रविवार, 22 नवंबर 2020

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)


परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह

आरंभिक जीवन

चोपासनी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ कर मेजर शैतान सिंह ने 1947 में जसवंत कॉलेज जोधपुर में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष जोधपुर राज्य की सेना 'दुर्गा होर्स' में कैडेट के रूप में भर्ती हो गए। वर्ष 1955 में उन्हें कमीशन मिलने पर कैप्टन बनाकर कुमायूं रेजिमेंट में भेज दिया गया। 1961 के गोवा मुक्ति अभियान में भाग लेकर उन्होंनेजो कर्तव्य परायणता दिखाई उसके उपलक्ष्य में उन्हें मेजर पद की पदोन्नति दी गई। 1962 में भारत चीन युद्ध छेड़ने पर उनकी रेजिमेंट को जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात किया गया। 18000 फीट की ऊंचाई पर लद्दाख की पहाड़ियों के बीच रेजांगला चुशूल क्षेत्र में जहां तापमान 0 डिग्री से 20 से 30 डिग्री नीचे चला जाता है हार्ड कंपा देने वाली सर्दी के बीच रलगिला के पास कंपनी ने मोचाबंदी व चीनियों के आक्रमण से चुशूल हवाई पट्टी में संपर्क सड़क की रक्षा का दायित्व उनकी टुकड़ी को सौप दिया गया।

विरासत में मिली वीरता

01 दिसंबर 1924 को जोधपुर जिले के फलोदी तहसील के बड़ा सर गांव में भाटी राजपूत कुल में जन्मे मेजर शैतान सिंह के पिता कर्नल हेमसिंह भाटी जोधपुर राज्य की सेना में ही थे, जिन्होंने 1917 में प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस के मोर्चे पर लड़ते हुए वीरता दिखाई थी व युद्ध में गोलियां लगने के बावजूद उन्होंने युद्ध जारी रखा, जिसके लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकारने उन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एंपायर सम्मान से सम्मानित किया।


चीन के हमले का मुंह तोड दिया जवाब

18 नवंबर 1962 सुबह होने को थी । बर्फीला घुंधलका पसरा था। सूरज 17,000 फीट की ऊंचाई तक अभी नहीं चढ़ सका था। लद्दाख में ठंडी और कलेजा जमा देने वाली हवाएं चल रही थीं। यहां सीमा पर भारत के पहरुए मौजूद थे। 13 कुमायूं बटालियन की सी' कम्पनी चुशूल सेक्टर में तैनात थी। बटालियन में 120 जवान थे, जिनके पास इस पिघला देने वाली ठंड से बचने के लिए कुछ भी नहीं था। वो इस माहौल के लिए नए थे।इसके पहले उन्हें इस तरह बर्फ के बीच रहने का कोई अनुभव न था। तभी सुबह के धुंधलके में रेजांग ला (रेजांग पास ) पर चीन की तरफ से कुछ हलचल शुरू हुई। बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ रोशनी के कुछ गोले चले आ रहे हैं। टिमटिमाते हुए। बटालियन के अगुआ मेजर शैतान सिंह थे। उन्होंने गोली चलाने का आदेश दे दिया। थोड़ी देर बाद उन्हें पता चला कि ये रोशनी के गोले असल में लालटेन हैं। इन्हें कई सारे याक के गले में लटकाकर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था ये एक चाल थी। अक्साई चीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। चीनी सेना पूरी तैयारी से थी। ठंड में लड़ने की उन्हें आदत थी और उनके पास पर्याप्त हथियार भी थे। जबकि भारतीय टुकड़ी के पास 300-400 राउंड गोलियां और 1000 हथगोले ही थे। बंदूकें भी ऐसी जो एक बार में एक फायर करती थीं। इन्हें दूसरे वर्ल्ड-वार के बाद बेकार घोषित किया गया था। चीन को इस बात की जानकारी थी। इसीलिए उसने टुकड़ी की गोलियां खत्म करने के लिए ये चाल चली थी। चीन के सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया था।
मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों से बात की मदद मांगी। सीनियर अफसरों ने कहा कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती। आप चैकी छोड़कर पीछे हट जाएं। अपने साथियों की जान बचाएं। मेजर इसके लिए तैयार नहीं हुए। चैकी छोड़ने का मतलब था हार मानना। उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ एक छोटी सी मीटिंग की। सिचुएशन की ब्रीफिंग दी। कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता हो तो हट सकता है लेकिन हम लड़ेंगे। गोलियां कम थीं। ठंड की वजह से उनके शरीर जवाब दे रहे थे। चीन से लड़ पाना नामुमकिन था। लेकिन बटालियन ने अपने मेजर के फैसले पर भरोसा दिखाया। दूसरी तरफ से तोपों और मोटारों का हमला शुरू हो गया। चीनी सैनिकों से ये 123  जवान लड़ते रहे। दस-दस चीनी सैनिकों से एक-एक जवान ने लोहा लिया। इन्हीं के लिए कवि प्रदीप ने लिखा 'दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के...जब अंत समय आया तो कह गए कि हम चलते हैं.. खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफर करते हैं...।'
राजस्थान की वीर प्रसूता धरती ने अपने यहां अनेक शूर वीरों को जन्म दिया है, जिन्हें अपनी वीरता एवं साहस के लिए सदैव याद किया जाता है। |ऐसे वीरों में परमवीर मेजर शैतान सिंह का नाम अग्रणी है जिन्हें 1962 में भारत चीन युद्ध में दिखाई  गई वीरता व साहस के लिए याद किया जाता है।
18 नवंबर 1962 की भोर वली में 3000 चीनी सैनिकों ने पूरी तैयारी के साथ रेजांगला की सैनिक चोटी पर हमला बोल दिया जहां मेजर शैतान सिंह की प्लाटुन तैनात थी। तीन तरफ से टिड्डी दल की तरह चीनी सैनिक आगे बढ़ रहे थे तथा भारत की भूमि पर कब्जा जमाने की फिराक में थे। दोनों तरफ से भयंकर युद्ध में मेजर शैतान सिंह ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया वह धैर्य नहीं खोकर साहस से चीनियों का मुकाबला किया जिससे भारी संख्या में चीनी हताहत हुए। लेकिन उनकी जगह लेने दूसरे चीनी सैनिक पहुंच जाते। मात्र 123 सैनिक की भारतीय कंपनी जो 3 प्लाटों में बंटी हुई थी इस युद्ध में कड़ा मुकाबला कर रही थी। मेजर शैतान सिंह साहस के साथ युद्ध के दौरान एक खाई से दूसरी व दूसरी से तीसरी खाई में जाकर अपने सैनिकों का हौसला अफजाई कर रहे थे। लेकिन शत्रु सैनिकों की भारी तादाद व लगातार गोलीबारी के कारण अधिकांश भारतीय सैनिक मारे गए व मात्र शेष बचे दो सैनिकों के साथ मेजर शैतान सिंह शत्रुओं से अभी भी मुकाबला कर रहे थे. तभी एक गोली उनकी छाती में लगी तब दोनों सैनिकों ने सुरक्षित स्थान पर ले जाने को आतुर हुए। लेकिन मेजर साहब न उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाने की हिदायत देते हुए स्वंय वहीं रहने का संकल्प किया व रक्त की अंतिम बूंद तक शत्रु से लड़ते हुए परम वीरगति को प्राप्त हुए।


तीन माह बाद मिला शव

बर्फीली हवाओं में लगातार हिमपात के कारण उनकी देह तक प्राप्त ब नहीं हो सकी व उन्हें लापता घोषित किया गया लेकिन 3 माह बाद 4 फरवरी 1963 को एक खोजी दल को मेजर का शव मिलने पर विशेष वायुयान से 18 फरवरी 1963 को जोधपुर लाया गया। सायं 5 बजे कागा स्वर्ग आश्रम में परिवार जनों के बीच उनके पुत्र नरपत सिंह के हाथों अग्नि का समर्पित करते हुए पूरे सैनिक सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई। भारत के राष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, राज्यपाल की ओर से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। सेना की ओर से सेनाध्यक्ष के प्रतिनिधि मेजर जनरल भगवती, कुमायू रेजीमेंट के अधिकारी व अन्य सैन्य अधिकारी उपस्थित थे ।


परमवीर चक्र से सम्मानित

भारत के राष्ट्रपति ने मेजर शैतान सिंह को युद्ध में असाधारण वीरता के लिए भा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया आज भी जोधपुर शहर के मुख्य मार्ग स्थित पावटा चैराहे पर स्थापित उनकी प्रतिमा के सामने से जो भी नगरवासी गुजरता है, उसे देखकर स्वतः ही मरुधरा के इस सूत के सम्मान में उनका शीश श्रद्धा से झुक जाता है। सदियों तक देश के नागरिक को परमवीर के इस बलिदान को याद करते रहेंगे। उनकी वीरता और साहस भावी पीढ़ी को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।


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