सोमवार, 27 अप्रैल 2015

World famous sword of Sirohi-विश्व विख्यात सिरोही की तलवार


सिरोही की तलवार को पहचान दिलाने वाले परिवार में सबसे बुजुर्ग प्यारेलाल के हाथों में आज भी वह हुनर मौजूद है जो पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हें मिलता रहा और जिसकी बदौलत सिरोहीं की तलवार को देश दुनिया में पहचान मिली |
62 वर्षीय प्यारेलाल कई सालों से तलवारें बना रहे है , लेकिन फिर भी जब भी मौका मिलता है वे तलवार को ढालने लगते है |आज भी लोहे पर ऐसी सटीक चोट करते है की तलवार की धार वैसी ही जैसी कई सालों पहले रहा करती थी |लोग आज भी उन्हें ढूंढते हुए उस गली तक आ पहुचते हैं जहाँ प्यारेलाल तलवार बनाने का काम  करते हैं |पिता की ढलती उम्र और साथ छोड़ते स्वास्थ्य के कारण अहमदाबाद में रहने वाले बेटे ने भी कई बार कहा की आप मेरे साथ चलिए ,लेकिन वे नहीं माने|कहा की जब तक हिम्मत है ये तलवारे बनाता रहूँगा |गौरतलब है की प्यारेलाल इतिहास  की स्वर्णिम पन्नों में दर्ज सिरोही की प्रसिद्ध तलवारे में माहिर परिवार के आखिरी शिल्पकार है |जो रियासत काल से ही तलवार बनाते आ रहे हैं |

इस खासियत की वजह से मिली प्रसिधी 
सिरोही तलवार की यह खासियत है की आज के मशीनी युग में भी लोहे को गर्म करके सिर्फ हथौड़े की सहायता से तैयार की जाती है |पुराने ज़माने में रोठी व जहरीले पर्दाथों के मिश्रण से यह तलवार तैयार होती थी |इसके बाद तलवार बनाने का मेटेरियल मालवा (मध्य प्रदेश ) से आने लगा |मालवा का लोहा गोल बाँट की तरह  होता था , जिसे भट्टी में तपाकर हथौड़े से कूट कर पट्टीनुमा बनाया जाता था |इस पट्टी को बार बार भट्टी में तपाकर तलवार का रूप दिया जाता था |अब यह मेटेरियल अहमदाबाद से आता है , जिसे नंबर के आधार पर ख़रीदा जाता है |शिल्पकार प्यारेलाल मालवीय बताते हैं की सिरोही की तलवार 27 से 31 इंच तक लम्बाई में बनाई जाती है |सिरोही की तलवार बनाने में एक किलोग्राम लोहे को काम में लिया जाता है |लोहे को भट्टी में तपाकर तलवार को अंतिम रूप देने तक यह वजन घटकर 900 ग्राम रह जाता है |यह तलवार वजन में काफी हल्की होती है , लेकिन काम में लेने पर न तो मुडती है और न टूटती है |जितनी अधिक काम में लेंगे उतनी ही धारदार होगी |

दिल्ली के म्यूजियम में बढ़ा रही है शोभा 
सिरोही  की प्रसिद्ध तलवार दिल्ली के म्यूजियम में हमारी शोभा बढ़ा रही है |देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जब 18 अक्टूबर  1958 को सिरोही आए , तब शिल्पकार प्यारेलाल के पिता टेकाजी ने उन्हें सिरोही की तलवार के साथ उनके हाथों से बनाए धनुष ,बाण ,खड़क व पेशकस भेट किए थे |पंडित नेहरु लोह धातु शिल्पकला को देखकर बेहद कुश हुए |आज भी यह पाँचों चीजें दिल्ली के म्यूजियम में टेकाजी पुत्र केसाजी सिरोही के नाम से हमारी शोभा बढ़ा रही है |शिल्पकार प्यारेलाल बताते है की उनके पूर्वजों को इस कला की बदौलत राजा महाराजाओ ने खूब सम्मान दिया |प्यारेलाल को भी वर्ष 2009 में जोधपुर में आयोजित इंटेक सिल्वर जुबली अवार्ड सेरेमनी में जोधपुर के नरेश गजसिंह व तत्कालीन महापौर रामेश्वरलाल दाधीच ने सम्मानित किया था |

इस प्रकार की होती थी तलवारें 
                                                                 साकीला 
साकीला एक सीधी तलवार होती थी जो रोटी की तरह ही बनाई जाती थी |तलवार के बीच का भाग दबा हुआ होता था |इसके बारे में एक कहावत मशहूर है की 
जो बांधे साकीला वो फिरे अकेला 

                                                                नलदार  
यह चन्द्र आकार की तलवार होती थी |यह फौलाद से बनाई जाती थी |जिसके फाल के बीच में एक नाल होती थी |

                                                              मोतीलहर 
यह  फौलाद से बनी हुई तलवार होती थी , जिसके बीच में जगह जगह (स्लोट) बनाकर छर्रे डाले जाते है जब तलवार को म्यान से बाहर निकालते है तो छर्रे आगे पीछे होने से आवाज आती थी |

                                                               लहरिया 
यह तलवार अंग्रेजी में v आकार के फौलाद के टुकड़ों को जोड़कर बनाई जाती है तथा पीट पीटकर एक रूप बनाया जाता था |इस तलवार को सम्मानित व्यक्तियों एवं राजाओ के पास रखने की प्रथा थी |


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