रावण हत्था-भोपो का प्रमुख तत लोक वाद्य यंत्र
◆ रावण हत्था यह राजस्थान का बहुप्रचलित लोक वाद्य है।
◆ भोपों का प्रमुख वाद्य है रावण हत्था
◆पाबूजी की फड़ पूरे राजस्थान में विख्यात है जिसे भोपे बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। भारतीय संस्कृति की इस ऐतिहासिक धरोहर को वर्षों से उन्होंने अपनी परंपरा में संभाल कर रखा और विकसित किया है। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं।
◆ ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं जो सारंगीनुमा वाद्य यन्त्र होता है।
◆ इसे बड़े नारियल की कटोरी पर खाल मढ़ कर बनाया जाता है।
◆ इसकी डांड बाँस की होती है, जिसमें खूंटियाँ लगा दी जाती हैं और नौ तार बाँध दिये जाते हैं।
◆ ये तार स्टील के न होकर बालों के बने होते हैं तथा इन पर गज चलाकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
◆ रावणहत्थे का गज घोडे की पूँछ के बालों से निर्मित होता है तथा सारंगी के गज से भिन्न प्रकार का होता है। इसके बाल एकदम ढीले रहते हैं, जिन्हें दाहिने हाथ के अंगूठे से दबाकर कड़ा बनाया जाता है।
◆ गज के अन्तिम छोर पर घुँघरू बंधे होते हैं जो उसके संचालन के साथ ध्वनि उत्पन्न कर ताल का कार्य भी करते हैं।
◆ बायें हाथ की अंगुलियों से तार को स्थान-स्थान पर दबाकर स्वर निकाले जाते हैं। इसका मुख्य तार मध्य सप्तक के 'सा' तथा अन्तिम तार मन्द्र 'प' में मिलाया जाता है तथा शेष तार 'सा' से 'नि' तक के स्वरों में मिले रहते हैं।
◆ राजस्थान में प्रचलित रावण हत्थे की विशिष्टता यह है कि इसका मुख्य तार घुड़च से एक कोण बनाता हुआ वाद्य के बाईं ओर निकलकर लम्बी डाँड पर लगी खूँटी से कस दिया जाता है। अतः वायलिन की भाँति बाज के तार को डाँड पर दबाकर स्वर नहीं निकाला जाता वरन् तार पर ही दबाव देकर बजाया जाता है। इस प्रकार से निसृत ध्वनि अधिक मधुर होती है।
◆ इस वाद्य को मुख्य रूप से भोपे व भील लोग बजाते हैं। इसके साथ पाबूजी, डूंगजी, जवार जी आदि की कथाएँ गाई जाती हैं।
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