रविवार, 8 सितंबर 2019

लोक देवता पाबूजी राठौड़ का जीवन परिचय(LOKDEVTA PABU JI RATHORE)-Rajasthan Gk


लोक देवता पाबूजी राठौड़ का जीवन परिचय(LOKDEVTA PABU JI RATHORE)

!! सूरवीर गौ रक्षक वीर श्री पाबूजी राठौड़  !!


सोढी छोड़ी बिल्खती , माथै सावण मौड़ ।
अमला वैला आपने ,रंग है पाबुजी राठौड़।।

● राव सिहाजी "मारवाड में राठौड वंश के संस्थापक " उनके तीन पुत्र थे ।
राव आस्थानजी, राव अजेसीजी, राव सोनगजी !

● राव आस्थानजी के आठ पूत्र थे !
राव धुहडजी, राव धांधलजी, राव हरकडजी,राव पोहडजी, राव खिंपसिजी, राव आंचलजी,राव चाचिंगजी, राव जोपसाजी !

● राव धांधलजी राठौड़ के दो पुत्र थे ! बुढोजी और पाबुजी !

● श्री पाबूजी राठौङ का जन्म 1313 ई में कोळू ग्राम में हुआ था ! कोळू ग्राम जोधपुर में फ़लौदी के पास है । धांधलजी कोळू ग्राम के राजा थे, धांधल जी की ख्याति व नेक नामी दूर दूर तक प्रसिद्ध थी ।

● एक दिन सुबह सवेरे धांधलजी अपने तालाब पर नहाकर भगवान सूर्य को जल तर्पण कर रहे थे । तभी वहां पर एक बहुत ही सुन्दर अप्सरा जमीन पर उतरी ! राजा धांधल जी उसे देख कर उस पर मोहित हो गये, उन्होने अप्सरा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।
● जवाब में अप्सरा ने एक वचन मांगा कि राजन ! आप जब भी मेरे कक्ष में प्रवेश करोगे तो सुचना करके ही प्रवेश करोगे । जिस दिन आप वचन तोङेगें मै उसी दिन स्वर्ग लोक लौट जाउगीं, राजा ने वचन दे दिया । कुछ समय बाद धांधलजी के घर मे पाबूजी के रूप मे अप्सरा  मदुधौखा रानी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म होता है । समय अच्छी तरह बीत रहा था, एक दिन भूल वश या कोतुहलवश धांधलजी अप्सरा रानी के कक्ष में बिना सूचित किये प्रवेश कर जाते है । वे देखते है कि अप्सरा रानी पाबूजी को सिंहनी के रूप मे दूध पिला रही है ।  राजा को आया देख अप्सरा अपने असली रूप मे आ जाती है और राजा धांधलजी से कहती है कि "हे राजन आपने अपने वचन को तोङ दिया है इसलिये अब मै आपके इस लोक में नही रह सकती हूं । मेरे पुत्र पाबूजी कि रक्षार्थ व सहयोग हेतु मै दुबारा एक घोडी ( केशर कालमी ) के रूप में जनम लूगीं । यह कह कर अप्सरा रानी अंतर्ध्यान हो जाती है ।समय बीत गया और पाबूजी महाराज बड़े हो गए,  गुरू समरथ भारती जी द्वारा उन्हें शस्त्रों की दीक्षा दी जाती है । धांधल जी के निधन के बाद नियमानुसार राजकाज उनके बड़े भाई बुङा जी द्वारा किया जाता है ।

● गुजरात राज्य मे आया हुआ गाँव " अंजार " जहाँ पर देवल बाई चारण नाम की एक महिला रहती थी । उनके पास एक काले रंग की घोडी थी, जिसका नाम केसर कालमी था ! उस घोडी की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई थी । उस घोडी को को जायल (नागौर) के जिन्दराव खींची ने डोरा बांधा था, और कहा कि यह घोडी मै लुंगा, यदि मेरी इच्छा के विरूद्ध तुम ने यह घोडी किसी और को दे दी तो मै तुम्हारी सभी गायों को ले जाउगां ।

● एक रात श्री पाबूजी महाराज को स्वप्न आता है और उन्हें यह घोडी (केशर कालमी) दिखायी देती है, सुबह वो इसे लाने का विचार करते है । श्री पाबूजी महाराज अपने खास चान्दा जी, ढ़ेबाजी को साथ में लेकर अंजार के लिये रवाना होते है । अंजार पहुँच ने पर देवल बाई चारण उनकी अच्छी आव भगत करती है, और आने का प्रयोजन पूछती है । श्री पाबूजी महाराज देवल से केशर कालमी को मांगते है, लेकिन देवल उन्हें मना कर देती है, और उन्हें बताती है कि इस घोडी को जिन्दराव खींची ने डोरा बांध रखा है और मेरी गायो के अपहरण कि धमकी भी दी हुई है ।
● यह सुनकर श्री पाबूजी महाराज देवल बाईं चारण को वचन देते है कि तुम्हारी गायों कि रक्षा कि जिम्मेदारी आज से मेरी है, जब भी तुम विपत्ति मे मुझे पुकारोगी अपने पास ही पाओगी, उनकी बात सुनकर के देवल अपनी घोडी उन्हें दे देती है ।
पाणी पवन प्रमाण अम्बर हिंदु धरम।
अब माँ धांधल आण , सिर देस्य गायां सटै।।
घोड़ी जोड़ी पागड़ी,मुंछा तणी मरोड़।
ये पांचु ही राखली पाबुजी राठौड़ ।।

● श्री पाबूजी महाराज के दो बहिने थी, पेमलबाई और सोनल बाई ! जिन्दराव खींची का विवाह श्री पाबूजी महाराज कि बहिन पेमल बाई के साथ होता है, और सोनल बाई का विवाह सिरोही के महाराजा सूरा देवडा के साथ होता है ।
जिन्दराव शादी के समय दहेज मे केशर कालमी कि मांग करता है, जिसे श्री पाबूजी महाराज के बडे भाई बूढा जी द्वारा मान लिया जाता है, लेकिन श्री पाबूजी महाराज घोडी देने से इंकार कर देते है, इस बात पर श्री पाबूजी महाराज का अपने बड़े भाई के साथ मनमुटाव हो जाता है । अमर कोट के सोढा सरदार सूरज मल जी कि पुत्री फूलवन्ती बाई का रिश्ता श्री पाबूजी महाराज के लिये आता है, जिसे श्री पाबूजी महाराज सहर्ष स्वीकार कर लेते है, तय समय पर श्री पाबूजी महाराज बारात लेकर अमरकोट के लिये प्रस्थान करते है ।


● कहते है कि पहले ऊंट के पांच पैर होते थे इस वजह से बारात धीमे चल रही थी, जिसे देख कर श्री पाबूजी महाराज ने ऊंट के बीच वाले पैर के नीचे हथेली रख कर उसे ऊपर पेट कि तरफ धकेल दिया जिससे वह पेट मे घुस गया, आज भी ऊंट के पेट पर पांचवे पैर का निशान है । 

● इधर देवल चारणी कि गायो को जिन्दराव खींची ले जाता है, देवल बाईं चारण काफी मिन्नते करती है लेकिन वह नही मानता है, और गायो को जबरन ले जाता है । देवल चारणी एक चिडिया का रूप धारण करके अमर कोट पहूँच जाती है, और वहाँ पर खड़ी केसर कालमी घोड़ी हिन्-हिनाने लगती है । अमर कोट में उस वक्त श्री पाबूजी महाराज की शादी में फेरो की रस्म चल रही होती है तीन फेरे ही लिए थे की चिडिया के वेश में देवल बाई चारण ने वहा रोते हुए आप बीती सुनाई ! उसकी आवाज सुनकर पाबूजी का खून खोल उठा और वे रस्म को बीच में ही छोड़ कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते है । उस दिन से राजपूतो में आधे फेरो (चार फेरों ) का  रिवाज चल पड़ा है ।
● पाबूजी महाराज अपने जीजा जिन्दराव खिंची को ललकारते है, वहा पर भयानक युद्ध होता है,  श्री पाबूजी महाराज अपने युद्ध कोशल से जिन्दराव खिंची को परस्त कर देते है, लेकिन बहिन के सुहाग को सुरक्षित रखने व माँ को दिये वचन के लिहाज से जिन्दराव को जिन्दा छोड़ देते है । और सभी गायो को लाकर वापस देवल बाईं चारण को सोप देते है, और अपनी गायो को देख लेने को कहते है, देवल बाई चारण कहती है की एक बछडा कम है । पाबूजी महाराज वापस जाकर उस बछड़े को भी लाकर दे देते है ।
● श्री पाबूजी महाराज रात को अपने गाँव गुन्जवा में विश्राम करते है तभी रात को जिन्दराव खींची अपने मामा फूल दे भाटी के साथ मिल कर सोते हुए पर हमला करता है ! जिन्दराव के साथ पाबूजी महाराज का युद्ध चल रहा होता है और उनके पीछे से फूल दे भाटी वार करता है, और इस प्रकार श्री पाबूजी महाराज गायो की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे देते है । पाबूजी महाराज की रानी फूलवंती जी , व बूढा जी की रानी गहलोतनी जी व अन्य राजपूत सरदारों की राणियां अपने अपने पति के साथ सती हो जाती है, कहते है की बूढाजी की रानी गहलोतनी जी गर्भ से होती है । हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गर्भवती स्त्री सती नहीं हो सकती है  इस लिए उन्होंने अपना पेट कटार से काट कर पेट से बच्चे को निकाल कर अपनी सास को सोंप कर कहती है की यह बड़ा होकर अपने पिता व चाचा का बदला जिन्दराव से जरूर लेगा, यह कह कर वह सती हो जाती है । कालान्तर में वह बच्चा झरडा जी ( रूपनाथ जो की गुरू गोरखनाथ जी के चेले होते है ) के रूप में प्रसिद्ध होते है तथा अपनी भुवा की मदद से अपने फूफा को मार कर बदला लेते है और जंगल में तपस्या के लिए निकल जाते है । झरडो पाबु हूं ही करड़ो ।।

👏👏👏👏👏जय #पाबुजी री👏👏👏👏👏

लोक देवता पाबूजी राठौड़
लोक देवता पाबूजी राठौड़
 
स्रोत-सुमेर सिंह भाटी थार की लोकसंस्कृति FB PAGE

Click here fore rajasthan gk 
Share:

8 टिप्‍पणियां:

  1. मैं यह एक महीने पहले पढ़ रहा था। और अब मैं इसे फिर से पढ़ने के लिए वापस आ गया हूं

    जवाब देंहटाएं
  2. एक महान ब्लॉग साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे आपका काम पसंद है। यह पता चला है कि मैं अब तक जो भी देख रहा हूं वह इस पेपर में है, मैं इस ब्लॉग पर कई लेख पाकर बहुत खुश हूं, मैं ऊपर दिए गए आपके वाक्य में दिलचस्पी रखता हूं, मेरी राय में बहुत राय निर्माण, क्यों? क्योंकि आपने इसे भाषा में लिखा था जिसे समझना आसान है।

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझे यहाँ अच्छा पोस्ट मिला। मुझे आपका लिखना पसंद है। अच्छा !. मैं लेख और यहां कुछ वाक्यों से सहमत हूं, आप वाक्य को अच्छी तरह से लिखें, मैं समझता हूं कि आपका क्या मतलब है, यह मेरे लिए एक राय का निर्माण करेगा क्योंकि इस लेख में मुझे अपने जीवन में अतीत की कुछ याद दिलाता है।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस जानकारी के लिए धन्यवाद, आपके लेख दूसरों की तुलना में बहुत बेहतर हैं।) यह पता चला है कि मैं अब तक जो कुछ भी देख रहा हूं वह इस पत्र में है, मुझे इस ब्लॉग पर कई लेख पाकर बहुत खुशी हो रही है, मुझे ऊपर आपके वाक्य में दिलचस्पी है, मेरी राय में बहुत राय निर्माण, क्यों? क्योंकि आपने इसे भाषा में लिखा है जिसे समझना आसान है।

    जवाब देंहटाएं
  5. एक महान ब्लॉग साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे आपका काम पसंद है। यह पता चला है कि मैं अब तक जो भी देख रहा हूं वह इस पेपर में है, मैं इस ब्लॉग पर कई लेख पाकर बहुत खुश हूं, मैं ऊपर दिए गए आपके वाक्य में दिलचस्पी रखता हूं, मेरी राय में बहुत राय निर्माण, क्यों? क्योंकि आपने इसे भाषा में लिखा था जिसे समझना आसान है।

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपना कमेंट एवं आवश्यक सुझाव यहाँ देवें।धन्यवाद

SEARCH MORE HERE

Labels

राजस्थान ज्ञान भंडार (Rajasthan General Knowledge Store)

PLEASE ENTER YOUR EMAIL FOR LATEST UPDATES

इस ब्लॉग की नई पोस्टें अपने ईमेल में प्राप्त करने हेतु अपना ईमेल पता नीचे भरें:

पता भरने के बाद आपके ईमेल मे प्राप्त लिंक से इसे वेरिफाई अवश्य करे।

ब्लॉग आर्काइव