सोमवार, 2 नवंबर 2020

भारत के भू-आकृतिक प्रदेश( Geophysical regions of India)


भारत के भू-आकृतिक प्रदेश ( Geophysical regions of India)

1.उत्तरी पर्वतीय प्रदेश

उच्च धरातल, हिमाच्छादित चोटियां गहरा व कटा-फटा धरातल, पूर्वगामी जलप्रवाह,जटिल भूगर्भीय संरचना और उपोष्ण अक्षांशों में मिलने वाली शीतोष्ण सघन वनस्पति आदि विशेषताए भारत के इस पर्वतीय भाग को अन्य धरातलीय भू-भागों से अलग करती है। पूर्व से पश्चिम कि में इसकी लम्बाई 2400 किमी. एवं देशांतरीय फैलाव 22° देशांतर तक है और इसकी चौडाई 160 से 500 किमी. के बीच पाई जाती है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। यह नवीन वलन पर्वत है। इनको बनाने में दबाव की शक्तियों अथवा समानान्तर भू-गतिया का अधिक योगदान है।

2. विशाल उत्तरी मैदानी प्रदेश


 यह मैदान प्रायद्वीपीय भारत को बाह्य-प्रायद्वीपीय भारत से अलग करता है। यह नवीनतम भखण्ड है, जो हिमालय की उत्पत्ति के बाद बना है। यह सिन्धू गंगा ब्रहमपुत्र का प्रमुख भाग है, जो कि भौगोलिक दृष्टि से एक खण्ड है, जिसे भारत, पाकिस्तान बंगलादेश के राजनीतिक विभाजन ने अलग कर दिया है। इस मैदान की लम्बाई पूर्व-पश्चिम दिशा में 2400 किमी है, लेकिन चौड़ाई में भिन्नता पाई जाती है, जो क्रमशः पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती पश्चिम में इसकी चौड़ाई 500 किमी. है तथा पूर्व में इसकी चौड़ाई घटकर 145 किमी. रह जाती थी। इसकी औसत समुद्र तल से ऊंचाई 150 मीटर है। अपनी उच्च उर्वरता के लिए यह मैदान विश्व प्रसिद्ध है और प्राचीनकाल से ही सभ्यता एवं संस्कृति का पालना रहा है।

3. प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश

भारत का प्रायद्वीपीय पठारी भाग त्रिभुजाकार है। यह क्षेत्र सभी तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। इसके उत्तर में अरावली, विन्ध्य, सतपुड़ा, भारनेर और राजमहल पहाड़ियां हैं। पश्चिम में सह्याद्रि तथा पूर्व में पूर्वी घाट स्थित है। सम्पूर्ण पठारी भाग की लम्बाई उत्तर से दक्षिण में 1600 किमी. तथा पूर्व-पश्चिम में 1400 किमी. है। यह कुल 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थित है। यह पठार भारत का प्राचीनतम् भू-खण्ड है, जिसकी औसत ऊंचाई 600-900 मीटर तक है। इस क्षेत्र का सामान्य ढलान पश्चिम से पूर्व की ओर है। अपवाद के तौर पर नर्मदा-ताप्ती के भ्रंश भाग में ढलान पूर्व से पश्चिम की ओर है। विभिन्न पर्वतों की उपस्थिति के फलस्वरूप यह पठार कई छोटे-छोटे पठारा में विभाजित हो गया है।

4.तटीय मैदानी प्रदेश

भारत की तट रेखा पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र तक फैली है ये तट व तटीय मैदान संरचना व धरातल की दष्टि से स्पष्ट विभिन्नताएं रखते हैं ये पश्चिमा भाग में पश्चिमी तटीय मैदान तथा पर्वी भाग में पर्वी तटीय मैदान के नाम से जाने जाते हैं 

भूआकृतिक तौर पर भारतीय तटीय मैदानों को निम्न तीन विस्तृत विभागों में बाँटा जा सकता है- (1) गुजरात तटीय मैदान (ii) पश्चिमी तटीय मैदान (iii) पुर्वी तटीय मैदान।

गुजरात तटीय मैदान का विस्तार गुजरात, दमन व दीप, दादरा एवं नगर हवेली में है।

पश्चिमी तटीय मैदान को तीन उपखंडो में बाँटा जा सकता है- (i) कोंकण मैदान (ii) कर्नाटक या कनारा तटीय मैदान (iii) केरल या मालाबार तटीय मैदान।

पूर्वी तटीय मैदान इसे भी तीन उपखण्डों में बाँटा जा सकता है- (1) तमिलनाडु मैदान (2) आंध्र प्रदेश एवं (3) उत्कल मैदान। इन सभी तटीय मैदान का विकास अलग अलग क्रियाओ के सम्मिलित प्रभावस्वरूप हआ है इन क्रियाओं में समद्री तरंग के द्वारा अपरदन तट का उन्मज्जन , निमज्जन, नदियों द्वारा लाए गए निक्षेप तथा वाय के निक्षेपणात्मक क्रिया आदि शामिल है |

5. द्वीप प्रदेश


भारत में कुल 100 से अधिक द्वीप है जो बंगाल की खाडी और अरब सागर में स्थित है जहाँ बंगाल की खाड़ी के द्वीप म्यांमार की अराकानयोमा की विस्तरित निमज्जित श्रेणी के शिखर हे वहीं अरब सागर के द्वीप प्रवाल भित्तियों के जमाव हैं। इसके अतिरिक्त गंगा के मुहाने ,मन्नार की खाडी एवं पर्वी और पश्चिमी तटों के सहारे डेल्टा जमावों से निर्मित कई अपतटीय द्वीप स्थित है। ब्रह्मपुत्र में स्थित मजुली एशिया का बहत्तम् ताजा जल वाला द्वीप है

भारतीय द्वीपों को उनके अपस्थिति के आधार पर तीन भागों में बाँट सकते हैं। (i) अरब सागर के द्वीप (ii)बंगाल कि खाड़ी के द्वीप (iii) अपतटीय द्वीप।अरब सागर स्थित लक्षद्वीप समूह के 43 द्वीप सम्मिलित हैं। बंगाल की खाडी में अंडमान निकोबार समूह में कुल 204 द्वीप हैं।

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