंह की राजनीतिक दूरदर्शिता का एक सफल परिणाम थी। जयसिंह के बनवाये आमेर के महल तथा जयगढ़ और औरंगाबाद में जयसिंहपुरा उसकी वास्तुकला के प्रति रुचि को प्रदर्शित करते हैं। इसके दरबार में हिन्दी का प्रसिद्ध कवि बिहारीमल था।
3. कछवाहा शासकों में सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743) का अद्वितीय स्थान है। वह राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, खगोलविद्, विद्वान एवं साहित्यकार तथा कला का पारखी था। वह मालवा का मुगल सूबेदार रहा था। जयसिंह ने मुगल प्रतिनिधि के रूप में बदनसिंह के सहयोग से जाटों का दमन किया। सवाई जयसिंह ने राजपूताना में अपनी स्थिति मजबूत करने तथा मराठों का मुकाबला करने के उद्देश्य से 17 जुलाई,1734 को हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूत राजाओं का
सम्मेलन आयोजित किया। इसमें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, किशनगढ़, नागौर, बीकानेर आदि के शासकों ने भाग लिया था परन्तु इस सम्मेलन का जो परिणाम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ, क्योंकि राजस्थान के शासकों के स्वार्थ भिन्न-भिन्न थे। सवाई जयसिंह अपना प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से बूँदी के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर स्वयं वहाँ का सर्वेसर्वा बन बैठा, परन्तु बूँदी के बुद्धसिंह की पत्नी अमर कुँवरि ने, जो जयसिंह की बहिन थी, मराठा मल्हारराव होल्कर को अपना राखीबन्द भाई बनाकर और धन का लालच देकर बूँदी आमंत्रित किया जिससे होल्कर और सिन्धिया ने बूँदी पर आक्रमण कर दिया। सवाई जयसिंह संस्कृत और फारसी का विद्वान होने के साथ गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पण्डित था। उसने 1725 में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुगल सम्राट के नाम पर ’जीजमुहम्मदशाही ’नाम रखा। उसने 'जयसिंह कारिका ’नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। सवाई जयसिंह की महान् देन जयपुर है, जिसकी उसने 1727 में स्थापना की थी। जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। नगर निर्माण के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का अनूठा है, जिसकी समकालीन और वतर्मानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। जयपुर में जयसिंह ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ) किले का निर्माण करवाया तथा जयगढ़ किले में जयबाण नामक तोप बनवाई। उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पांच वैधशालाओं (जन्तर- मन्तर) का निर्माण ग्रह- नक्षत्रादि की गति को सही तौर से जानने के लिए करवाया जयपुर के जन्तर-मन्तर में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ’सूर्य घड़ी’ है, जिसे ’सम्राट यंत्र ’के नाम से जाना जाता है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। धर्मरक्षक होने के नाते उसने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया। वह अन्तिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परम्परा के अनुकूल अश्वमेध यज्ञ किया। इस प्रकार सवाई जयसिंह अपने शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्याति प्राप्त व्यक्ति बन गया था, परन्तु वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर न उठ सका।(साभार- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की राजस्थान अध्ययन की पुस्तक)
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शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

Exam Guidance Quiz, Part-6-परीक्षा मार्गदर्शन प्रश्नोत्तरी, भाग-6

1. राजस्थान के बजट घोषणा 2013 के अन्तर्गत किस गाँव में पक्षी अभ्यारण्य स्थापित किया गया है?
(अ) फलौदी (जिला- जोधपुर)
(ब) बड़ोपल (जिला- हनुमानगढ़)
(स) बाघेरी (जिला- राजसमन्द)
(द) जमवारामगढ़ (जिला- जयपुर)
उत्तर- ब
2. राजस्थान के किस वन्यजीव क्षेत्र को एशिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रजनन स्थली कहा जाता है?
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार, भरतपुर
(ब) सोरसन, बारां
(स) संवत्सर-कोटसर, बीकानेर
(द) धवा डोली, जोधपुर
उत्तर- अ
3. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक वन्य जीव अभयारण्य है?
(अ) राजसमन्द
(ब) हनुमानगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- स
4. राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावन के संरक्षण हेतु प्रसिद्ध दो आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौन-कौनसे हैं?
(अ) धावा डोली, गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(ब) कुंवालजी (सवाईमाधोपुर),
सोंखलिया (अजमेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर), सोरसन
(बारां)
(द) सोरसन (बारां), सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- द
5. राजस्थान के किस जिले में सर्वाधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र है?
(अ) जोधपुर
(ब) प्रतापगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
6. राजस्थान का सबसे बड़ा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) संवत्सर-कोटसर (बीकानेर)
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सोंखलिया (अजमेर)
उत्तर- ब
7. राजस्थान का सबसे छोटा आखेट निषिद्ध क्षेत्र कौनसा है?
(अ) सोरसन (बारां)
(ब) धोरीमन्ना - बाड़मेर
(स) गुढा विश्नोई (जोधपुर)
(द) सैथल सागर - दौसा
उत्तर- द
8. राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1 नवम्बर 1980 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) इनमे से कोई नहीं
उत्तर- स
9. राजस्थान का द्वितीय राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था-
(अ) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) केवलादेव घना
उत्तर- द
10. राजस्थान का 1985 में विश्व धरोहर के रूप में घोषित अभयारण्य है -
(अ) केवलादेव घना पक्षी विहार
(ब) मरू राष्ट्रीय उद्यान
(स) रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
(द) सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर- अ
11. राजस्थान का सन 1974 में घोषित प्रथम बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- स
12. राजस्थान का सन 1978 में घोषित द्वितीय बाघ परियोजना क्षेत्र कौनसा है?
(अ) रामगढ वन विहार
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- द
13. राजस्थान का कौनसा अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान नहीं है?
(अ) मरू उद्यान
(ब) ताल-छापर उद्यान
(स) रणथंभौर
(द) सरिस्का
उत्तर- ब
14. साथीन व ढेंचू आखेट (शिकार) निषिद्ध क्षेत्र किस जिले में है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- अ
15. आकल वुड फॉसिल पार्क (आकल जीवाश्म क्षेत्र) किस जिले में स्थित है?
(अ) जोधपुर
(ब) बीकानेर
(स) जैसलमेर
(द) जयपुर
उत्तर- स
16. टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल भारत की सबसे छोटी बाघ परियोजना है -
(अ) गिर (गुजरात)
(ब) कान्हा किसली (म. प्र.)
(स) रणथंभौर (राजस्थान)
(द) सरिस्का (राजस्थान)
उत्तर- स
17. किसे भारत में बाघ परियोजना के जनक माना जाता है?
(अ) कैलाश सांखला को
(ब) डॉ. सालिम अली को
(स) कैलाश विजय को
(द) राजेंद्र सिंह को
उत्तर- अ
18. सीतामाता अभयारण्य किन दो जिलों में विस्तृत है?
(अ) चितौडगढ़ व राजसमन्द
(ब) प्रतापगढ व उदयपुर
(स) प्रतापगढ व चितौडगढ़
(द) चितौडगढ़ व बाँसवाड़ा
उत्तर- ब
19. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 राजस्थान में किस वर्ष लागू हुआ?
(अ) 1972 को
(ब) 1973 को
(स) 1974 को
(द) 1976 को
उत्तर- ब
20. सीतामाता अभयारण्य का अधिकांश क्षेत्र किस जिले में आता है?
(अ) राजसमन्द
(ब) उदयपुर
(स) प्रतापगढ
(द) बाँसवाड़ा
उत्तर- स
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(SpecialEconomic Zones-SEZ in Rajasthan)-राजस्थान में विशेष आर्थिक क्षेत्र

राजस्थान की दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पश्चिमी तट के बंदरगाहों से समीपता इस राज्य को निर्यात-उन्मुख औद्योगिक विकास के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं। प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई फ्रेट कॉरिडोर का 40% भाग राजस्थान से गुजरता है जो यहाँ इस कॉरिडोर में विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में औद्योगिक बेल्ट के विकास के लिए भारी संभावनाएं उत्पन्न करता है। सरकार का मुख्य उद्देश्य राज्य में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचा निर्मित करने तथा उद्योगों के लिए परेशानी मुक्त वातावरण प्रदान करने में सक्षम बनाने हेतु विशेष रूप से चिह्नित आर्थिक क्षेत्र विकसित करने का है।सरकार द्वारा रत्न एवं आभूषण, हस्तशिल्प, ऊनी कालीन आदि क्षेत्रों में राज्य की अंतर्निहित क्षमता का दोहन करने के लिए ''उत्पाद विशिष्ट विशेष आर्थिक क्षेत्रों'' के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। 165.15 अरब के निवेश की उम्मीद के साथ छह विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) को पहले से ही अधिसूचित किया जा चुका है जो निम्नांकित हैं-
1. महिंद्रा वर्ल्ड सिटी (जयपुर) लिमिटेड,
जयपुर
2. सोमानी वर्स्टेड लिमिटेड, खुशखेडा,
भिवाड़ी, अलवर
3. जेनपैक्ट इंफ्रास्ट्रक्चर (जयपुर) प्रा.
लिमिटेड, जयपुर
4. वाटिका जयपुर सेज डेवलपर्स लिमिटेड,
जयपुर
5. मानसरोवर औद्योगिक विकास निगम,
जोधपुर
6. आरएनबी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट
लिमिटेड, बीकानेर (270 करोड़ रुपये)
सेज में निम्नांकित क्षेत्रों में विकास की क्षमता मौजूद है-
●रत्न और आभूषण
●मल्टी सर्विसेज (अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा, जैवप्रौद्योगिकी, आईटीईएस)
●आईटी
●ऑटो कॉम्पोनेंट्स
●कृषि आधारित उत्पाद
●मुक्त व्यापार और भंडारण
●नवीकरण स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा के उत्पादन (सौर, पवन)
●चिकित्सा पर्यटन
●वस्त्र और परिधान
●पत्थर
विकास के लिए संभावित स्थान-
1. जयपुर
2. नीमराना, अलवर
3. जोधपुर
4. उदयपुर
5. कोटा
6. बांसवाड़ा
7. बीकानेर
प्रोत्साहन और सुविधाएं -
●ग्रामीण क्षेत्रों में डेवलपर्स के लिए Rs100 की दर पर भूमि रूपांतरण।
●डेवलपर्स के लिए और रीको के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थापित इकाइयों कोभी स्टाम्प ड्यूटी पर 100% छूट।
●इकाइयों को 7 साल के लिए बिजली शुल्क में 50% छूट।
●इकाइयों और डेवलपर्स को 7 साल के लिए 'कार्य अनुबंध कर' पर 100% छूट।
●विशेष आर्थिक क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने के लिए पूंजीगत माल के रूप मेंउपयोग हेतु स्थानीय क्षेत्र में लायी जाने वाली पूंजीगत वस्तुओं में प्रवेश कर से 100%।देश से बाहर निर्यात के लिए निर्माण में विशेष उपयोग में लायी जाने वाली पंजीकरण प्रमाण पत्र में विनिर्दिष्ट माल की बिक्री या खरीद पर वैट से
100% छूट।
●7 साल के लिए विलासिता कर से 100%छूट।
●7 साल के लिए मनोरंजन कर से 50%छूट।
नई विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम विचाराधीन भी है और नए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम के लागू होने के बाद कुछ अतिरिक्त प्रोत्साहन भी विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए उपलब्ध होगा।




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