रविवार, 12 अप्रैल 2015

तीर्थों का भांजा धौलपुर का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मचकुण्ड


मचकुंड
धार्मिक स्थल मचकुण्ड अत्यंत ही सुन्दर व रमणीक धार्मिक स्थल है जो प्रकृति की गोद में राजस्थान के धौलपुर नगर के निकट स्थित है। यहां एक पर्वत है जिसे गन्धमादन पर्वत कहा जाता है। इसी पर्वत पर मुचुकुन्द नाम की एक गुफा है। इस गुफा के बाहर एक बड़ा कुण्ड है जो मचकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। इस विशाल एवं गहरे जलकुण्ड के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे मंदिर तथा पूजागृह पाल राजाओं के काल (775 ई. से 915 ई. तक) के बने हुए है। यहां प्रतिवर्ष ऋषि पंचमी तथा भादों की देवछट को बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मचकुण्ड को सभी तीर्थों का भान्जा कहा जाता है। मचकुण्ड का उद्गम सूर्यवंशीय 24 वें "राजा मुचुकुन्द" द्वारा बताया जाता है। यहां ऐसी धारणा है कि इस कुण्ड में नहाने से पवित्र हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि मस्सों की बीमारी से त्रस्त व अन्य चर्म रोगों से परेशान लोग इस कुण्ड में स्नान करें तो वे इनसे छुटकारा पा जाते हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि इस कुंड में बरसात के दिनों में जो पानी आकर इकट्ठा होता है उसमें गंधक व चर्म रोगों में उपयोगी अन्य रसायन होते हैं। यहाँ प्रत्येक माह की पूर्णिमा को आरती एवं दीपदान का आयोजन किया जाता है। मचकुंड का नाम सिक्ख धर्म से भी जुड़ा है। सिक्ख के गुरुगोविंद सिंह जी 4 मार्च 1662 को ग्वालियर जाते समय यहाँ ठहरे थे। यहाँ उन्होंने तलवार के एक ही वार से शेर का शिकार किया था। उनकी स्मृति में यहाँ शेर शिकार गुरुद्वारा बना है जिसका वैभव अत्यंत आकर्षक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कालयवन को राजा मुचुकुन्द के हाथों इसी स्थान पर मरवाया था। तभी से इसे मुचकुण्ड या मचकुण्ड पुकारा जाता है। पूरी कथा इस प्रकार है-
मचकुंड की कथा-
एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ तब राजा मुचुकुन्द की सहायता से देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई। लेकिन उस युद्ध में राजा का सब कुछ नष्ट हो चुका था तब राजा मुचुकुन्द ने देवताओं से अपने लिए गहरी नींद का वरदान मांगा। वरदान में निद्रा पाकर वे गन्धमादन पर्वत की गुफा में जाकर सो गए। मथुरा पर जब कालयवन ने घेरा डाला तब अस्त्रहीन होने की वजह से श्रीकृष्ण वहाँ से भाग निकले, भागते भागते उसी गुफा में जा घुसे जहां राजा मुचुकुन्द सो रहे थे। कालयवन भी उनका पीछा करते हुए उसी गुफा में आया एवं सोए हुए राजा को श्रीकृष्ण समझकर ठोकर मारी तो राजा मुचुकुन्द जाग गए। राजा मुचुकुन्द की दृष्टि कालयवन पर पड़ी जिससे वो भस्म हो गया। तब श्रीकृष्ण ने राजा को दर्शन दिए और उत्तराखण्ड जाकर तपस्या करने को कहा। राजा ने गुफा से बाहर आकर यज्ञ किया और उत्तराखण्ड चले गए। तभी से यह स्थान मचकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
कमल के फूल का बाग-
मचकुंड तीर्थ के निकट ही कमल के फूल का बाग भी स्थित है। चट्टान काट कर बनाए गए कमल के फूल के आकार में बने हुए इस बाग का ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। प्रथम मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा 'तुजुके बाबरी' (बाबरनामा) में जिस कमल के फूल का वर्णन है वह यही कमल का फूल है। कमल के बाग के परिसर में स्नानागार बने हैं जो मुगलकालीन वास्तुकला के अनूठे साक्ष्य है।

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