सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

रणथंभौर का किला (RANTHAMBHOUR FORT)


रणथंभौर का किला (RANTHAMBHOUR FORT)

▶ 'गिरी दुर्ग' रणथंभौर हमीर की आन बान शान के लिए प्रसिद्ध है। सवाई माधोपुर से 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ रणथंभौर का किला विषम आकृति वाली ऊंची नीची  सात पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है जिनके बीच में गहरी खाईया और नाले हैं ।
▶ यह किला यद्यपि एक ऊंचे पर्वत शिखर पर स्थित है मगर समीप जाने पर ही दिखाई देता है। रणथंभौर दुर्ग के निर्माण और निर्माताओं के संबंध में प्रमाणिक जानकारी अभी तक नहीं मिल सकी है ।इतिहासकारों का मानना है कि इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा करवाया गया ।
▶ किला समुद्र तल से 481 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा 12 किलोमीटर की परिधि में विस्तृत है। उसके तीन तरफ गहरी खाई है ,खाईया के साथ परकोटा फिर ढलवा जमीन और दुर्गम वन है । 
▶इसकी प्राचीर पहाड़ियों के साथ एकाकार से लगती है दुर्गम भौगोलिक  स्थिति के कारण ही अबुल फजल ने लिखा है 'और दुर्गे नंगे है परंतु यह बख्तरबंद है'। 
▶ रणथंभौर का वास्तविक नाम रन्त:पुर है अर्थात रण की घाटी में स्थित नगर ।रण  उस पहाड़ी का नाम है जो किले की पहाड़ी से कुछ नीचे है एवं थंभ उसका जिस पर यह किला बना है इसी से इसका का नाम रणस्तंभपुर हो गया जो कालांतर में रणथंभौर के नाम से जाना जाता है।
▶ तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र गोविंदराज सामंत शासक के रूप में रणथंभौर की गद्दी पर बैठा । तत्पश्चात ऐबक, इल्तुतमिश ,बलबन इस किले पर अधिकार रखने में सफल रहे। 1282 -1301 ईस्वी में हम्मीर देव चौहान यहाँ का शासक था उस समय जलालुद्दीन खिलजी ने 1292 ई. में रणथभौर पर आक्रमण किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली तब खिसियाकर उसने कहा "ऐसे 100 किलो को भी वह मुसलमान के एक बाल के बराबर भी नहीं मानता है" 
▶ 1301 ई. में हमीर के मंत्रियों के विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल रहा। इस समय हम्मीर की पत्नी रंग देवी और पुत्री देवल दे के नेतृत्व में किले में जोहर हुआ जो रणथंबोर का पहला शाखा कहलाता है।
▶ राणा कुंभा, राणा सांगा का भी इस किले पर आधिपत्य रहा ।1534 ईसवी में मेवाड़ ने इसे गुजरात के शासक बहादुरशाह को सौंप दिया ।1542 ई. में यह शेरशाह सूरी एवं उसके बाद सुर्जन हाडा के अधिकार में रहा। 1569 ईसवी में रणथंबोर पर मुगल आधिपत्य स्थापित हो गया ।अकबर ने यहां शाही टकसाल स्थापित की। मुगल काल में शाही कारागार के रूप में भी इसका उपयोग किया गया ।मुगलों के पराभव काल में जयपुर महाराजा माधो सिंह ने किले पर अधिकार कर लिया। 1947 तक यह जयपुर के आधिपत्य में ही रहा ।

▶ नौलखा दरवाजा, हाथीपोल, गणेशपोल, सूरजपोल और त्रिपोलिया पोल किले के प्रमुख प्रवेश द्वार है। किले की प्रमुख इमारतों में हम्मीर महल, रानीमहल, हम्मीर की कचहरी ,सुपारी महल ,बादल महल, 32 खंभों की छतरी ,जौरा भौरा,रानिहाड तालाब, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, लक्ष्मी नारायण मंदिर है। किले के पार्श्व में पद्मला तालाब स्थित है ।भारत प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर इसी किले में स्थित है।
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