रविवार, 20 जून 2021

राजस्थान में बकरियों की प्रमुख नस्लें


राजस्थान में बकरियों की प्रमुख नस्लें :

 
राजस्थान में मुख्य रूप से सिरोही मारवाड़ी जखराना एवं जमनापारी नस्ल की बकरियाँ पायी जाती हैं।

सिरोही:

यह नस्ल राजस्थान में अरावली पर्वतमालाओं के आसपास के क्षेत्रों में तथा सिरोही, अजमेर, नागौर, टोंक, राजसमंद एवं उदयपुर जिलों में मुख्य रूप से पायी जाती हैं। इस नस्ल में रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं सूखा सहन करने की क्षमता अन्य बकरियों की अपेक्षा अधिक होती है। इस नस्ल के पशु का आकार मध्यम एवं शरीर गठीला होता है। यह नस्ल मुख्यतः मांस एवं दूध के लिए पाली जाती है। इसके शरीर का रंग हल्का एवं गहरा भूरा व शरीर पर काले, सफेद एवं गहरे काले रंग के धब्बे होते हैं। कुछ पशुओं में गले के नीचे अंगुली जैसी दो गूलरे (मांसल भाग) एवं मुँह के जबड़े के नीचे की तरफ दाढ़ीनुमा बाल पाये जाते हैं। कान चपटे, नीचे की तरफ लटके हुए, लम्बे एवं पत्तीनुमा होते हैं तथा पूंछ छोटी एवं ऊपर की तरफ मुड़ी हुई होती है। प्रजनन योग्य नर का औसत शरीर भार 40-50 किलो व मादा का शरीर भार 30-35 किलो होता है। इनका दुग्ध उत्पादन 100 किग्रा. ( 115 दिनों में) होता है। इस नस्ल की बकरिया प्रायः एक साथ 2 बच्चों को जन्म देती हैं।

सिरोही बकरी


मारवाड़ी :

यह नस्ल राजस्थान में जोधपुर, पाली, नागौर, बीकानेर, जालौर, जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में पायी जाती हैं। यह मध्यम आकार की काले रंग की बकरी है। इसका शरीर लम्बे बालों से ढका होता है। कान चपटे व मध्यम आकार के व नीचे की ओर लटके होते हैं। नर का औसत शरीर भार 30-35 किलो व मादा का शरीर भार 25-30 किलो होता है। इनके शरीर से वर्ष में औसतन 200 ग्राम बालों की प्राप्ति होती है जो गलीचे / नमदा आदि बनाने के काम आते हैं। इनका दुग्ध उत्पादन 95 किग्रा. ( 115 )दिनों में होता है।

मारवाड़ी बकरी

जखराना :

यह नस्ल राजस्थान के अलवर जिले एवं आस पास के क्षेत्रों में पायी जाती हैं। यह आकार में बड़ी तथा काले रंग की होती है। इनके मुँह व कानों पर सफेद रंग के धब्बे पाये जाते हैं। इनका दुग्ध उत्पादन 120 किग्रा. (115 दिनों में) होता है तथा वर्ष भर में इनका औसत शारीरिक भार 20 किलो तक पहुंच जाता है। इनके व्यस्क नर का भार औसतन 55 कि.ग्रा. तक होता है।
जरखाना बकरी


जमनापारी:

यह नस्ल मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के चकरनगर व गढ़पुरा इलाके में बहुतायत से पायी जाती हैं। यह क्षेत्र यमुना व चम्बल नदियों के कछार में स्थित है। ये बकरियाँ, बीहड़ व खादर क्षेत्रों में जहाँ पर चराई की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो तो खूब पनपती है। वर्तमान समय में इनकी मूल नस्ल की संख्या 6 हजार से भी कम है। इस कारण इनका त्वरित संवर्धन परम आवश्यक है। यह एक बड़े आकार की बकरी है। इसका रंग सफेद होता है और कभी-कभी गले व सिर पर धब्बे भी पाये जाते हैं। इनकी नाक उभरी हुई होती जिसे रोमन नोज कहते है। इस पर बालों के गुच्छे होते हैं। रोमन नोज एवं जांघों के पिछले भाग में सफेद बाल इस नस्ल की मुख्य पहचान है। इनके कान काफी बड़े व लटके हुए होते हैं। नर व मादा दोनों में ही प्रायः सींग पाये जाते हैं। इनके वयस्क नर एवं मादा का शारीरिक भार क्रमशः 44 एवं 38 कि.ग्रा. होता है। इनकी लम्बाई व ऊँचाई क्रमशः 77 / 75 एवं 78 / 75 सेंमी. होती है। यह भी एक दुकाजी नस्ल है परन्तु इससे दूध उत्पादन सबसे अधिक प्राप्त किया जाता है। ये बकरियाँ 194 दिनों के दुग्धकाल में 200 कि.ग्रा. औसतन दुग्ध देती है। वर्ष भर में इन बकरियों का शारीरिक भार 21-26 कि.ग्रा. तक हो जाता है। इसे नस्ल सुधार कार्यक्रमों में भी प्रयोग किया जाता है।

जमनापारी बकरी 

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